कुलीनता

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और अमरा अदृश्य हो गया !..”

‘बचाओ, बचाओ’ वेदनाभरी पुकार सुनते ही दादू मियाँने लकड़ीका बोझा अलग रख दिया। घने वनमें एक चिड़ियाकी भी आवाज नहीं सुनायी पड़ती थी। वे दौड़ पड़े।

‘तुम कौन हो, भाई कराहते क्यों हो? तुम्हारे साथ यह दूसरा व्यक्ति कौन है? डाकुओंने तुम्हें लूटा और घायल भी कर दिया; कितने निर्दयी होते हैं ये ।’ दादू मियाँने सारथिसे पूछा, वह कुछ-कुछ होशमें था। ‘इस रथमें जैसलमेर – नरेश महाराज पीथल परमारका राजकवि ईहर बारहट है। डाकुओंने हमलोगोंको कहींका न रखा। बारहटकी हालत तो अत्यन्त शोचनीय है। हम लोग गोहिलवाड़ से गौतमेश्वर महादेवका दर्शन करके गुरु दत्तात्रेयका दर्शन करनेके लिये गिरनार जा रहे थे।’ सारथिने संक्षिप्त परिचय दिया, उसके वक्षदेशसे खून बह रहा था। दादू मियाँने लकड़ी जंगलमें ही छोड़ दी उन्हें इस बातकी चिन्ता नहीं रही कि आज परिवार के लोग क्या लकड़ी बेचकर ही वे गरीबीके दिन काट रहे थे उन्होंने अतिथियोंकी सेवाको ही अपना महान् धर्म समझा। वे उन्हें घर लाये, घर क्या था- एक छोटी-सी झोपड़ी दादूने उनको पेड़के नीचे चारपाई बिछाकर लिटा दिया। वे उनकी सेवामें लग गये।

‘सेठजी! माण्डवीमें आप ही हमारे परिचित हैं। घरमें दो अतिथि आ गये हैं। आपको मेरी दीन-दशाका पता है ही अतिथियोंको डाकुओंने बुरी तरह घायल कर दिया है। मैंने नाऊको बुलाया था। वह मलहम पट्टी के लिये प्रस्तुत है, पर कहता है कि तीन मासतक दवा चलेगी। हजार रुपये लगेंगे। सेठजी! आप विश्वास रखिये कि आपका पैसा डूबने नहीं पायेगा।’ दादू मियाँ रोने लगे। उनकी आँखोंसे सावन-भादों बरसने लगे। सेठका हृदय पिघल गया। उन्होंने रुपये दे दिये और कहा कि मैं जानता हूँ तुम लकड़ी बेचकर परिवारका पोषण करते हो; रुपये लौटानेकी आवश्यकता नहीं है तुम्हारे ऐसे तपस्वी और परोपकारीद्वारा परहितमें यदि ये रुपये लग जायेंगे तो बड़ी अच्छी बात है।मैं एक-एक पैसेकी भरपाई कर दूंगा सेठजी!’ दादूमिया निश्छल हृदय बोल उठा दादून देखा |

तीन मासकी चिकित्साक बाद बारहट अच्छा हो गया। उसने सारथिको बुलाकर जैसलमेर चलने की इच्छा प्रकट की।

‘मैं अपने दयालु उपकारीका दर्शन करना चाहता हूँ।’ सबेरे-सबेरे बारहटके मुखसे ऐसी बात सुनकर सारथि चकित हो गया। बारहटका नियम था, दिन | चढ़नेके सवा पहर बाद ही किसी मुसलमानका मुख देखनेका।

‘पर जब उन्हें यह पता चला तो उन्होंने अपने घरसे दूर इस स्थानपर आपके रहनेका प्रबन्ध किया, वे आपके नियमको भङ्ग नहीं करना चाहते थे। वे चिकित्साका सारा सामान समयपर भेज दिया करते थे सारथिके नेत्रोंमें अनुकण आ गये।

‘भैया! वे मुसलमान नहीं हैं, वे अल्लाहके पवित्र और निष्पाप सेवक हैं। ऐसे व्यक्तिके दर्शनसे जन्म जन्मके पाप भस्म हो जाते हैं।’ ईहर बारहटका हृदय भर आया।

‘मैंने क्या किया, सब कुछ अल्लाह करते हैं। मेरे ऐसे साधारण व्यक्तिकी प्रशंसामें अपनी अमृत वाणीका व्यथा न कीजिये।’ दादू मियाँ आ पहुँचे। बारहटने उनको भर आँख देखा। वह धन्य हो गया।

‘आपके एक बैलको डाकुओंने घायल कर दिया है। रथमें मेरा बैल जोत लीजिये। इसपर लकड़ी भी कम लद पाती है, मैं अपने कंधेपर अधिक बोझा रखकर ला सकता हूँ।’ दादू मियाँकी कुलीनता भयानक गरीबीमें भी चमक उठी। बारहटने प्रस्थान किया।

‘वे देवता हैं देवता, मैंने आजतक ऐसा आदमी ही नहीं देखा था, महाराज!’ बारहटने राजसभामें उपस्थित होकर पीथल परमारके सामने दादू मियाँको प्रशंसा की। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि राजा उन्हें अच्छे पदपर नियुक्त कर ले। बारहटके कहनेसे राजाने दादूमियाँको जैसलमेर आनेका निमन्त्रण दिया औरआनेपर बड़े ठाट-बाटसे उनका स्वागत किया। पोथल परमारने उन्हें देखते ही अपने भाग्यकी सराहना की और कलके लकड़ी काटनेवालेकी ढाई हजार सैनिकोंके अध्यक्ष-पदपर नियुक्ति हो गयी। दादू मियाँके दिन सुखसे बीतने लगे।

‘पीथल परमार मेरे भाईको आज फाँसी पर लटका देंगे। आपने जीवनमें कभी अन्यायका साथ नहीं दिया। अन्याय और असत्यका समर्थन न करनेके कारण ● आपको अपनी जन्मभूमितक छोड़नी पड़ी थी, टोडाके राजा सवाई सतारने आपको जमादार पदसे हटाकर राज्यसे बाहर कर दिया था।’ दादूकी पत्नीने ढोला रॉकके प्राण बचानेकी प्रार्थना की।

‘अन्याय नहीं होने पायेगा जबतक मेरी तलवारमें धार है। तुमने जिसे धर्मका भाई मान लिया है, वह मरने नहीं पायेगा। उसने अपराध ही क्या किया है।’ दादूने आश्वासन दिया, वे राजप्रासादकी ओर चल पड़े।

‘महाराज! आपकी राजकुमारी ढोलासे प्रेम करती है। ढोलामें इतना साहस नहीं है कि वह राजकन्यापर कुदृष्टिपात करे।’ ककल सेठने पीथल परमारसे निवेदन किया, पर राजाने आदेश नहीं बदला।

“यह अन्याय है महाराज! राजस्थानकी पवित्र भूमिको अन्यायके खूनसे रंगना कदापि उचित नहीं है। मेरी सेना विद्रोह करेगी; मैं जैसलमेरके राजसिंहासनको पापसे कलङ्कित नहीं होने दूंगा।’ दादू मियाँने तलवार खींच ली। राजा सोचने लगे।

‘दोनोंका विवाह हो ही जाना चाहिये।’ ककल सेठने राजाको विश्वास दिलाया; बारहटकी कृपासे वह जैसलमेरा लब्धप्रतिष्ठ नागरिक था।

‘ढोला रॉक मुसलमान नहीं है, महाराज! वह अपनी माँक साथ आपकी राजधानीमें ही रहता है। सबके दिन समान नहीं होते। वह टोडाके राजा सवाई सतारकी विधवा रानी चंदा गौरीका लाड़ला पुत्र है। राजाने अपने जीवन कालमें ही स्वामिभक्त जमादारको हटाकर अमरा डाकूको मन्त्रीपदपर रखा। वे सिद्ध करना चाहते थे कि गरीबीमें मनुष्य कुलीनताका त्याग कर देता है और राजाकी कृपासे चोर या डाकू भी समृद्धि प्राप्तकर कुलीन हो सकता है। पर राजाके स्वर्गवासके बाद राज्य हड़पनेके लिये उसने बोलारायको मार डालनेका विचार किया। दादू मियाँ और उनकी पत्नीको भी इस रहस्यका पता नहीं है, ढोलाराय उनके घर आता-जाता है।’ ककल सेठकी बातसे पीथल परमार सन्न हो गये। चंदा गौरी भी घटनास्थलपर आ गयी थी अपने पुत्रका प्राण बचानेके लिये

“माँ! आपने मुझे भी अपने आनेकी सूचना नहीं दी। मैंने तो जीवनभर आपका नमक खाया है।’ दादू मियाँ चंदा गौरीके पैरपर गिर पड़े, उन्होंने राजपुत्र ढोलाको फाँसीके तख्तेसे पलभरमें उतारकर हृदयसे लगा लिया। नयनोंकी सजल निर्झरिणी बहती ही रही।

पीथल परमारकी कन्यासे ढोलारायका विवाह हो गया। उन्होंने टोडाका राज्य अधिकार सैनिकबलसे प्राप्त किया। ककल सेठके समझानेपर अमराको प्राणदान देकर राज्यसे निकाल दिया। ककल सेठने मन्त्रित्व और दादू मियाँने सेनापतिका भार सँभाला।

कच्छनरेश रणमलकी राजकन्या मारूका पत्र पाकर
ढोलारायने प्रस्थान किया। वह कच्छके राजप्रासादमें
कुछ दिनतक ठहर गया। “यह लंबी कहानी है, बेटा! मैं अपनी रानी हंसावलीके साथ भगवान् गौतमेश्वरके पूजनके लिये गोहिलवाड़ गया था। दैवयोगसे तुम्हारे पिता भी सपत्नीक वहींपर थे। तुम और मारू दोनों अल्पवयस्क थे। तुम दोनोंकी मँगनी वहीं हो गयी। राजपूतकन्या दूसरी बार विवाह नहीं किया करती उसी स्थानपर रंगमें भंग भी हो गया था।’ ईहर बारहटने तुम्हारे पिताका यश नहीं गाया; वे अपकीर्ति नहीं सह सके। उन्होंने आत्मयज्ञ कर स्वर्ग प्राप्त कर लिया। रणमलने साँडनीपर बैठे ढोला-दम्पतिको आशीर्वाद दिया। साँडनी चल पड़ी।

चूडावावमें भूतोंका अड्डा है।’ मारूने पतिको सावधान किया ही था कि किसीने नंगी तलवारसे दोनोंपर आक्रमण किया। पर प्रहार करनेके पहले ही किसीने पीछेसे आक्रमणकारीके सिरके दो टुकड़े कर दिये।

‘दादू मियाँ, आप!’ ढोलारायने घूमकर पीछे देखा।

“हाँ महाराज! मैं जानता था कि अमरा बदला लेगा। उसे मारूके साथ आपके विवाहकी बात ज्ञात थी वह जानता था आप इस रास्तेसे मारूके साथ लौटेंगे।’ दादू मियाँने नमकका मूल्य पूरा किया। ‘आप देवता हैं, दादू मियाँ।’ दम्पति नतमस्तक थे।

-रा0 श्री0

और अमरा अदृश्य हो गया !..”
‘बचाओ, बचाओ’ वेदनाभरी पुकार सुनते ही दादू मियाँने लकड़ीका बोझा अलग रख दिया। घने वनमें एक चिड़ियाकी भी आवाज नहीं सुनायी पड़ती थी। वे दौड़ पड़े।
‘तुम कौन हो, भाई कराहते क्यों हो? तुम्हारे साथ यह दूसरा व्यक्ति कौन है? डाकुओंने तुम्हें लूटा और घायल भी कर दिया; कितने निर्दयी होते हैं ये ।’ दादू मियाँने सारथिसे पूछा, वह कुछ-कुछ होशमें था। ‘इस रथमें जैसलमेर – नरेश महाराज पीथल परमारका राजकवि ईहर बारहट है। डाकुओंने हमलोगोंको कहींका न रखा। बारहटकी हालत तो अत्यन्त शोचनीय है। हम लोग गोहिलवाड़ से गौतमेश्वर महादेवका दर्शन करके गुरु दत्तात्रेयका दर्शन करनेके लिये गिरनार जा रहे थे।’ सारथिने संक्षिप्त परिचय दिया, उसके वक्षदेशसे खून बह रहा था। दादू मियाँने लकड़ी जंगलमें ही छोड़ दी उन्हें इस बातकी चिन्ता नहीं रही कि आज परिवार के लोग क्या लकड़ी बेचकर ही वे गरीबीके दिन काट रहे थे उन्होंने अतिथियोंकी सेवाको ही अपना महान् धर्म समझा। वे उन्हें घर लाये, घर क्या था- एक छोटी-सी झोपड़ी दादूने उनको पेड़के नीचे चारपाई बिछाकर लिटा दिया। वे उनकी सेवामें लग गये।
‘सेठजी! माण्डवीमें आप ही हमारे परिचित हैं। घरमें दो अतिथि आ गये हैं। आपको मेरी दीन-दशाका पता है ही अतिथियोंको डाकुओंने बुरी तरह घायल कर दिया है। मैंने नाऊको बुलाया था। वह मलहम पट्टी के लिये प्रस्तुत है, पर कहता है कि तीन मासतक दवा चलेगी। हजार रुपये लगेंगे। सेठजी! आप विश्वास रखिये कि आपका पैसा डूबने नहीं पायेगा।’ दादू मियाँ रोने लगे। उनकी आँखोंसे सावन-भादों बरसने लगे। सेठका हृदय पिघल गया। उन्होंने रुपये दे दिये और कहा कि मैं जानता हूँ तुम लकड़ी बेचकर परिवारका पोषण करते हो; रुपये लौटानेकी आवश्यकता नहीं है तुम्हारे ऐसे तपस्वी और परोपकारीद्वारा परहितमें यदि ये रुपये लग जायेंगे तो बड़ी अच्छी बात है।मैं एक-एक पैसेकी भरपाई कर दूंगा सेठजी!’ दादूमिया निश्छल हृदय बोल उठा दादून देखा |
तीन मासकी चिकित्साक बाद बारहट अच्छा हो गया। उसने सारथिको बुलाकर जैसलमेर चलने की इच्छा प्रकट की।
‘मैं अपने दयालु उपकारीका दर्शन करना चाहता हूँ।’ सबेरे-सबेरे बारहटके मुखसे ऐसी बात सुनकर सारथि चकित हो गया। बारहटका नियम था, दिन | चढ़नेके सवा पहर बाद ही किसी मुसलमानका मुख देखनेका।
‘पर जब उन्हें यह पता चला तो उन्होंने अपने घरसे दूर इस स्थानपर आपके रहनेका प्रबन्ध किया, वे आपके नियमको भङ्ग नहीं करना चाहते थे। वे चिकित्साका सारा सामान समयपर भेज दिया करते थे सारथिके नेत्रोंमें अनुकण आ गये।
‘भैया! वे मुसलमान नहीं हैं, वे अल्लाहके पवित्र और निष्पाप सेवक हैं। ऐसे व्यक्तिके दर्शनसे जन्म जन्मके पाप भस्म हो जाते हैं।’ ईहर बारहटका हृदय भर आया।
‘मैंने क्या किया, सब कुछ अल्लाह करते हैं। मेरे ऐसे साधारण व्यक्तिकी प्रशंसामें अपनी अमृत वाणीका व्यथा न कीजिये।’ दादू मियाँ आ पहुँचे। बारहटने उनको भर आँख देखा। वह धन्य हो गया।
‘आपके एक बैलको डाकुओंने घायल कर दिया है। रथमें मेरा बैल जोत लीजिये। इसपर लकड़ी भी कम लद पाती है, मैं अपने कंधेपर अधिक बोझा रखकर ला सकता हूँ।’ दादू मियाँकी कुलीनता भयानक गरीबीमें भी चमक उठी। बारहटने प्रस्थान किया।
‘वे देवता हैं देवता, मैंने आजतक ऐसा आदमी ही नहीं देखा था, महाराज!’ बारहटने राजसभामें उपस्थित होकर पीथल परमारके सामने दादू मियाँको प्रशंसा की। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि राजा उन्हें अच्छे पदपर नियुक्त कर ले। बारहटके कहनेसे राजाने दादूमियाँको जैसलमेर आनेका निमन्त्रण दिया औरआनेपर बड़े ठाट-बाटसे उनका स्वागत किया। पोथल परमारने उन्हें देखते ही अपने भाग्यकी सराहना की और कलके लकड़ी काटनेवालेकी ढाई हजार सैनिकोंके अध्यक्ष-पदपर नियुक्ति हो गयी। दादू मियाँके दिन सुखसे बीतने लगे।
‘पीथल परमार मेरे भाईको आज फाँसी पर लटका देंगे। आपने जीवनमें कभी अन्यायका साथ नहीं दिया। अन्याय और असत्यका समर्थन न करनेके कारण ● आपको अपनी जन्मभूमितक छोड़नी पड़ी थी, टोडाके राजा सवाई सतारने आपको जमादार पदसे हटाकर राज्यसे बाहर कर दिया था।’ दादूकी पत्नीने ढोला रॉकके प्राण बचानेकी प्रार्थना की।
‘अन्याय नहीं होने पायेगा जबतक मेरी तलवारमें धार है। तुमने जिसे धर्मका भाई मान लिया है, वह मरने नहीं पायेगा। उसने अपराध ही क्या किया है।’ दादूने आश्वासन दिया, वे राजप्रासादकी ओर चल पड़े।
‘महाराज! आपकी राजकुमारी ढोलासे प्रेम करती है। ढोलामें इतना साहस नहीं है कि वह राजकन्यापर कुदृष्टिपात करे।’ ककल सेठने पीथल परमारसे निवेदन किया, पर राजाने आदेश नहीं बदला।
“यह अन्याय है महाराज! राजस्थानकी पवित्र भूमिको अन्यायके खूनसे रंगना कदापि उचित नहीं है। मेरी सेना विद्रोह करेगी; मैं जैसलमेरके राजसिंहासनको पापसे कलङ्कित नहीं होने दूंगा।’ दादू मियाँने तलवार खींच ली। राजा सोचने लगे।
‘दोनोंका विवाह हो ही जाना चाहिये।’ ककल सेठने राजाको विश्वास दिलाया; बारहटकी कृपासे वह जैसलमेरा लब्धप्रतिष्ठ नागरिक था।
‘ढोला रॉक मुसलमान नहीं है, महाराज! वह अपनी माँक साथ आपकी राजधानीमें ही रहता है। सबके दिन समान नहीं होते। वह टोडाके राजा सवाई सतारकी विधवा रानी चंदा गौरीका लाड़ला पुत्र है। राजाने अपने जीवन कालमें ही स्वामिभक्त जमादारको हटाकर अमरा डाकूको मन्त्रीपदपर रखा। वे सिद्ध करना चाहते थे कि गरीबीमें मनुष्य कुलीनताका त्याग कर देता है और राजाकी कृपासे चोर या डाकू भी समृद्धि प्राप्तकर कुलीन हो सकता है। पर राजाके स्वर्गवासके बाद राज्य हड़पनेके लिये उसने बोलारायको मार डालनेका विचार किया। दादू मियाँ और उनकी पत्नीको भी इस रहस्यका पता नहीं है, ढोलाराय उनके घर आता-जाता है।’ ककल सेठकी बातसे पीथल परमार सन्न हो गये। चंदा गौरी भी घटनास्थलपर आ गयी थी अपने पुत्रका प्राण बचानेके लिये
“माँ! आपने मुझे भी अपने आनेकी सूचना नहीं दी। मैंने तो जीवनभर आपका नमक खाया है।’ दादू मियाँ चंदा गौरीके पैरपर गिर पड़े, उन्होंने राजपुत्र ढोलाको फाँसीके तख्तेसे पलभरमें उतारकर हृदयसे लगा लिया। नयनोंकी सजल निर्झरिणी बहती ही रही।
पीथल परमारकी कन्यासे ढोलारायका विवाह हो गया। उन्होंने टोडाका राज्य अधिकार सैनिकबलसे प्राप्त किया। ककल सेठके समझानेपर अमराको प्राणदान देकर राज्यसे निकाल दिया। ककल सेठने मन्त्रित्व और दादू मियाँने सेनापतिका भार सँभाला।
कच्छनरेश रणमलकी राजकन्या मारूका पत्र पाकर
ढोलारायने प्रस्थान किया। वह कच्छके राजप्रासादमें
कुछ दिनतक ठहर गया। “यह लंबी कहानी है, बेटा! मैं अपनी रानी हंसावलीके साथ भगवान् गौतमेश्वरके पूजनके लिये गोहिलवाड़ गया था। दैवयोगसे तुम्हारे पिता भी सपत्नीक वहींपर थे। तुम और मारू दोनों अल्पवयस्क थे। तुम दोनोंकी मँगनी वहीं हो गयी। राजपूतकन्या दूसरी बार विवाह नहीं किया करती उसी स्थानपर रंगमें भंग भी हो गया था।’ ईहर बारहटने तुम्हारे पिताका यश नहीं गाया; वे अपकीर्ति नहीं सह सके। उन्होंने आत्मयज्ञ कर स्वर्ग प्राप्त कर लिया। रणमलने साँडनीपर बैठे ढोला-दम्पतिको आशीर्वाद दिया। साँडनी चल पड़ी।
चूडावावमें भूतोंका अड्डा है।’ मारूने पतिको सावधान किया ही था कि किसीने नंगी तलवारसे दोनोंपर आक्रमण किया। पर प्रहार करनेके पहले ही किसीने पीछेसे आक्रमणकारीके सिरके दो टुकड़े कर दिये।
‘दादू मियाँ, आप!’ ढोलारायने घूमकर पीछे देखा।
“हाँ महाराज! मैं जानता था कि अमरा बदला लेगा। उसे मारूके साथ आपके विवाहकी बात ज्ञात थी वह जानता था आप इस रास्तेसे मारूके साथ लौटेंगे।’ दादू मियाँने नमकका मूल्य पूरा किया। ‘आप देवता हैं, दादू मियाँ।’ दम्पति नतमस्तक थे।
-रा0 श्री0

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