[22]हनुमान जी की आत्मकथा

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(“जानत प्रिया एकु मन मोरा”- एक अव्यक्त प्रेम )
भाग-22

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा
जानत प्रिया एकु मन मोरा…
(रामचरितमानस)

हरि जी ! ये भगवान श्री राघवेन्द्र सरकार द्वारा कही गयी चौपाई मैं कल रात भर गाती रही… कितना अव्यक्त प्रेम है श्री राघव का ।

“सो मन सदा रहहुँ तोहि पाहीं
जानु प्रीति रस इतनेहि माहीं”

गौरांगी ने कल गुलाब के फूलों का बंगला सजाया था अपनी कुटिया में !

चारों ओर गुलाब के ही फूल थे… गुलाब जल का छिड़काव किया था ।

पखावज और सारंगी में पद गाये थे अपनी ही सुमधुर आवाज में ।

सबको प्रसाद पवाकर विदा किया था… मैं जाने लगा तो मुझे रोक लिया… हरि जी ! आपसे बातें करनी है ।

फिर यही दो चौपाई गुनगुनाती रही थी

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा
जानत प्रिया एकु मन मोरा ।

सो मन सदा रहहुँ तोहि पाहीं
जानु प्रीति रस इतनेहि माहीं ।

प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी के माध्यम से जो सन्देश भिजवाया था… अपनी प्रिया किशोरी जी के लिए… वही ये दो चौपाई हैं ।

कितना छुपाया है अपने प्रेम को श्रीराम जी ने और हरि जी ! मुझे तो लगता है… ये भी नही बोलते राम जी… पर विरह चरम पर पहुँच गया था… इसलिये इतना बोले । गौरांगी ने घर का काज सब निपटा लिया था… साफ-सफाई भी कर ली थी अपनी कुटिया की… और अपने ठाकुर जी को भी शयन करा दिया था…

उफ़ ! क्या सन्देश दिया है…

मुझे अच्छा लगा ये देख कर… कल के “आज के विचार” ने गौरांगी को श्रीराम का प्रेम दिखा दिया… और इन दो चौपाई ने गौरांगी के हृदय को छू लिया था ।

सच में हृदय को छूने जैसी ही है ये दो चौपाई रामचरितमानस की ।

मैंने गौरांगी से कहा- इस चौपाई में भगवान श्रीराम जब कहते हैं “इतनेहि”… हे जनकनंदिनी ! मेरा मन सदा-सदा के लिए तुम्हारे ही पास चला गया है तुम्हारे ही पास रहता है… अब इतने में ही तुम समझ लो ।

उफ़ ! सब कुछ तो कह दिया ना…

समझने वाला समझ गया… अब जो नही समझे उसे समझाना भी क्यों ?

पर जिसे समझाना चाहते हैं वह तो समझ ही लेगा ना ! “इतनेहि” में ।

गौरांगी कह रही थी राम जी गहरे प्रेमी हैं… प्रेम को अंदर छुपा कर रखते हैं… सब बताया भी नही है ।

प्रेम का बाजा कौन बजाता है… जो अनाड़ी है…
है ना गौरांगी !

और जब हमने बाजा बजाया तो प्रेम की सुगन्ध उड़ गयी… इतने में ही प्रेम की खुशबु रही कहाँ !

पर इन दिव्य प्रेम के रहस्यों को ये लम्बे चौड़े मोबाइल में मेसेज लिखने वाले नए नवेले प्रेमी कहाँ जानते हैं ।

क्या राम जी चाहते तो हनुमान जी को लम्बा पत्र लिखकर नही दे सकते थे…? पर नही दिया थोड़े में ही सब कह दिया ।

मेरा और तुम्हारा प्रेम केवल एक मन ही जानता है…

और वो मन अब तुम्हारे पास है… बस इतने में ही तुम समझ जाओ ।

गौरांगी ! श्रीराम कहना चाहते हैं मेरा मन भी अब मेरे पास कहाँ है !

तुम ले जा चुकी हो… तुम्हारे पास में ही है मेरा मन हे किशोरी !

ये रहस्य हैं प्रेम के इनको लिखकर या बोलकर नही बताया जा सकता… ये तो महसूस करने का विषय है ।

और गौरांगी ! इन रहस्यों को या तो हमारा चाह भरा चित्त जानता है या हमारा प्रियतम इन भेदों को और कौन जानेगा ?


गुलाब से महक रही थी गौरांगी की कुटिया…

प्रेम का वास्तविक रूप हम प्रकाशित भी तो नही कर सकते ना…

अच्छा बताओ प्रेम को कैसे प्रकाश में लाओगे ?

प्रेम तो गूँगा होता है… इश्क़ तो बेज़ुबान है…

प्रेम की जिह्वा तो आँखों में होती है…

प्रेम इशारों में ही बातें करता है… अब तुम क्या सोच रही हो कन्हैया ही है प्रेमी… क्या रघुकुल नन्दन राम का विदेह नन्दिनी से प्रेम नही था अरे ! अपार प्रेम था…

पर प्रेम को बताना क्यों ? किसे बताना ?

अपनी प्रिया को ? जब अपनी प्रिया को भी बताना पड़े तब क्या वह प्रिया रही…?

तुम पर मेरा प्रेम है… ये कहना पर ऐसे विज्ञापनबाजी से क्या होगा ? तुम्हारा अगर किसी से प्रेम है… तो उसे अपने ही हृदयवाटिका में अंकुरित, पल्लवित, प्रफुल्लित और परिफलित होने दो न…।

याद रखो ! तुम जितना अपने प्रेम को छुपाओगे वह उतना ही पवित्र होगा पाक होगा ।

बाहर का दरवाजा बन्द करके अपने अंदर का दरवाजा खोलो न !

तुम्हारा प्यारा तुम्हारे प्रेम को जानता हो तो अच्छा… नही जानता हो तो और अच्छा… उसे भी क्यों जनाना… तुम बस अपने अव्यक्त प्रेम रस में डूबे रहो… यही साध्य है… यही पाना है… यही मुक्ति है और यही लक्ष्य है ।

गौरांगी ! माता क्या अपने उदर में रह रहे बालक को छुपाती नही है ?

बड़े यत्न से छुपाती है वो ध्यान रखती है इस बात का कि कहीं से भी उसे ठेस न लगे… क्यों कि ठेस लगा कि वह क्षीण हुआ !

बस उस गर्भवती माँ की तरह अपने हृदय में अपने प्रेम को छुपाओ ।

गौरांगी ! दो प्रेमियों का प्रेम तभी तक पवित्र समझो… जब तक वह प्रेम उनके हृदय में है… हृदय से बाहर आते ही…

“मैं तुम्हें प्यार करता हूँ” कहा गया… तभी प्रेम क्षीण हो गया… नष्ट हो गया… गौरांगी ! दीपक घर के भीतर ही निष्कम्प रहता है… दरवाजे के बाहर आते ही वह बुझ जाता है बाहरी हवा से…।

वास्तव में पवित्र प्रेम एक दीपक के समान ही तो है…

इसलिये गौरांगी ! मैं बारम्बार कहता रहता हूँ… प्रेम का ढिढ़ोरा मत पीटो… इसे तो जिगर के अंदर ही जलने दो…।

उस प्यारे को अपनी पलकों के भीतर ही छुपा लो ना…

ऐसे छुपा लो… न औरों को तुम देखो… न अपने प्यारे को देखने दो… बस दोनों ही एक-दूसरे को देखते रहो… आहा !

क्यों हल्ला मचा रखा है यार ! मैं प्यार करती हूँ… या मैं प्यार करता हूँ… अजी ! इस हल्ले ने प्रेम के खुशबु को उड़ा ही दिया ।

और गौरांगी ! जब तुम्हारा दिलवर तुम्हारे दिल में ही अपना घर बना लेगा ना… तो फिर कहीं जाने आने की जरूरत ही क्या है ?

फिर तो “जरा नजर झुकाई देख ली”.


गौरांगी के नेत्र बह चले थे…

हरि जी ! सच में प्रेम बताने का विषय नही है… जो है सो है… बताने से क्या लाभ ?

सच बात है… सच्चा प्रेम कभी प्रकट किया ही नही जा सकता जिसने प्रेम को जीया है… जिसने अपने प्रियतम को देखा है… वह भला कह सकता है क्या ?… और जो कहता है… उसने देखा ही नही है ।

मैं हँसा… इसलिये तो कहता हूँ गौरांगी ! प्रेम गोपनीय ही है ।

श्री रघूत्तमः राम ने इसलिए विदेहनन्दिनी को गोपनीय रूप से ही अपने प्रेम का वर्णन किया… और इतने में ही सब कुछ कह दिया…

सो मन सदा रहत तोहि पाहीं…
जानु प्रीति रस इतनेहि माहीं…

बहुत सुंदर लिख रहे हो आप “पवनपुत्र की आत्मकथा”.

गौरांगी ने कहा ।

मैं इतना ही बोला मैं कहाँ लिख रहा हूँ… मेरा कन्हैया लिखवा रहा है… तो लिख रहा हूँ…।

गौरांगी एक अच्छी स्थिति की साधिका है… इसकी समीक्षा मेरे लिए महत्वपूर्ण है…

मैं उसके यहाँ से प्रसाद लेकर चल दिया था… ।

शेष चर्चा कल…

“जानत प्रिया एकु मन मोरा”

Harisharan



(“Janata priya eku mana mora” – A latent love) Part-22

element love kar mam aru tora Janat priya eku man mora… (Ramcharitmanas)

Hari ji! Last night I kept singing this chaupai told by Lord Shri Raghavendra Sarkar… What an unmanifested love of Shri Raghav.

“So man sada rahahun tohi paahin Janu Preeti Ras Itnehi Mahin”

Gaurangi had decorated the bungalow of roses in her cottage yesterday!

There were only rose flowers all around… rose water was sprinkled.

He sang the verses in Pakhawaj and Sarangi in his own melodious voice.

Sent everyone off after getting prasad… When I started leaving, he stopped me… Hari ji! I want to talk to you.

Then these two cattle kept humming

element love kar mam aru tora Janat Priya Eku Man Mora.

So man sada rahahun tohi paahin Know the taste of love in so many.

The message that Lord Shriram had sent through Hanuman ji… for his beloved Kishori ji… these are the two cattle.

How much Shriram ji and Hari ji have hidden their love! I think… Ram ji doesn’t even say this… But the separation had reached its peak… That’s why he spoke so much. Gaurangi had finished all the work of the house… had also cleaned her cottage… and had also put her Thakur ji to bed…

Oops ! What message has been given…

I liked seeing this… Yesterday’s “Today’s Thoughts” showed Gaurangi the love of Shriram… and these two cattle had touched Gaurangi’s heart.

Really heart touching are these couplets of Ramcharitmanas.

I said to Gaurangi – When Lord Shriram says “Itnehi” in this chapai… Hey Janaknandini! My mind has gone to you forever and ever, it stays with you only… Now you can understand in this much only.

Oops ! You said everything, didn’t you?

The one who understands has understood… Now why to explain to the one who does not understand?

But the one to whom you want to explain will definitely understand, will he not? In “so”.

Gaurangi was saying that Ram ji is a deep lover… He keeps his love hidden inside… He has not even told everything.

Who plays the instrument of love… who is clumsy… Isn’t it Gaurangi!

And when we played the flute, the fragrance of love disappeared… where was the fragrance of love in this?

But how do the new budding lovers who write messages in long wide mobiles know the secrets of this divine love.

Had Ram ji wanted, he could not have written a long letter to Hanuman ji…? But did not give, told everything in a short time.

Only one mind knows the love of mine and yours…

And that mind is with you now… just in this you understand.

Gaurangi! Shriram wants to say where is my mind with me now!

You have taken me… my heart is with you, O Kishori!

These are the secrets of love, they cannot be told by writing or speaking… it is a matter of feeling.

And Gaurangi! Either our lustful mind knows these secrets or our beloved, who else will know these secrets?

Gaurangi’s cottage was smelling of roses…

We can’t even publish the real form of love, can we?

Ok tell me how will you bring love to light?

Love is dumb… Love is speechless…

The tongue of love is in the eyes…

Love talks only in gestures… Now what are you thinking, Kanhaiya is the lover… Did Raghukul Nandan Ram not love Videha Nandini? There was immense love…

But why tell love? To tell whom?

To my beloved? When you had to tell your beloved as well, did she remain beloved…?

I love you… saying this but what will happen with such advertisements? If you have love for someone… then let it sprout, flourish, blossom and flourish in your own heart garden….

Remember it ! The more you hide your love, the purer it will be.

Do not open your inner door after closing the outer door.

If your beloved knows your love, then it is better… if you do not know, then it is better… why to know him too… you just remain immersed in your unmanifest love… this is the goal… this is the attainment… this is the liberation and this is the goal.

Gaurangi! Doesn’t the mother hide the child living in her womb?

She hides it with great effort, she takes care that she doesn’t get hurt from anywhere… because she got hurt that she became weak!

Just hide your love in your heart like that pregnant mother.

Gaurangi! Consider the love of two lovers sacred only until… as long as that love is in their heart… as soon as it comes out of the heart…

“I love you” was said… then the love faded… destroyed… Gaurangi! The lamp remains calm inside the house… as soon as it comes out of the door, it gets extinguished by the outside air….

In fact pure love is like a lamp…

That’s why Gaurangi! I keep saying again and again… don’t beat the trumpet of love… let it burn inside the liver….

Hide that beloved inside your eyelids, don’t you?

Hide it like this… don’t look at others… don’t let your beloved see… just both keep looking at each other… aha!

Why is there a hue and cry man! I love… or I love… Aw! This noise has blown away the fragrance of love.

And Gaurangi! When your beloved will make his home in your heart, then what is the need to go anywhere?

Then “I bowed my eyes a little and saw”.

Gaurangi’s eyes were filled with tears.

Hari ji! Really love is not a subject to be told… what is there is… what is the use of telling it?

The truth is… True love can never be revealed to the one who has lived love… The one who has seen his beloved… What can he say?… And the one who says… He has not seen it at all.

I laughed… That’s why I say Gaurangi! Love is confidential.

Mr. Raghuttam: That’s why Ram described his love to Videhnandini in secret… and said everything in between…

So man sada rahat tohi pahin. Janu preeti ras itnehi maahin.

You are writing very beautifully the “autobiography of the son of wind”.

Gaurangi said.

I only said where am I writing… my Kanhaiya is getting me to write… so I am writing….

Gaurangi is a seeker of good status… its review is important to me…

I had taken Prasad from his place and left….

Rest of the discussion tomorrow…

“Janata Priya Eku Mana Mora”

Harisharan

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