श्रीकृष्ण “आत्माराम” कहे जाते हैं…वेदों ने ये नाम श्रीकृष्ण को दिया है ।
यानि जो अपनी आत्मा में ही रमण करता है उसे ही आत्माराम कहते हैं
अब श्रीराधा कौन हैं ? तो श्रीकृष्ण की जो आत्मा हैं वही तो श्रीराधा हैं…इसलिये आत्माराम की सहज रमणता आत्मा श्रीराधा में ही होगी…इसमें कुछ भी तो आश्चर्य नही है ।
अब उन्हीं श्रीराधा की रश्मिरूपा हैं उनकी सखियाँ…यानि श्रीराधा का ही रूप हैं ये सब…एक प्रकार से श्रीराधा ही हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण नित्य, निरतिशय, दिव्य कल्याण गुणगण निलय… और श्रीराधा साक्षात् प्रेम प्रसारिका… प्रेम प्रदात्री हैं…इसलिये श्रीराधा के साथ रमण की अभिलाषा में सदैव श्रीकृष्ण उत्सुक दिखाई देते हैं…जो कहीं भी, कुछ भी आरोपित न होकर सहज ही है…बिल्कुल सहज…क्यों कि आत्माराम अपनी आत्मा से रमण की इच्छा न करे… तो उसका आत्माराम होना सार्थक कैसे हुआ ?
चलिये ! उन्हीं आत्माराम श्यामसुन्दर की आत्मा श्रीजी के लिये जो तड़फ़ है…और आज से नही अनादिकाल से ही है…वो अद्भुत है…हम सब उसका रसास्वादन कर रहे हैं…
आइये ! आज निकुञ्ज में जो दीपावली मनाई जा रही है…उसका आनन्द लेते हैं…चलिये ! मेरे साथ ।
एकाएक “निकुञ्ज” प्रकाश से आलोकित हो उठा था…
हजारों दीपमालिकाएं जगमगा रही थीं ।
युगलवर ने जैसे ही इस आलोक को देखा…उन्हें उत्सुकता हुयी ।
तब रंगदेवी सखी ने हाथ जोड़कर कहा…हे युगलवर ! आज दीपावली है…देखिये ना ! कैसे पूरा श्रीधाम जगमगा रहा है ।
और आपके जरीदार वस्त्र भी इस प्रकाश के कारण जगमग कर रहे हैं… आपका मुखमण्डल भी और तेजपूर्ण हो गया है ।
हे प्रियाप्रियतम जु ! अब आप “दीपदान” करने के लिये यमुना के पुलिन में चलिये…और वहीं “प्रकाश कुञ्ज” का निर्माण भी किया गया है… आप युगलवर वहीं विराजकर दीपावली का आनन्द लीजियेगा ।
रंगदेवी सखी ने बड़ी विनम्रता से युगलसरकार से प्रार्थना की…तो युगलवर बड़े आनन्दित हो चल दिए…सखियाँ पीछे पीछे चल दी थीं ।
अनन्त अनन्त दीपमालिकाएं सजा रखी थीं सखियों ने ।
चौक पर, कुञ्जों पर, मार्ग पर…और यमुना पुलिन पर…ऐसी दिव्य शोभा हो रही थी निकुञ्ज की जिसका वर्णन करना कठिन है ।
युगलसरकार के यमुना पर आते ही…सखियों ने गायन शुरू कर दिया था…
“आजु दिवारी की निशि नीकी !
कोटि कोटि राका रजनी की, देखि भई दुति फीकी !! “
सखियों ने वीणा मृदंग सारंगी से गायन शुरू कर दिया था ।
जिधर देखो प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा था…
सखियों ने स्थान स्थान पर दीये जला दिए थे…और उन दीयो में गौ का घी और साथ साथ सुगन्धित इत्र भी डाल दिया था जिसके कारण पूरा निकुञ्ज वन आज सुगन्ध से भी महक
श्रीजी और लाल जु… दोनों ही निकुञ्ज की ये शोभा देखकर मन्त्र मुग्ध से हो गए थे…और स्तब्ध हो, खड़े ही रहे ।
रंगदेवी युगल की शोभा देखती हैं…फिर निकुञ्ज की शोभा देखते हुए कहती हैं…आहा ! सखी ! देखो तो दीप मालिकाएं जगह जगह पर कैसे जल रही हैं…उनकी आभा से कैसा अद्भुत जगमगा रहा है ये हमारा निकुञ्ज…पर इसके साथ साथ ही इस प्रकाश में हमारे युगलवर का जो स्वरूप है…वो तो ऐसा चमक रहा है मानो कामदेव और रति के चित्त में भी इनको देखकर चंचलता प्रकट हो जाए… आहा ! क्या रूप है… सखियाँ अपलक बस निहारती ही जा रही हैं ।
ललिता सखी आनन्दित होकर कहती हैं – दीपमालिका के प्रकाश में हमारी श्री किशोरी जी का अंग कैसा चमक रहा है…जैसे सुवर्ण अग्नि में चमक उठता है…ऐसा लग रहा है…
अरे नही…रंगदेवी ! देख तो सही… हमारी श्रीजी की जरी का लहंगा दीपमालिका के प्रकाश में ऐसा जगमग कर रहा है…कि… अपलक देखा भी नही जा रहा…और मणि माणिक्य, श्रीजी की चन्द्रिका, कैसी चमक रही है…दीप के प्रकाश में…आहा ! सखी ! मैं तो इससे ज्यादा कुछ कह ही नही पाऊँगी…मैं तो बस इन्हें निहार रही हूँ…इतना कहकर ललिता सखी फिर युगलवर को निहारने लगीं थीं ।
अरी सखियों ! बहुत अबेर हो रही है…अब चलो… युगल के हाथों दीप दान करवाओ…रंगदेवी ने अन्य सखियों को सावधान किया… नही तो सब देह सुध भूल ही गयीं थीं ।
हाँ हाँ…चलो…सखियों ने युगलवर को कहा… अब आप दोनों यमुना में दीप जलाकर इन दीपों को प्रवाहित करें ।
सखियों ने दीप जलाकर युगल के कर कमलों में देना शुरू किया…
और बड़े प्रेम से युगल उन दीपों को यमुना जी के जल में बहाने लगे… सखियाँ देख रही हैं…पंक्ति बद्ध कैसे बहे जा रहे हैं ये दीये…मानो ऐसा लग रहा है कि दीपों की माला ही यमुना जी को युगल ने धारण करवा दी हो…श्रीजी देखती हैं…दीये बहे जा रहे हैं…बड़ी प्रसन्न होती हैं…और उन दीयों को बहुत दूर तक देखती ही रहती हैं…यमुना बहुत आनन्दित हो…उछाल मारती हैं…तो श्याम सुन्दर कहते हैं…नही नही…हे यमुने ! आप शान्त रहो…नही तो ये बेचारे दीये डूब जायेंगे…श्रीजी लाल की बातें सुनकर मुग्ध हो लाल जु के मुखारविन्द की ओर ही देखती रहती हैं ।
यमुना शान्त हो जाती हैं…तब श्रीजी बहुत हँसती हैं ।
आज चारों ओर दीप ही दीप हैं…आज चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है ।
तब सखियाँ बड़े प्रेम से युगल सरकार को एक दिव्य प्रकाश कुञ्ज में ले आती हैं…जिस कुञ्ज में कई बड़े बड़े दीये जल रहे थे… नाना प्रकार के सुगन्धित तेलों से सुरभित दीये जल रहे थे वहाँ, वह कुञ्ज उन दीयों से सुगन्धित हो उठा था ।
एक सिंहासन था…उस सिंहासन पर युगलवर को विराजमान कराया ।
सखियों ने आनन्दित हो…तालियाँ बजायीं…और तभी सामने एक चौकी आ गयी…और उस चौकी पर चौपड़ बिछ गए ।
आज तो हार जीत होगी…पर किसकी होगी ये अब देखना है ।
सखियाँ हँसी…”चौपड़ में तो हमारी श्रीजी ही जीतेंगी”…पूरा निकुञ्ज प्रसन्नता में हँस रहा था ।
Shri Krishna is called “Atmaram”… Vedas have given this name to Shri Krishna.
Means the one who delights in his own soul is called Atmaram. Who is Shriradha now? So the soul of Shri Krishna is Shriradha… That’s why the spontaneous bliss of Atmaram will be in Shriradha only… There is nothing surprising in this.
Now the same Radha’s Rashmirupa are her friends…that is, all of them are the form of Sriradha…in a way they are Shriradha only.
Lord Shri Krishna Nitya, Nirtishay, Divya Kalyan Gungan Nilaya… and Shriradha Sakshat Prem Prasarika… Love Provider… That’s why Sri Krishna is always seen eager in the desire of Raman with Sriradha… Which is spontaneous without accusing anything anywhere… Exactly Sahaj… because Atmaram does not wish for Raman from his soul… then how is it meaningful for him to be Atmaram?
Move ! The yearning for Shreeji, the soul of the same Atmaram Shyamsundar… and not from today but from time immemorial… it is amazing… we all are relishing it…
Come on! The Diwali being celebrated in Nikunj today…let’s enjoy it…let’s go! with me . Suddenly “Nikunj” was illuminated with light…
Thousands of lamps were shining.
As soon as Yugalvar saw this light…he got curious.
Then Rangdevi Sakhi said with folded hands… O couple! Today is Diwali… see! How the whole Shridham is shining.
And your brocaded clothes are also shining because of this light… Your countenance has also become brighter.
Hey dear one! Now you go to the Pulin of Yamuna to donate “Deepdaan”… and “Prakash Kunj” has also been constructed there… You will sit there together and enjoy Diwali.
Rangdevi’s friend humbly prayed to the couple’s government… then the couple left very happy… the friends followed behind. Friends had decorated infinite infinite lamps.
On the square, on the gates, on the road… and on the Yamuna bridge… Nikunj was being adorned in such a divine way that it is difficult to describe.
As soon as the Yugalsarkar came on the Yamuna… the friends started singing…
“Aaj Diwali Ki Nishi Niki ! Koti koti raka rajni ki, dekhi bhai duti fiki!! “
The friends started singing with Veena Mridang Sarangi.
Wherever you look, only light is visible.
The friends had lit lamps at various places…and in those lamps, cow’s ghee as well as fragrant perfume had also been added, due to which the entire Nikunj forest was fragrant today. Shreeji and Lalju… both were mesmerized seeing this beauty of Nikunj… and remained stunned.
Rangdevi sees the beauty of the couple…then looking at the beauty of Nikunj says…Aha! Friend! See how the lamp holders are burning at different places… How amazingly this Nikunj of ours is shining with their aura… But along with this the form of our couple in this light… It is shining as if of Cupid and Rati. Even on seeing them, restlessness should appear in the mind… Aha! What a form… Friends are just staring at you.
Lalita Sakhi rejoices and says – How the body of our Shri Kishori ji is shining in the light of Deepmalika… as gold shines in the fire… it looks like…
Oh no…Rangdevi! Look, our Shreeji’s brocade lehenga is shining so brightly in the light of Deepmalika… that… you can’t even see the eyes… and the gem, Shreeji’s moon, how it is shining… in the light of the lamp… Aha! Friend! I will not be able to say anything more than this…I am just looking at him… Having said this, Lalita Sakhi again started looking at the couple. Hey friends! It is getting very late… now come on… get lamps donated by the couple… Rangadevi cautioned other friends… otherwise everyone had forgotten their body care.
Yes yes… come on… the friends said to the couple… Now both of you light a lamp in the Yamuna and make these lamps flow.
The friends lit lamps and started giving the couple’s taxes in lotuses…
And with great love, the couple started shedding those lamps in the water of Yamuna ji… The friends are watching… how these lamps are being flown in a row… It seems as if the couple has made Yamuna ji wear the garland of lamps. …Shriji sees…the lamps are flowing…she becomes very happy…and keeps looking at those lamps for a long distance…May Yamuna be very happy…she jumps…then Shyam Sundar says…no no…O Yamune! You keep calm…otherwise these poor lamps will be drowned…Lal, who is mesmerized by listening to Shreeji Lal’s words, keeps on looking at the face of Ju.
Yamuna becomes calm… then Shreeji laughs a lot.
Today there are only lamps everywhere…Today there is only light everywhere.
Then the sakhis lovingly bring the couple to the divine Prakash Kunj… in which many big lamps were burning… lamps scented with different types of aromatic oils were burning there, that Kunj was fragrant with those lamps. .
There was a throne… The couple was made to sit on that throne.
The friends rejoiced… clapped… and then a post came in front of them… and quadrupeds were spread on that post.
Today there will be defeat and victory… But whose will it be, it has to be seen now.
The friends laughed…”Only our Shreeji will win in the chaupar”…the whole Nikunj was laughing in happiness.