गुरु भक्ति

सहजो की कुटिया के बाहर प्रभु प्रकट हुए और बोले हम स्वयं चलकर आऐ हैं तुम्हे हर्ष नही? सहजो ने कहा प्रभु आपके दर्शन की कामना नही थी। प्रभु ने कहा ऐसा तेरे पास क्या है? सहजो बोली मेरे पास सद्गुरु है मैने तुम्हे अपने सद्गुरु मे पा लिया है यदि मैं गुरुदेव से कहती तो वह कभी का आपको उठाकर मेरी झोली में डाल देते। परमात्मा बोले मुझे अदंर आने के लिए नही कहोगी? सहजो बोली मेरी कुटिया में एक ही आसन है और उस पर मेरे सदगुरु विराजते हैं। प्रभु भूमि पर बैठ गए, प्रभु ने कहा सहजो मुझसे चाहो तो कुछ माँग लो। सहजो बोली मेरे जीवन में कोई कामना नही है, आप तो स्वयं एक दान हो जिसे मेरा दाता सदगुरु किसी को भी जब चाहे दान कर देते है। तुमने तो जन्म मरण, रोग भोग मे डाला, मेरे सदगुरु ने कृपा कर सब से छुटकारा किया। प्रभु बोले कुछ सेवा ही दे दे तो सहजो ने कहा प्रभु, मेरे सद्गुरु आने वाले हैं, जब मैं उन्हें भोजन कराऊँ तो आप उनके पीछे खड़े होकर चवंर डुला सकते हो? कथा कहती है प्रभु ने सहजो के गुरु चरणदास पर चवंर डुलाया था
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The Lord appeared outside Sahjo’s cottage and said, “We have come on our own, aren’t you happy?” Sahajo said, Lord, I did not wish to see you. The Lord said, what do you have like this? Sahjo said that I have a Sadguru, I have found you in my Sadguru, if I had told Gurudev, he would have picked you up and put you in my lap. God said, won’t you ask me to come inside? Sahjo said, there is only one seat in my cottage and my Sadguru sits on it. Prabhu sat on the ground, Prabhu said, Sahjo, ask anything from me if you want. Sahjo said that there is no wish in my life, you yourself are a donation which my donor Sadguru donates to anyone whenever he wants. You put me in the suffering of birth and death, disease, my Sadguru blessed me and got rid of everything. Prabhu said, at least give some service, then Sahajo said, Prabhu, my Sadguru is about to come, when I feed him, can you stand behind him and shake him? The story says that the Lord had made Charan Das, the Guru of Sahjo

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