[17]हनुमान जी की आत्मकथा

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आज के विचार

( लंका में मुझे मेरा भाई मिला – हनुमान )
भाग-17

तब हनुमन्त कहा सुनु भ्राता
देखी चहहुँ जानकी माता..
(रामचरितमानस)

“श्रीराम जय राम जय जय राम”

रात्रि का तीसरा प्रहर भी बीत चुका था…

मैं हताश और निराश-सा होने लगा था…

भरत भैया ! तभी मुझे ये विजय मन्त्र सुनाई दिया लंका में ।

(हनुमान जी अपनी आत्मकथा सुना रहे हैं भरत जी को)

मैं जब गया… उस ध्वनि के पीछे-पीछे तो…

एक हरिमंदिर-सा मेरी आँखों के सामने था…

मेरे मन में कई प्रश्न उठ रहे थे… यहाँ लंका में ये सज्जन कहाँ से आ गया ?

और इसका प्रभाव कितना होगा लंकेश पर… कि इसके आचार को लंका जैसी नगरी में भी स्वीकार किया गया था ।

ये होगा कौन ?… मैं वही तुलसी के पौधों के पास में बैठ कर ये सोच ही रहा था कि… “श्रीराम जय राम जय जय राम” ।

फिर यही मन्त्र गूँजा… ओह ! भरत भैया ! उस घर के मालिक जाग गए थे… मेरे आराध्य का ये स्मरण कर रहे हैं !

प्रातः के समय… शैय्या त्यागते समय… मेरे आराध्य के नाम का स्मरण कर रहे हैं… ये धन्य हैं… ।

अब तो मुझे इनसे परिचय बढ़ानी ही पड़ेगी…

और क्या पता इन्हें माँ मैथिली का पता हो… ये मुझे पता बता दें ।

पर इन्होंने नही बताया तो ?… मन में फिर विचार उठे ।

फिर मैंने सोचा… भले ही न बताएं… पर मिलने से हानि तो कुछ नही है ।

पर मिलूं कैसे…? वानर भेष में…?

भरत भैया ! वानर भेष में मिलना मुझे ठीक नही लगा… इसलिये मैं ब्राह्मण के भेष में आ गया… और उस भवन में मैंने प्रवेश किया ।

“जय सिया राम”… मैंने जोर से यही कहा… ताकि मेरी आवाज सुनकर वो मकान मालिक आ जायें मेरे पास ।

आये वो… मुझे देखते ही दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम किया… हे विप्र ! मैं लंकाधिपति रावण का अनुज विभीषण आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ ।

ओह ! मैंने ऊपर से लेकर नीचे तक विभीषण को देखा…

ये तीन भाई हैं… सबसे बड़ा है रावण, बीच का है कुम्भकर्ण… और सबसे छोटा है ये विभीषण ।

भरत भैया ! रावण और कुम्भकर्ण काले थे… काजल की तरह काले… पर ये छोटा भाई गोरा था… गौर वर्ण था इसका ।

शरीर कसा हुआ था… पर मस्तक में दिव्य तेज़ था… अपने आपको इन राक्षसों से अलग ही रखा था इस विभीषण ने ।

असंयमित जीवन… ऊर्जा शक्ति का ह्रास ही तो करती है ना… !

आहार विहार सात्विक मानवों की तरह बनाया था इस विभीषण ने…

भरत भैया ! सात्विकता के परमाणु चारों ओर फैले हुए थे… इसी से मैंने अनुमान लगाया था… ।

मुझे मौन देखकर… और स्वयं का मूल्यांकन करते हुए देखकर… विभीषण ने पूछ लिया… हे विप्र ! आप इस लंका में कैसे ?

और लंका में पहुँचना… दशानन की आज्ञा के बिना प्रवेश कर लेना… ये सम्भव नही है… पर लंका में प्रवेश तो बाद की बात है… पहले तो इतने विशाल समुद्र को पार करना… ये बहुत दुष्कर कार्य है… आप कैसे आये यहाँ ?

विभीषण ने मुझ से जब ये सब पूछा… तब मुझे लगा कि यहाँ कारण छुपाना उचित नही होगा… क्यों कि ये तो सज्जन हैं… साधू हैं… साधू से भला किसको हानि हुयी है आज तक ?

मैं अपने रूप में आ गया… जय सियाराम !

मैं अयोध्या नरेश चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के बड़े पुत्र श्रीराम का दूत हूँ… मेरा नाम है हनुमान !

राक्षस राज रावण दण्डकारण्य से श्री राघवेन्द्र जी की भार्या मैथिली का अपहरण करके ले आये हैं… मैं उन्हीं की खोज में आया हूँ ।

हमें पता लगा है कि लंका में ही दशग्रीव ने माँ मैथिली को कहीं रखा है… मैं उनके दर्शन कर लेना चाहता हूँ… यदि आपको पता हो कि कहाँ रखा है माँ मैथिली को… तो भाई ! आप हमें पता बता देने का कष्ट करें !… मैंने विनम्रता से कहा ।

भरत भैया ! विभीषण के नेत्रों से अश्रु बिन्दु टप् टप् टप्… गिरने लगे थे…। मैंने पूछा… आप कुछ बोलते क्यों नही हैं ?

तब भर्राई-सी आवाज में विभीषण ने मुझ से कहा- आपने मुझे “भाई” कहा ?

हाँ… आप मेरे भाई हैं… मैंने विभीषण को जोर देकर कहा था ।

पर मैं कैसे आपका भाई ?… अपने आँसु पोंछे विभीषण ने ।

आप के आराध्य भी श्रीराम हैं… और मेरे आराध्य भी श्रीराम हैं…

फिर क्या हम आध्यात्मिक रूप से भाई नही हुए ?

देखो ! भाई ! सच बताओ… तुमने अपने सच्चे पिता प्रभु श्री राम को देखा है ?

विभीषण ने सिर… ना… में हिलाया… ।

और मैंने अपनी माँ मैथिली को नही देखा… ।

भरत भैया ! मैंने विभीषण को समझाया… तुम ऐसे भाई हो जिसने माँ को तो देखा है… पर पिता को नही देखा… और मैं ऐसा भाई हूँ… जिसने पिता को तो देखा है… पर अपनी माँ को नही देखा… भरत भैया ! मैं उस समय भावुक हो गया था… मैंने बड़े प्रेम से विभीषण का हाथ पकड़ा… और कहा… भाई ! आज मुझे मेरी माँ से तुम मिला दो… कल मैं तुम्हें… वचन देता हूँ… पिता श्रीराम से मैं तुम्हें मिला दूँगा… पक्का ।

विभीषण के नेत्रों से अविरल अश्रु पात हो ही रहे थे…

लंकापति की सबसे प्रिय वाटिका है… अशोक वाटिका ।

वही पर रखा है… माँ मैथिली को लंकेश ने ।

पास में ही एक सुंदर सरोवर है… यहाँ से उत्तर दिशा की ओर…

महादेव का भव्य मन्दिर भी है वहाँ… विभीषण ने बताया ।

अशोक के अनगिनत वृक्ष हैं… एक विशाल वृक्ष है अशोक का ही

उसी के नीचे… कृशकाय, जटावेणी धारणी , शोक मग्ना… माँ मैथिली के दर्शन आपको हो ही जायेंगे… ।

पर वहाँ अस्त्र-शस्त्र धारी सैनिकों का हर समय कड़ा पहरा लगा रहता है… ।

वाटिका में पुरुष का प्रवेश नही है… इसलिए क्रूर राक्षसियों को अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित करके माँ मैथिली की सुरक्षा में लगा रखा है रावण ने ।

मैं भी वहाँ नही गया हूँ… बस दूर से ही माँ के दर्शन किये हैं मैंने ।

रावण के अतिरिक्त कोई पुरुष उस अशोक वाटिका में प्रवेश नही कर सकता… ।

विभीषण ने बताया ।

पर आप आज तक गए नही हैं अशोक वाटिका… तो ये सब बातें कौन बताता है आपको ? मैंने पूछा ।

मैं अपनी पत्नी को भेजता रहता हूँ… मेरी पत्नी जाकर माँ मैथिली को सांत्वना देकर चली आती है… विभीषण ने कहा ।

रावण महल में रखना चाहता था माँ मैथिली को… पर अम्बा मैथिली ने ही मना कर दिया… और रावण को श्राप है… कि किसी नारी के साथ ये जबरदस्ती नही कर सकता… अगर किया तो मृत्यु तत्क्षण है ।

मुझे माँ मैथिली की पूरी जानकारी मिल गयी थी… इतना पर्याप्त था मेरे लिए… पर चलते हुए मैंने एक प्रश्न किया विभीषण से ।

आपकी इतनी भक्ति देखकर क्या आपका बड़ा भाई आपसे कुछ नही कहता ?

क्या आपका भाई रावण आपके परिवार का उत्पीड़न नही करता ?

भक्ति ? कहाँ है मुझ में भक्ति ?… नेत्रों से फिर अश्रु बह चले थे विभीषण के ।

अब शायद भक्ति आ जाये मुझ में… आँसू को पोंछते हुए कहा था ।

क्यों कि आपके दर्शन हो गए हैं ना मुझे… अब भक्ति आ जायेगी ।

फिर कुछ देर सोचने के बाद बोले विभीषण… अच्छा हनुमान जी ! एक बात बताइये… मेरे ऊपर क्या दया करेंगे प्रभु श्रीराम ?

हनुमान जी हँसे… बातें बनाने से दया नही करते प्रभु… विभीषण !

विभीषण चौंक पड़े… ये क्या कह रहे हैं आप ?

हाँ… “कभी दया करेंगे” ?…”कृपा करेंगे”?… “मुझ में भक्ति कैसे आएगी” ?… बहुत अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हो विभीषण ! पर… क्या तुम्हारा भाई गलत मार्ग में जा रहा ये सब देखते हुए भी… कभी उसे रोका तुमने… रोका…?

विभीषण ! माँ मैथिली का अपहरण करके लेकर आया लंका में तुम्हारा भाई… पर क्या तुमने हिम्मत की… कि तुम कह सको… ये गलत है… ऐसा मत करो… तुमने कहा विभीषण ! अपने भाई को ?

हाथ जोड़कर खड़े हैं विभीषण – बहुत बार सोचा… पर कह न सका… हे हनुमान जी ! अब कहूँगा…

चाहे मुझे लंका से निकाल दे रावण… पर मैं कहूँगा…

मैंने विभीषण का हाथ पकड़ा… और बड़े प्रेम से कहा… दया तो फिर भी नही करेंगे प्रभु श्रीराम तुम पर… ।

क्यों ?… विभीषण विकल हो उठे…

क्या करुणावान नही है प्रभु श्रीराम ? विभीषण ने पूछा था मुझ से ।

अब मेरे नेत्र सजल हो गए थे भरत भैया !…

मेरे जैसे को अपनाया… करूणावान नही होंगे ?

मेरे जैसे वानर को स्वीकार किया… करुणावान नही होंगे ?

मुझे हँसी आती है… सुबह-सुबह मेरा कोई मुँह भी देख ले तो उसे भोजन नही मिलता… ऐसे को अपनाया प्रभु ने… करुणावान नही होंगे ?… वानर तो कामी, क्रोधी, लोभी… सारे दुर्गुणों से भरा हुआ होता है… विचार करो… विभीषण ! मुझ जैसे को अपनाया… कितनी करुणा होगी उनमें !

फिर मेरे ऊपर दया क्यों नही करेंगे ? विभीषण ने फिर पूछा ।

क्यों कि वो दया नही करते… वो प्रेम करते हैं…

मैंने कहा… विभीषण से ।

दया करने वाला बड़ा होता है… जिस पर दया कर रहे हैं वो छोटा होता है… पर विभीषण ! मेरे प्रभु श्रीराम ये छोटा… ये बड़ा… ये खेल करते ही नही हैं… उनके लिये सब बराबर हैं ।

दुनिया में ऐसा मेरे श्रीराम जैसा कौन होगा…

जो अपने सेवकों पे दया नही करता… प्रेम करता है ।

तुमसे प्रभु प्रेम करेंगे… दया नहीं…

शेष चर्चा कल…

सुनहुँ विभीषण प्रभु के रीती
करहिं सदा सेवक पर प्रीती…

Harisharan



thoughts of the day

(I found my brother in Lanka – Hanuman) Part-17

Then Hanuman said, Listen, brother I want to see Janaki Mata. (Ramacharitmanas)

“Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram”

The third watch of the night had also passed.

I was getting desperate and hopeless…

Brother Bharat! That’s why I heard this victory mantra in Lanka.

(Hanuman ji is narrating his autobiography to Bharat ji)

When I went… behind that sound then…

A holy temple was in front of my eyes…

Many questions were arising in my mind… Where did this gentleman come from here in Lanka?

And how much will its effect be on Lankesh… that its conduct was accepted even in a city like Lanka.

Who will it be?… I was sitting near the same Tulsi plants and was thinking that… “Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram”.

Again this mantra echoed… Oh! Brother Bharat! The owner of that house had woken up… He is remembering my beloved!

In the morning…while leaving the bed…remembering the name of my beloved…they are blessed….

Now I will have to increase my acquaintance with them…

And who knows if they know the address of Mother Maithili… She should tell me the address.

But if he did not tell then?… Thoughts again arose in the mind.

Then I thought… even if I don’t tell… but there is no harm in meeting.

But how to meet…? Monkey in disguise…?

Brother Bharat! I didn’t like to meet in the disguise of a monkey… That’s why I came in the disguise of a Brahmin… and I entered that building.

“Jai Siya Ram”… I said this loudly… so that the landlord would come to me after hearing my voice.

He came… on seeing me he bowed down with folded hands… Hey Vipra! I, Vibhishan, the younger brother of Ravana, the ruler of Lanka, bow down at your feet.

Oh ! I looked at Vibhishan from top to bottom…

These are three brothers…the eldest is Ravana, the middle one is Kumbhakarna…and the youngest is Vibhishana.

Brother Bharat! Ravana and Kumbhakarna were black… black like mascara… but this younger brother was fair… his complexion was fair.

The body was tight… but the head was divinely sharp… This Vibhishan had kept himself separate from these demons.

Uncontrollable life… energy only reduces the power, doesn’t it…!

This Vibhishan had made Ahar Vihar like virtuous humans…

Brother Bharat! The atoms of sattvikta were spread all around… from this I had guessed….

Seeing me silent… and seeing myself evaluating… Vibhishan asked… Hey Vipra! How are you in this Lanka?

And reaching Lanka… Entering without the permission of Dashanan… It is not possible… But entering Lanka is a matter of later… First of all crossing such a vast ocean… It is a very difficult task… How did you come here?

When Vibhishan asked me all this… then I felt that it would not be appropriate to hide the reason here… because he is a gentleman… he is a saint… who has been harmed by a saint till date?

I have come in my form… Jai Siyaram!

I am the messenger of Shri Ram, the elder son of King Dasharatha, King of Ayodhya, Chakraborty, Emperor… My name is Hanuman!

The demon king Ravana has abducted Shri Raghavendra ji’s wife Maithili from Dandakaranya… I have come in search of her only.

We have come to know that Dashagriva has kept Maa Maithili somewhere in Lanka… I want to visit her… If you know where Maa Maithili is kept… then brother! Would you mind telling us the address!… I said politely.

Brother Bharat! Tears started falling drop by drop from Vibhishan’s eyes. I asked… why don’t you say anything?

Then Vibhishan said to me in a hoarse voice – You called me “brother”?

Yes… you are my brother… I insisted to Vibhishan.

But how am I your brother?… Vibhishan wiped his tears.

Your deity is also Shri Ram… and my deity is also Shri Ram…

Then are we not brothers spiritually?

See ! Brother ! Tell the truth… have you seen your true father Lord Shri Ram?

Vibhishan shook his head… no….

And I did not see my mother Maithili….

Brother Bharat! I explained to Vibhishan… You are such a brother who has seen mother… but has not seen father… and I am such a brother… who has seen father… but has not seen his mother… Bharat Bhaiya! I got emotional at that time… I held Vibhishan’s hand with great love… and said… Brother! Today you make me meet my mother… tomorrow I promise you… I will make you meet father Shri Ram… for sure.

Tears were continuously falling from Vibhishan’s eyes.

The most favorite garden of Lankapati is… Ashok Vatika.

That is where Lankesh has kept Mother Maithili.

There is a beautiful lake nearby… from here towards the north…

There is also a grand temple of Mahadev there… Vibhishan told.

There are countless trees of Ashoka… there is only one huge tree of Ashoka.

Below that… Krishakaya, Jatveni Dharani, Shok Magna… You will definitely get to see Maa Maithili….

But there is a strict guard of armed soldiers all the time….

Men are not allowed to enter the garden… That’s why Ravana has equipped the cruel demons with weapons and kept them under the protection of Maa Maithili.

I have not even been there… I have only seen Maa from a distance.

No man except Ravana can enter that Ashok Vatika….

Vibhishan told.

But you haven’t been to Ashok Vatika till date… So who tells you all these things? I asked .

I keep sending my wife… my wife goes and consoles mother Maithili… Vibhishan said.

Ravana wanted to keep Maa Maithili in the palace… but Amba Maithili refused… and Ravana is cursed… that he cannot force any woman… If he does, he will die instantly.

I had got complete information about Mother Maithili… this was enough for me… but while walking I asked Vibhishan a question.

Seeing your devotion, doesn’t your elder brother say anything to you?

Doesn’t your brother Ravana harass your family?

Bhakti? Where is devotion in me?… Tears were flowing again from the eyes of Vibhishan.

Now maybe devotion will come in me… said while wiping the tears.

Because I have had your darshan, haven’t I… Now devotion will come.

Then after thinking for some time, Vibhishan said… Good Hanuman ji! Tell me one thing… What mercy will Lord Shri Ram have on me?

Hanuman ji laughed… God doesn’t show mercy by making things… Vibhishan!

Vibhishan was shocked… what are you saying?

Yes… “Will you ever have mercy”?… “Will you please”?… “How will devotion develop in me”?… You are talking very well, Vibhishan! But… is your brother going in the wrong path even after seeing all this… did you ever stop him… stopped…?

Vibhishan! Your brother brought mother Maithili abducted to Lanka… But did you dare… that you can say… This is wrong… Don’t do this… You said Vibhishan! to your brother?

Vibhishan is standing with folded hands – thought many times… but could not say… Hey Hanuman ji! Now I will say…

Even if Ravana drives me out of Lanka… but I will say…

I held Vibhishan’s hand… and said with great love… even then Lord Shri Ram will not have mercy on you….

Why?… Vibhishan got upset…

Is Lord Shri Ram not compassionate? Vibhishan had asked me.

Now my eyes had become beautiful Bharat Bhaiya!

Adopted someone like me… wouldn’t you be compassionate?

Accepted a monkey like me… will not be compassionate?

I laugh… Even if someone sees my face early in the morning, he does not get food… God has adopted such a person… Will he not be compassionate?… A monkey is lustful, angry, greedy… He is full of all bad qualities… Think… Vibhishan! Adopted someone like me… how much compassion they would have!

Then why won’t you have mercy on me? Vibhishan asked again.

Because they don’t pity… they love…

I said… to Vibhishan.

The one who shows mercy is big… the one who is showing mercy is small… but Vibhishan! My Lord Shri Ram, this small… this big… he does not play at all… all are equal for him.

Who in the world would be like my Shriram…

The one who does not show mercy to his servants… loves.

God will love you…not mercy…

Rest of the discussion tomorrow…

Listen to Vibhishan Prabhu’s customs Karhin always love on the servant…

Harisharan

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