आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। धर्मशास्त्रों में इस दिन ‘कोजागर व्रत’ माना गया है। इसी को ‘कौमुदी व्रत’ भी कहते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, क्योंकि कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है। इस दिन श्री कृष्ण को ‘कार्तिक स्नान’ करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारम्भ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए।
शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं। और न ही धूल-गुबार। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।
प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है।
इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।
रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।
पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।
पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के १३ दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।
शरद पूर्णिमा की कथा-
एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन के जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें जीवित रहतीं।
एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दुख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया- ‘तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।’ तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया।
कुछ समय बाद उसके लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली- ‘तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता।’
तब छोटी बहन बोली- ‘यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।’ इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।
पौराणिक मान्यताएं एवं शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार भर में उत्सव का माहौल। इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है ‘शरद पूनम’।
वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें १६ कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है।
प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है।
इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है। रात्रि १२ बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात्रि १२ बजे बाद किया जाता है।
इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है। एक मान्यता प्रसिद्ध है कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था।
शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरी व्रत आश्विन शुक्ल मध्य रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा में किया जाता है। इस दिन खीर बनाकर रात्रि काल में चन्द्र देव के सामने चांदनी में व मां लक्ष्मी को अर्पितकर अगले दिन प्रात: काल में ब्राह्मण को प्रसाद वितरण व फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण करने का विधि-विधान है।
इस दिन एरावत पर आरूढ़ हुए इन्द्र व महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इससे अवश्य ही लक्ष्मी और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस प्रकार यह शरद पूर्णिमा, कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं मां लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
‘ॐ इन्द्राय नमः।’
‘ॐ कुबेराय नमः।’
ॐ धनदाय नमस्तुभ्यं, निधि-पद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्-प्रसादान्ने, धन-धान्यादि-सम्पदः।।
सभी स्नेहीजनों को शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं !
The full moon of Shukla Paksha of Ashwin month is called Sharad Purnima. It is believed that only on this day in the entire year the moon is of sixteen phases. In religious scriptures, this day is considered ‘Kojagar Vrat’. This is also called ‘Kaumudi Vrat’. This day of Rasotsav has actually been determined by Lord Krishna for the welfare of the world, because it is said that on this night Sudha falls from the rays of the moon. On this day, while taking the ‘Kartik Snan’, Shri Krishna remembered the boon he had given on the occasion of Rag Haran to the girls who worshiped the Goddess with the wish of getting him (Krishna) as their husband and he played the flute and helped the Gopis on the banks of Yamuna. Composed a raas with. On this day, special services and worship are performed in temples.
According to religious belief, bathing and fasting starts from Sharad Purnima itself. Mothers worship Gods and Goddesses with good wishes for their children. On this day the Moon comes very close to the Earth. Kartik fast also starts from Sharad Purnima. After marriage, the rule of fasting on the full moon (Purnmasi) should be started from Sharad Purnima.
The weather remains very clear in autumn. There are no clouds in the sky on this day. Nor any dust. Traveling on this night and the moonlight falling on the body is considered very auspicious.
Those who fast on every full moon day also worship the moon and eat food. Shiva-Parvati and Kartikeya are also worshiped on this day. This full moon is also the day of observing fast along with Kartik bath and worshiping Radha-Damodar.
On this day, one should take a morning bath and adorn the deity with beautiful clothes and ornaments and worship him with Aavahan, Asan, Aachaman, Vastra, Gandha, Akshat, Flowers, Incense, Lamp, Naivedya, Tambul, Supari, Dakshina etc.
Kheer made from cow milk should be mixed with ghee and sugar and offered to God at midnight.
When the full moon is situated in the middle of the sky, worship it and after offering Kheer as offering, keep a vessel full of Kheer in the open moonlight at night and eat it the next day and give it to everyone.
The story should be narrated after fasting on the full moon day. Before listening to the story, put water in a pot, wheat in a glass, Roli and rice in both the leaves and worship the Kalash and offer Dakshina. Then after applying Tilak, take 13 grains of wheat in your hand and listen to the story. Then, after touching Mishrani’s feet with hands over the glass of wheat, give the glass of wheat to her. Offer water from the lotus to the moon at night.
Story of Sharad Purnima- A moneylender had two daughters. Both of them used to fast on the full moon day. The elder sister observed the fast completely but the younger sister observed it incompletely. Whatever child the younger sister had, she would die as soon as she was born. But all the children of the elder sister remained alive.
One day the younger sister called the big wise men and told them about her sorrow and asked them the reason. The pundits told – ‘You observe an incomplete fast on the full moon day, that is why your children die prematurely. By observing a proper fast on the full moon day, your children will remain alive. Then, following the orders of the pundits, he observed the full moon fast as per the rituals.
After some time she had a son, but he too died soon. Then he made the boy lie down on his knees and covered him with a cloth. Then he called his elder sister and gave her the same seat to sit. When the elder sister started sitting, as soon as her clothes touched the child’s, the boy came alive and started crying. Then the elder sister got angry and said – ‘You wanted to defame me. If I had sat down, the boy would have died.
Then the younger sister said – ‘He was already dead.’ I am alive because of your luck. Both of us sisters observe a fast on the full moon day, you complete it and I am incomplete, due to which my children die. But due to your virtue this child has come alive. After this, he made the trumpet sound in the entire city that from today onwards everyone should observe the full fast of Purnima, this child will give happiness.
Mythological beliefs and autumn, full moon, festive atmosphere all over the world. If there is a name or festival for the combined form of all these, then it is ‘Sharad Poonam’. That day when one waits for that hour of the night in which the moon with its 16 phases showers nectar on the earth. This beautiful combination of old age of rainy season and childhood of autumn fascinates everyone.
Since ancient times, Sharad Purnima is considered a very important festival. Hemant season begins with Sharad Purnima.
On this night the moon is in all its glory and showers nectar on the earth. In order to ensure that humans get the benefit of this nectar rain that occurs at 12 o’clock in the night, kheer or milk is kept under the sky at the time of moonrise, which is consumed after 12 o’clock in the night.
Apart from this, Kheer is also the favorite food of the Gods. There is a famous belief that on this day Lord Shri Krishna created Maharasa with the Gopis.
Sharad Purnima i.e. Kojagari fast is observed on Ashwin Shukla midnight Vyappini Purnima. On this day, there is a ritual to make kheer and offer it to the Moon God in the moonlight at night and to Goddess Lakshmi, distribute the prasad to the Brahmins the next morning and then take the prasad yourself.
On this day, Indra and Mahalakshmi, mounted on Airavat, are worshipped. This definitely leads to the attainment of Lakshmi and prosperity. Thus, this Sharad Purnima, Kojagar Vrat is going to satisfy Lakshmiji. Pleased with this, Mother Lakshmi not only gives prosperity in this world but also grants salvation in the next world after the end of the body.
‘Om Indraaya Namah. ‘Om Kuberaaya Namah.’
O giver of wealth, I offer my obeisances to you, and to the lord of the lotus of treasures. May they be by your grace, wealth, grain and other riches.
Happy Sharad Purnima to all the loved ones!