गुरु या सद्गुरु यह विषय खोजने का विषय ही नहीं है !!!
गुरु खोजे नही जाते , न ही गुरु ढूंढना है ,,तथा ढूंढने से गुरु मिलते भी नही हैं ….
अपितु
आपकी अपनी निरंतर साधना सफल होने पर गुरुजन स्वयं आपके पास आते हैं ! वही गुरु या सद्गुरू होते हैं !!
वह स्वःयम् आपके पास आयेंगे किंतु उनको पहचानना ही आपका कार्य होता है !!
शुरुआत में सद्गुरू स्तुति नही करेंगे अपितु थोड़ा अपमानित भी करेंगे ,,,वही परीक्षा है , बाद में वही आपको गोद भी लेंगे !!
सद्गुरू कैसा चाहिए ?? ये कार्यक्षेत्र आपका नही है,,
अपितु शिष्य कैसा हो यह सद्गुरू का कार्य है !!
शिष्य लायक है या नहीं ये सद्गुरू निच्छित करते हैं, आप नही !! यही आध्यात्म है, और आध्यात्म का प्रारंभ है !
सद्गुरू स्वयं आपसे आकर मिलेंगे अतः उनकी परिक्षा मत लेना !!
गुरुजन तक पहुंचने के लिए स्वयं को उत्तकृष्टि बनाना पड़ता है स्वयं को उत्तकृष्टि करने के लिए करनी होती है “साधना” ! साधना से पूर्व प्रार्थना आरंभ करनी होती है !
प्रार्थना आरंभ करने के लिए आपको गुरु की आवश्यकता नहीं अपितु मौन वार्तालाप / संवाद किया जाता है संवाद किससे… ??? स्वयं से या अपने देवता से .!