एक सूफी फकीर मरने के करीब थे। रहते तो एक छोटे झोंपड़े में थे। लेकिन एक बड़ा खेत और एक बड़ा बग़ीचा भक्तों ने उनके नाम कर रखा था। उन्हें लगा…अब मैं मर जाऊँगा। ऐसे तो जिंदा रहते भी मुझे इस बड़ी जमीन की कोई जरूरत नही थी। वह झोंपड़ा काफी था। मरने के बाद….मुझे तुम इस झोंपड़े में दफ़ना देना। यह काफी है। तो उसने एक तख्ती लगवा दी, पास के बग़ीचे पर कि जो भी व्यक्ति “पूर्ण संतुष्ट” हो, उसको मैं यह बग़ीचा भेंट करना चाहता हूं।
अनेक लोग आये….लेकिन खाली हाथ लोट गये। खबर सम्राट तक पहुंची। एक दिन सम्राट भी आया…
सम्राट ने सोचा……..औरों को लोटा दिया, ठीक…..मुझे क्या लौटायेगा। मुझे क्या कमी है। मैं तो पूर्ण संतुष्ट हूं। सब जो चाहिए वो है मेरे पास। मेरे संतोष में वह कोई खोट नहीं निकाल पायेगा।
सम्राट भीतर गया और फकीर से कहा…. क्या ख्याल है मेरे विषय में। अनेक लोगों को लोटा चुके हो। सब लोगों में संतोष की कमी मिली। अब मेरे विषय में आपकी क्या राय है। में चल कर आया हूं, आपकी शर्त सुन कर।
उस फकीर ने कहा…..अगर तुम संतुष्ट होते तो आते ही नहीं……आए ही क्यो ?
जो “पूर्ण संतुष्ट” होगा….उसके लिए है….जो आएगा ही नहीं और मैं उसके पास जाऊँगा। अभी वह आदमी इस गांव में नहीं है। वह यहां है ही नहीं। वह क्यों आयेगा।
एक ऐसा संतोष का क्षण भीतर घटित होता है। जब आपकी कोई अपनी चाह नहीं होती। दौड़ नहीं होती और आप अपने साथ राज़ी होते है। उस क्षण में परमात्मा आता है। आपको उसके द्वार पर मांगने नही जाना पड़ता। उस दिन उसकी मीठी वर्षा आपके उपर होती है।
A Sufi Fakir was about to die. He used to live in a small hut. But a big field and a big garden were named after him by the devotees. They thought… Now I will die. Even while I was alive, I had no need of this big land. That hut was enough. After death… you bury me in this hut. That’s enough. So he got a placard installed on the nearby garden that whoever is “completely satisfied”, I want to gift this garden to him. Many people came….but returned empty handed. The news reached the emperor. One day the emperor also came… The emperor thought…..had returned it to others, ok…..what will he return to me. What am I missing? I am completely satisfied. I have everything I want. He will not be able to find any fault in my satisfaction. The emperor went inside and said to the fakir…. What do you think about me? You have returned many people. There was a lack of satisfaction in all the people. What is your opinion about me now? I have come after listening to your condition. That fakir said…..if you were satisfied, you would not have come at all… why did you come? The one who will be “fully satisfied”….it is for him….the one who will not come and I will go to him. Now that man is not in this village. He is not here at all. Why would he come? One such moment of contentment happens within. When you have no desire of your own. There is no race and you agree with yourself. In that moment God comes. You don’t have to go to his door to beg. On that day its sweet rain falls on you.