एक समर्थ गुरु अपने अंतकरण से शिष्य के अंतकरण में अपनी सारी शक्तियां उतार देते हैं, और समय के साथ धीरे-धीरे शिष्य को गुरु की वह सारी शक्तियां प्राप्त हो जाती है, आत्मज्ञानी गुरु की यही पहचान होती है,
शिष्य धीरे-धीरे मनन चिंतन के द्वारा गुरु में इस कदर खोया रहता है कि उसे पता भी नहीं चलता और गुरु की सारी शक्तियां बड़ी आसानी से उसके अंतकरण में उतर आती है, और एक दिन वह अपने गुरु की समस्त शक्तियों और ज्ञान का अनुभव अपने अंतकरण में ही करने लगता है,
इसी परंपरा को गुरु शिष्य परंपरा करके हैं क्योंकि शिष्य गुरु को हर पल याद करते हुए गुरु में इस कदर से खो जाता है कि वह गुरु के समान ही हो जाता है गुरु की सारी शक्ति सारा ज्ञान स्वभाव सब कुछ शिष्य के अंतकरण में उतर आता है, और 1 दिन शिष्य गुरु के समान ही हो जाता है,
A capable Guru releases all his powers from his conscience into the disciple’s conscience, and with time gradually the disciple acquires all the powers of the Guru, this is the identity of an enlightened Guru,
The disciple gradually becomes so lost in the Guru through meditation that he does not even realize it and all the powers of the Guru easily enter his conscience, and one day he experiences all the powers and knowledge of his Guru. I start doing it in my heart,
This tradition is followed by the Guru-disciple tradition because the disciple remembers the Guru every moment and gets lost in the Guru to such an extent that he becomes like the Guru. All the power of the Guru, all the knowledge, nature, everything comes into the conscience of the disciple. , and one day the disciple becomes like the teacher,