[4]भगवान् से मानसिक
रमण की विशेषता

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श्री हरि: ||

गत पोस्ट से आगे …
भगवान् की सारी क्रियाओं को देखकर उनके भक्त मुग्ध होते थे | यह देखकर, विचार कर हम भी मुग्ध होवें तो मन उन्हें छोड़कर नहीं जा सकता | उनकी मुखारविन्द की ओर देखें कि वे मधुर वाणी से बोल रहे हैं, ऐसा मन-ही-मन में ध्यान रखें कि भगवान का शरीर दिव्य है, अमृतमय है, आनन्दमय है | प्रत्येक अंग में अलौकिक चमक है, अलौकिक रस भरा है, बड़ा ही मधुर है | सारी इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसा दिव्य मधुर है | ऐसी माधुर्य मूर्ति को याद करके मुग्ध होवे | जैसे बर्फ शीतल होती है, वह बर्फ शीत की मूर्ति है, इसी तरह भगवान् रस की मूर्ति हैं, आनन्द की मूर्ति हैं, प्रेम की मूर्ति हैं | बर्फ छूने से ठण्ड की प्रतीति होती है, इसी तरह भगवान् को छूने से आनन्द प्रतीत होता है | स्त्री के शास्त्रों में आठ प्रकार के मैथुन, रमण क्रिया बतलायी गयी है | उसी प्रकार प्रभु के साथ में जो मिलन है, उसमे आठवीं क्रिया बाद दे दो | सात प्रकार की बात प्रभु से मन से करे | यानी परमात्मा के साथ ऐसे ही करे, वह आठ बातें काम का उद्दीपन करने वाली हैं |
उनकी वाणी मैं सुन रहा हूँ, वे बोल रहे हैं | भगवान् के साथ एकान्तवास है | वे मुझे देख रहे हैं, मैं उन्हें देख रहा हूँ | जैसे मीराबाई भगवान् को कमरे में देखा करती | इसी प्रकार भगवान् के शरीर को देख रहा हूँ | नेत्र से नेत्र मिला रहा हूँ | उससे उनके द्वारा एक अलौकिक शक्ति मेरे में प्रवेश कर रही है | उनके सारे गुण प्रवेश कर रहे हैं | नेत्रों के द्वारा दर्शन हो रहा है | सारे अंगों के दर्शन हो रहे हैं | यह दर्शनों से रमण हुआ | दर्शन, श्रवण, एकान्तवास, चौथा स्पर्श – भगवान् के चरणों को छूने से प्रेम की, आनन्द की लहरें उठने लग जायँ | यह स्पर्श के द्वारा रसपान

Sri Hari: ||
Following on from the last post…………
His devotees were mesmerized by seeing all the activities of the Lord. Seeing and thinking about this, if we are also fascinated, then the mind cannot leave them. Look at His countenance that He is speaking in a sweet voice, keep in mind that the body of the Lord is divine, nectarine, blissful. There is alokik luster in every organ, alokik juice is filled, it is very sweet. It is such a divine sweet that is loved by all the senses. Be mesmerized by remembering such an idol of sweetness. As ice is cold, that ice is the form of cold, similarly God is the form of Rasa, the form of joy, the form of love. Touching snow gives a feeling of cold, similarly touching God gives a feeling of joy. Eight types of sexual intercourse, Raman Kriya have been told in the scriptures of women. In the same way, in the meeting with the Lord, give it after the eighth action. Do seven types of talks with the Lord from your heart. Means, do like this with God, those eight things are going to stimulate sex.
I am listening to his voice, he is speaking. There is solitude with God. They are looking at me, I am looking at them. As Mirabai used to see God in the room. Similarly I am seeing the body of God. I am meeting eye to eye. From him a supernatural power is entering me through him. All his qualities are entering. Darshan is happening through the eyes. All the organs are visible. He was delighted with the darshan. Vision, hearing, solitude, fourth touch – by touching the feet of God, waves of love and joy start rising. It is raspan by touch.
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Rest in upcoming post.
Revered Jaidayal Goyandka’s book *Janma-Maran Se Riddhika* from book code 1790, published by Geetapress, Gorakhpur.
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