गुरुपूर्णिमा के पावन उत्सव पर भारत की समस्त गुरुसत्ता, ऋषिसत्ता को नमन करते हुए समस्त देशवासियों को श्री गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं


3जुलाई, 2023 (सोमवार )
पूज्य सद्गुरुदेव आशीषवचनम्
।। श्री: कृपा ।
🌿 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने गुरुपूर्णिमा के पावन उत्सव पर भारत की समस्त गुरुसत्ता, ऋषिसत्ता को नमन करते हुए समस्त देशवासियों को श्री गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए गुरु शब्द की महनीयता का प्रतिपादन किया ..! उन्होंने कहा – ये देश गुरुओं का देश है, सत्पुरुषों का देश है। भारत सदियों से विश्व गुरु रहा है। गुरु अर्थात् विचार सत्ता, ज्ञान सत्ता और प्रकाश सत्ता है। जिसके पास विचारों का प्रकाश है, उसी का जीवन सार्थक है। ज्ञान हमारे भीतर में छुपी अनन्तता और विराटता का बोध कराने वाला तत्व है। मनुष्य अज्ञेय, अपराजित और अनन्त है। इसलिए उसकी मानसिक शक्तियाँ भी अनन्त हैं। ईश्वर की सत्ता उसमें है, इसलिए वह श्रेष्ठ है। जो इस अजेय, अनन्त सामर्थ्य से हमारा परिचय करा दे, उसी तत्व का नाम गुरु है। विचार, विवेक, ज्ञान और उसका अभ्यास ही गुरुतत्व का प्राकट्य है। इसलिए गुरुतत्व का अर्थ है – जिसे नित्य, विवेक, विचार और अभ्यास के साथ अनुभव किया जा सके। आप कैसा बनना चाहते हैं, यह आपके ऊपर निर्भर करता है। जैसा भी आप बनना चाहते हैं, उसकी सामर्थ्य आपके भीतर विद्यमान है। हाँ, उस असीमित सामर्थ्य से परिचय निश्चित तौर पर गुरु ही कराते हैं। सद्गुरु एक ऐसा प्रथम दीप हैं, जिससे असंख्य दीप प्रज्ज्वलित हो सकते हैं। दुनिया में एक सद्गुरु हजारों-लाखों सुपात्र शिष्यों को ज्ञानामृत और आशीष देकर अपने जैसे तमस् का तिरोहण करने वाले सूर्य बना सकते हैं, लेकिन अनेक शिष्य मिलकर एक सद्गुरु का स्वरूप तैयार नहीं कर सकते। लाखों-करोड़ों वर्षों की तपस्या के बाद किसी व्यक्ति के भीतर गुरुतत्व प्रकट होता है। गुरू ही परमात्मा का दूसरा स्वरूप है; क्योंकि गुरू बिना ज्ञान अर्जित नहीं होता और बिना ज्ञान के हम परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। गुरू कृपा मात्र से हमारा जीवन आनन्द एवं प्रकाश से परिपूर्ण हो जाता है। गुरू की दिव्य दृष्टि से हम अचेतन से चेतन की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर एवं स्वार्थ से परमार्थ की ओर अग्रसर होते हैं। सद्गुरु की उपस्थिति में ज्ञान पल्लवित होता है और दु:ख क्षीण होने लगता है। बिना कारण आपका मन प्रसन्न रहता है और सभी योग्यताएं बढ़ जाती हैं। जब जीवन में संपूर्णता होती है, तब कृतज्ञता का भाव उदित होता है। गुरु के आदर से आरंभ होकर अंत में हम जीवन की सभी वस्तुओं का आदर-सत्कार करने लगते हैं। इस प्रकार गुरुपूर्णिमा भक्ति और कृतज्ञता दोनों के उदित होने का उत्सव मनाने का अवसर प्रदान करता है …।

🌿 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मानव का लक्ष्य भगवान को पाने के लिए ज्ञान प्राप्त करना है। इसके लिए गुरु की आवश्यकता होती है। किसी भी प्रकार की कला, संस्कृति, शास्त्र आदि सीखने के लिए शिक्षक की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करने के लिये एवं कल्याण के पद पर चलने की प्रेरणा भी गुरू से ही मिलती है। समस्त लोक-व्यवहार को पूर्ण करते हुए परमात्मा की ओर प्रवृत्त हो आत्म-कल्याण को प्राप्त करना ही गुरू पूजा का प्रथम लक्ष्य है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को स्वार्थ त्याग कर गुरू के बताये मार्ग पर चलकर समाज-कल्याण के लिये सदैव तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरूपूर्णिमा अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पर्व है; क्योंकि गुरू ही परमात्मा से मिलने का मार्ग शिष्य को दिखाते हैं और गुरू के सानिध्य में साधना करने से जीवन में निष्काम भक्ति अवतरित होती है, जो मोक्ष का मार्ग दिखाती है। जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों के बाद ही सद्गुरू की प्राप्ति होती है। इसलिये गुरू की सच्चे मन से सेवा करनी चाहिये और उनसे ज्ञान की प्राप्ति कर जीवन की समस्त विसंगितयों का शमन करना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करते हैं, सद्गुरूदेव उनकी सभी मनोकामनायें पूर्ण करते हैं …।

🌿 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा कि गुरुपूर्णिमा वस्तुत: अनुशासन एवं अनुबन्ध का पर्व है। आज के दिन ही गुरु अपने शिष्यों को ईशानुशासन समझाते हैं और उस पर चलने की प्रेरणा देते हैं। सद्गुरु चरणों का ध्यान, उनका पूजन, वंदन, सेवा और सत्कार करते समय मन में जितनी श्रद्घा-आस्था और प्रेम भाव होगा उतनी ही शीघ्रता से कल्याण के कपाट खुलते जाएंगे। गुरु अपने शिष्य को एक ऐसी सुदृष्टि प्रदान करते हैं जिससे उसकी सृष्टि बदल जाती है, ऐसी सुदिशा प्रदान करते हैं, जिससे उसके जीवन की दशा बदल जाती है। गुरु और शिष्य का रिश्ता समर्पण के आधार पर टिका होता है। जीवन-समर को पार करने के लिए सद्गुरु रूपी सारथी का विशेष महत्व होता है। शिष्य के लिए तो सद्गुरु साक्षात् भगवान ही होते हैं। वह समय-समय पर समुचित मार्गदर्शन कर शिष्य को आगे बढ़ाते हैं। विशेषकर आध्यात्मिक सफलता की दिशा में बढ़ना हो तो गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य रूप से लेना पड़ता है। आत्मा-परमात्मा संबंधी ज्ञान गुरु के सहारे ही होता है। पुस्तकें पढ़ कर कोई उपदेशक तो बन सकता है, पर उसमें गहराई तक उतर कर हीरे-मोती निकालने का ज्ञान तो कोई सद्गुरु ही देता है। जैसे-जैसे आप गुरु के साथ चलते हैं, आप अज्ञान के अंधेरे से दूर, अस्तित्व के प्रकाश में चलते हैं। आप अपने जीवन की सभी समस्याओं को पीछे छोड़ते हुए जीवन के चरम अनुभवों की ओर बढ़ते हैं …।



July 3, 2023 (Monday) Respected Sadgurudev Ashishvachanam , Sri: Please. 🌿 Respected “Sadgurudev” ji, while saluting all the gurus and sages of India, on the auspicious occasion of Gurupurnima, conveyed the greatness of the word Guru while wishing all the countrymen on Shri Gurupurnima..! He said – this country is a country of gurus, a country of good men. India has been the world guru for centuries. Guru means thought power, knowledge power and light power. The one who has the light of thoughts, his life is meaningful. Knowledge is the element that makes us realize the infinity and vastness hidden within us. Man is unknowable, undefeated and eternal. Therefore his mental powers are also infinite. The power of God is in him, that’s why he is the best. The one who introduces us to this invincible, eternal power, the name of that element is Guru. Thought, discretion, knowledge and its practice is the manifestation of Guru Tattva. That’s why Guru Tattva means – that which can be experienced daily, with discretion, thought and practice. How you want to be is up to you. The power to become whatever you want to be is within you. Yes, it is certainly the Guru who introduces us to that limitless potential. Sadhguru is such a first lamp, from which innumerable lamps can be lit. In the world, a Sadguru can make thousands and millions of deserving disciples into a sun like him who overcomes Tamas by giving knowledge and blessings, but many disciples together cannot prepare the form of a Sadguru. After millions and millions of years of penance, the Guru element appears within a person. Guru is the second form of God; Because without Guru knowledge is not acquired and without knowledge we cannot attain God. Only by Guru’s grace our life becomes full of joy and light. With the divine vision of the Guru, we move from unconscious to conscious, from ignorance to knowledge and from selfishness to God. In the presence of Sadguru, knowledge flourishes and sorrow starts diminishing. Without any reason your mind remains happy and all your abilities increase. When there is perfection in life, then the feeling of gratitude arises. Starting with the respect of the Guru, in the end we start respecting all the things of life. Thus Gurupurnima provides an opportunity to celebrate the dawning of both devotion and gratitude….

🌿 Respected “Acharyashree” ji said – The goal of human is to get knowledge to get God. For this a Guru is required. To learn any kind of art, culture, scripture etc a teacher is required. Similarly a Guru is needed to gain spiritual knowledge. He said that the inspiration to remove the darkness of ignorance and to walk on the path of welfare also comes from the Guru. The first goal of worshiping Guru is to achieve self-welfare while fulfilling all public behavior and turning towards God. That’s why every person should leave selfishness and follow the path shown by the Guru and always be ready for the welfare of the society. He said that Gurupurnima is the festival of going from darkness to light; Because it is the Guru who shows the disciple the way to meet God and by doing spiritual practice in the presence of the Guru, selfless devotion incarnates in life, which shows the path of salvation. Sadguru is attained only after the rituals of birth after birth. That’s why one should serve the Guru with a true heart and by getting knowledge from him, all the anomalies of life should be eradicated. Those who do this, Sadgurudev fulfills all their wishes….

🌿 Respected “Acharyashree” ji said that Gurupurnima is actually a festival of discipline and commitment. It is on this day that the Guru explains Ishanushasan to his disciples and inspires them to follow it. While meditating on the feet of Sadhguru, worshiping him, worshiping him, serving him and doing hospitality, the more reverence-faith and love you have in your mind, the more quickly the doors of welfare will open. Guru gives such a good vision to his disciple, which changes his creation, provides such a good direction, which changes the condition of his life. The relationship between Guru and disciple rests on the basis of dedication. The charioteer in the form of Sadguru has special importance to cross the life-summer. For the disciple, Sadguru is the real God. He takes the disciple forward by giving proper guidance from time to time. Especially if you want to move towards spiritual success, then the guidance of a Guru has to be taken compulsorily. The knowledge of the soul and the Supreme Soul is attained only with the help of a Guru. One can become a preacher by reading books, but only a Sadguru gives the knowledge to extract diamonds and pearls by going deep into them. As you walk with the Guru, you walk away from the darkness of ignorance, into the light of existence. You move towards the peak experiences of life leaving behind all the problems of your life….

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