( परलोक में देवलोक की प्राप्ति देविक मनोवृतियों के निर्माण एवं धारण करने पर ही होती है और आत्मा का परमात्मा में विलय प्राणी जगत की निष्काम भाव से सेवा और मोक्ष प्राप्ति पर निर्भर है ! )
🌹दूसरों को सुख पहुँचाने के लिए स्वयं कष्ट उठाना और दूसरों की भूख मिटाने के लिए स्वयं भूखा रहना, यही तो देविक प्रवृति है और देविक मनोवृति / प्रवृति के प्राणी ही स्वर्ग एवं देवलोक पाने के अधिकारी है । इसके लिए दुनिया तुम्हें महान कहे, यह महत्वपूर्ण नहीं अपितु निस्वार्थ भाव से प्राणियों की सेवा करते रहो , यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। यही सेवा ही ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है क्योंकि हर प्राणी में आत्मा के रूप में परमात्मा का अंश विध्यमान है !
🌹प्रदर्शन महानता का लक्षण नहीं अपितु पर पीड़ा का दर्शन ( संवेदनशीलता ) एवं पीड़ित की सेवा ही महानता का लक्षण है। ऐसा व्यक्ति किसी गरीब के आँसुओं को पोंछता है तो “देव” बनता है ! एक व्यक्ति स्वार्थ एवं लालच वश अपनी सेवा दुनिया से करवाता है ! स्वार्थ एवं लालच तामसिक प्रवृति है ! ऐसा व्यक्ति संवेदनहीन होता चला जाता है और तामसिक प्रवृति के कारन “असुर” बन जाता है ! तामसिक योनि को अधम योनि कहते है जो पशुओं की होती है अतः ऐसे व्यक्तियों का (भुक्त योनि ) पशु पक्षियों की योनि में जाना सुनिश्चित हो जाता है !
🌹एक व्यक्ति अपनी तामसिक मनोवृतियों ( काम, क्रोध, मद , लोभ एवं मोह ) के कारन संवेदनहीन होकर सबके लिए दुःख का कारण बन जाता है और एक व्यक्ति सबके आर्त (दुःख) उतारने के लिए संघर्षशील बना रहता है। जिनके मन में दूसरों के लिए करुणा का भाव है वही लोग वास्तव में महान हैंऔर देवलोक , स्वर्ग एवं मोक्ष के अधिकारी बनते है !
गोस्वामी तुलसी दास जी ने सच ही कहा है —
” परहित सरस धर्म नहीं भाई , परपीड़ा सम नहीं अधमाई !”
जय प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की , विघ्नेश्वर श्री गणेश सदा सहाय जय सर्
वदेवमयी यज्ञेश्वरी
भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय
स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी
जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता आपको नेक एवं श्रेष्ठ कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ताकि अति उत्तम पुण्य कमाए और परलोक में इच्छानुसार लोक प्राप्त करे. जय माता गौ गंगा गायत्री.
प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l
छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
‘दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। ‘
(The attainment of Devalok in the hereafter is achieved only by creating and imbibing divine attitudes and the soul’s merger with the Supreme Soul is dependent on selfless service to the living world and attainment of salvation!)
🌹 To bring happiness to others, to suffer oneself and to starve oneself to satisfy the hunger of others, this is the divine attitude and only the creatures of divine attitude are entitled to get heaven and heaven. For this, the world should call you great, it is not important, but keep serving the creatures selflessly, it is more important. This service is the best worship of God because a part of God is present in the form of soul in every living being.
🌹 Exhibition is not a sign of greatness, but the philosophy of pain (sensitivity) and service to the victim is the sign of greatness. If such a person wipes the tears of a poor person, he becomes a “god”. A person gets his service done by the world due to selfishness and greed. Selfishness and greed are vindictive tendencies! Such a person becomes insensitive and becomes an “asura” due to his vindictive nature. Vindictive vagina is called Adham vagina which is of animals, so it is sure for such persons (Bhukta Yoni) to go into the vagina of animals and birds!
🌹 A person becomes the cause of sorrow for everyone by becoming insensitive due to his vengeful attitudes (work, anger, pride, greed and attachment) and a person remains struggling to relieve everyone’s sorrow. Those who have a sense of compassion for others, those people are really great and become entitled to Devlok, heaven and salvation!
Goswami Tulsi Das ji has said the truth – ′′ Brother, Parahit Saras is not religion, Sadness is not like half-hearted!
Jai First Revered Shri Ganesh Ji , Vighneshwar Shri Ganesh Always Help Jai Sir
Vadevmayi Yagyeshwari A beautiful boat in the form of a human body has been found to cross the Bhavsagar. Be careful lest the boat sinks in the whirlpool of lust. Earn yourself, eat yourself this is the nature. (Raja Guna) Others earn, you snatch and eat, this is perversion. (Tamo Guna) Earn yourself, feed everyone, this is divine culture! (Hundred qualities) ** If you imbibe divine tendencies (Perception) then only you are entitled to get Devlok. Just as a huge banyan tree is contained in a small seed, in the same way infinite potential is contained in you. It is necessary to have that knowledge / to upgrade your intellectual and educational level, by attaining which you will achieve greatness, you will be able to do good and noble deeds. Will continue to motivate them so that they earn the best virtue and get the desired world in the hereafter. Hail Mother Cow Ganga Gayatri. Protection and promotion of nature is the best worship of God! Planting a tree is like donating a hundred cows. Planting a Peepal tree gives a person merit equal to performing hundreds of yagyas. In Chhandogya Upanishad, sage Uddalak while describing the soul to his son Shvetaketu says that trees are filled with soul and feel happiness and sorrow like human beings. In Hindu philosophy, a tree has been compared to the ten sons of a man. ‘ Dashkoop Samavapi: Dashvaapi Samohrid:. Dashahrid Samahputro Dashapatra Samodrum. ,
One Response
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