*मीरा चरित* *भाग- 17*

‘अरे, यह क्या बावलापन है?’ माँने फिर समझानेका प्रयत्न किया ‘जा बाबोसासे पूछ, वे बतायेंगे। मैं कोई पुरुष हूँ कि तेरे वरका मुझे पता हो?’

‘मैं कहीं नहीं जाऊँगी। आप ही बताइये, और जल्दी बताइये।’ वह रोती हुई भूमिपर लोट गयी।

माँको आश्चर्य हुआ कि ऐसी जिद तो इसने आजतक नहीं की। ‘ठीक है, ठीक है, तू रो मत! उठ, मैं बताती हूँ तेरा वर।’–उन्होंने उसे गोदमें भरकर पूछा-
‘इधर देख; ये कौन हैं?’
‘ये! ये तो मेरे गिरधर गोपाल हैं; आप तो मेरा वर बताइये।’– उसने फिर रोनेका उपक्रम किया।

‘अरे बेंडी (पागल) ! यही तो तेरे वर हैं। उठ, चल अब; कबसे एक ही बातकी रट लगाये है। ‘

‘क्या सच भाबू?’ – सुख भरे आश्चर्यसे मीराने पूछा। ‘सच नहीं तो क्या झूठ है? चल अब मुझे थाल परोसने हैं, बहुत देर हो जायगी।
मीराने नहीं सुना कि माँ ने क्या कहा। वह वहीं बैठी-बैठी, मानो पहली बार गिरधरको देखा हो, ऐसे चाव और आश्चर्यपूर्वक उन्हें देखने लगी। माँ उसे न उठते देखकर, नीचे चली गयी।
मीरा रोना भूल गयी। यही उसके लिये पर्याप्त आश्वासन था।

योग साधना और सिद्धि…..

मीराकी तीव्र जिज्ञासा और ग्रहण-शक्ति देखकर श्रीनिवृत्तिनाथजी बहुत प्रसन्न होते। जिस आसनमें जितनी देर ठहरनेको कहते, मीरा उसके दुगने समय तक ठहरकर दिखा देती। योगनिद्रा, षट्चक्र, कुण्डलिनी आदिके विषयमें उसने इतने गूढ़ प्रश्न किये कि महात्मा चकित व प्रसन्न हो गये। वे उसे उत्तरोत्तर योग की गूढ़-गहन गुफाओं में प्रवेश कराने लगे। छः महीने पश्चात् ही योगनिद्रा से जगाने में श्रीनिवृत्तिनाथजी को प्रयत्न करना पड़ता। भ्रू-मध्य पर ध्यान टिकानेकी बात आयी तो उसने कहा- ‘महाराज! यहाँ तो दीपककी लौ जैसा उजाला दिखायी देता है।’ ‘सच बेटी!’- महात्माजीकी प्रसन्नताकी सीमा न रही।

‘हाँ महाराज! वह तो मैं सदा से आँखें बंद करते ही देखती हूँ।’ उसने कहा—’यदि थोड़ी देर उसे देखती रहूँ तो उजाला बढ़ने लगता है। पहले मुझे ऐसे बैठे देखकर भीतर रनिवास में सब चिन्तित हो जाते थे, इससे मैंने छोड़ दिया।’

“अहा! यह तो जन्म-योगिनी है।’– उन्होंने मन-ही-मन कहा।

उन्होंने उसे कुण्डलिनी जागरण के आवश्यक उपाय बताये। वे सोचते थे कि जो योग सीखने में उन्हें बारह वर्ष लग गये, उसे यह अद्भुत लड़की अधिक-से-अधिक दो वर्षमें सीख लेगी। नहीं, दो वर्ष तो बहुत होते हैं। एक या डेढ़ वर्ष से अधिक नहीं लगेगा। उन्होंने बाबा बिहारीदासजीसे बात करते हुए कहा-
‘मेरे मनमें ऐसा आभास होता है कि श्रीकृष्णसे बिछुड़ी हुई किसी व्रजाङ्गना ने मीरा के रूपमें देह धारण की है। हम सभी इसके पूर्व संस्कारों की जागृति होने तक केवल निमित्त बन रहे हैं।
जिसकी ऐसी दिव्य स्मरणशक्ति हो, वह सामान्य बालिका कैसे हो सकती है?’

श्रीनिवृत्तिनाथजी सत्संगमें अपनेसे दो सौ वर्ष पूर्व हुए महाराष्ट्र के संत निवृत्तिनाथ, योगीराज ज्ञानेश्वर, सोपानदेव, मुक्ताबाई के अद्भुत यौगिक चमत्कारों और संत नामदेव, जनाबाई, सखूबाई आदिकी मधुर प्रेमाभक्तिकी रहस्यमयी कथाओंकी चर्चा करते, जिसे सुनकर मीरा आनन्दका अनुभव करती। बहुत शान्ति मिलती उसे। उन कथाओंका चिन्तन करने पर वह अपने-आपको, देश कालको भूलकर उसी प्रवाहमें बहने लगती। पूर्व संस्कारोंके फलस्वरूप हृदयमें मधुर महत्त्वाकांक्षाएँ जब आवरण उघाड़ कर सम्मुख होतीं तो वह एकाएक अधीर हो उठती। प्राण एक अनजानी, अनचिह्नी पीड़ासे छटपटा उठते। यह पीड़ा उसे इतनी मधुर लगती कि उसकी निरंतरताके लिये वह व्याकुल हो जाती।

एक बार उसने बाबा बिहारीदासजी से कहा-‘बाबा! मुझे भीतर कोई अभाव दुःख देता है। बहुत सोचा, ढूँढा, पर वह अभाव कहाँ है, किस-किस वस्तुका है, यह मैं जान नहीं सकी। इसे दूर करनेकी इच्छा भी नहीं होती। यह दुःख अच्छा लगता है।
बाबा! आप बताइये न कि यह पीड़ा, यह अभाव क्या है?’

बाबा बिहारीदासजी कुछ देर उसका मुँह देखते रहे। उनकी आँखें भर आयीं। मीराके सिरपर हाथ रखकर भरे गले से कहना चाहा- ‘यह पीड़ा किन्हीं भाग्यशालियों को मिलती है बेटी!’
किन्तु व्यक्त रूपसे इतना ही कहा-
‘चिन्ता न करो बेटी ! सब ठीक ही हो रहा है।’
फिर वे आकाशकी ओर देखकर बोले
‘राधे करुणामयि राधे …..कृपा …….मयि … !’
आगेके शब्द उनके गलेमें फँस गये। दोनों हाथों से आँखें पोंछकर वे बच्चोंकी भाँति हँस पड़े।

‘क्या हुआ महाराज? कोई भूल हुई मुझसे ?’– मीराने पूछा।

‘नहीं बेटी! तुम्हें ऐसा क्यों लगा?”

‘फिर आप रोये क्यों और हँसे क्यों?’

‘तुम्हें योग, अध्यात्म और संगीतमें शीघ्र उन्नति करते हुए देखकर प्रसन्नताके आवेगमें आँसू निकल पड़े और तुम्हें असमंजसमें देखकर हँसी आ गयी। तुमने जिस पीड़ाकी बात कही, वह और वैसी ही अन्य कई अनुभूतियाँ तुम्हें होती होंगी, आगे भी होंगी। ये तुम्हारी सफलताकी सीढ़ियाँ हैं पुत्री! पर इन्हें किसी अन्य से नहीं कहना। भीतर-ही-भीतर रस लो।’

‘गुरुजीसे भी नहीं?’

‘चाहो तो उन्हें बता सकती हो।’

‘आपको बताया, सो?’

बिहारीदासजी हँस पड़े–’सो मैं राधारानी से प्रार्थना करूँगा कि मेरी बेटी को कोई हानि न हो। वे करुणामयी निरंतर तुमपर कृपा बनाये रखें।’

इन्हीं दिनों मीराको अपनेसे चार वर्ष बड़ी एक दासी मिली, जिसका नाम था मंगला। ठीक विवाह के समय उसके पतिका देहांत हो गया और उसने आजन्म कुमारिका व्रत स्वीकार कर लिया। मीराके विषयमें सुनकर उसने माता पिता से आग्रह किया और वे इसे मीरा के समीप रख गये। अपनी हृदय-व्याधिके कारण मीराको अब एकान्त सुहाने लगा। अकस्मात् ही हृदयमें हूक-सी उठती, लगता जैसे वक्षमें कुछ स्थानच्युत हो गया है। उसका हाथ अनायास ही गले अथवा वक्षपर जा लगता, आँखें भर आतीं। एक-दो बार बाहर-भीतर जिसने भी देखा, पूछ उठा-‘क्या हुआ मीरा, कहीं पीड़ा है? कुछ मांदगी (बीमारी) हो गयी है?”

माँ सोचती-‘सबेरे-सबेरे उठकर हाथ-पाँव और सारा शरीर तोड़ती मरोड़ती रहती है। कहीं कोई नस डिग गयी होगी। न जाने योग सीखकर इसे क्या करना है? किन्तु किसे कहूँ? न यह मानती है और न अन्नदाता हुकम ही किसी की सुनते हैं। उन्हें तो कहे ही कौन? किसके मुँह में दो जीभें हैं या किसके धड़ पर दो सिर हैं? दोनों बाईसा (अभय और लक्ष्मी) का विवाह हो गया। अब यही घर में बड़ी लड़की है, किन्तु एक भी बात या काम स्त्रियोंका यह जानती हो? आदमियों का काम सीखती है या बाबाओं का। हे भगवान् ! इस छोरीका क्या होगा?’

मीरा की बीमारीकी बात सुनकर दूदाजी को चिंता लगी। जब पूछने पर मीरा ने कुछ नहीं बताया, तब उन्होंने राजवैद्य को बुलाया। सब कुछ देख-जाँच करके उन्होंने कहा—’कोई मांदगी नहीं है बाईसा को।’
क्रमश:



‘Hey, what madness is this?’ Mother again tried to explain, ‘Go ask Babosa, he will tell you. Am I a man that I should know about you?’

‘I’m not going anywhere. You tell it, and tell it quickly.’ She returned to the ground crying.

Mother was surprised that till date he did not show such stubbornness. ‘Okay, okay, don’t you cry! Get up, I’ll tell you your groom.’-He asked by filling her in his lap- ‘Look here; Who are they?’ ‘These! This is my Girdhar Gopal; You tell me my groom.’- She tried to cry again.

‘Hey Bendy (mad)! This is your groom. Get up, let’s go now; For a long time you have stuck to one thing by rote. ,

‘Is it true bhabu?’ Mirana asked in happy surprise. If not true then what is false? Come on, now I have to serve the plate, it will be too late. Meera did not hear what mother said. She sat there, as if seeing Girdhar for the first time, started looking at him with such curiosity and wonder. Seeing him not getting up, mother went downstairs. Meera forgot to cry. This was enough assurance for him.

Yoga Sadhana and Siddhi…..

Shrinivrittinathji would have been very pleased to see Meera’s intense curiosity and eclipse power. The seat in which he was asked to stay, Meera would show him by staying for double that time. He asked so many mysterious questions about Yoganidra, Shatchakra, Kundalini etc. that Mahatma was surprised and happy. They gradually started taking him into the deep caves of yoga. Shrinivrittinathji had to make efforts to wake him up from Yognidra only after six months. When it came to focusing on the middle of the brow, he said – ‘ Maharaj! Here one can see the light like the flame of a lamp.’ ‘True daughter!’- Mahatmaji’s happiness knew no bounds.

‘Yes your Highness! I always see her while closing my eyes.’ He said – ‘If I keep looking at it for a while, the light starts increasing. Earlier, seeing me sitting like this, everyone in the inner sanctuaries used to get worried, so I left it.’

“Aha! She is a Janma-Yogini.’- he said to himself.

He told him the necessary measures for Kundalini awakening. They used to think that this wonderful girl would learn the yoga which took them twelve years to learn, at the most two years. No, two years is enough. It will not take more than a year and a half. Talking to Baba Bihari Dasji, he said- ‘I have a feeling in my mind that some Vrajangana, separated from Shri Krishna, has assumed a body in the form of Meera. All of us are only becoming instruments till the awakening of our previous sanskars. One who has such divine memory, how can she be an ordinary girl?’

In the satsang Shri Nivrittinathji used to discuss the wonderful yogic miracles of Saints Nivrittinath, Yogiraj Dnyaneshwar, Sopandev, Muktabai of Maharashtra and the sweet love devotion of Saints Namdev, Janabai, Sakhubai etc., listening to which Meera felt joy. He gets a lot of peace. On contemplating those stories, she forgets herself, country and time and starts flowing in the same flow. As a result of past rituals, when the sweet ambitions in the heart were revealed by uncovering the cover, she would suddenly get impatient. Pran used to wake up with an unknown, unmarked pain. This pain would be so sweet to her that she would be distraught for its continuation.

Once he said to Baba Biharidasji – ‘ Baba! Some lack inside hurts me. I thought a lot, searched, but I could not know where is that lack, what is it about. There is no desire to remove it. This sadness feels good. Dad! You tell me what is this pain, what is this lack?’

Baba Biharidasji kept looking at his face for some time. His eyes filled with tears. Placing his hand on Meera’s head, he wanted to say with a full throat – ‘Only the lucky ones get this pain, daughter!’ But explicitly said this much- Don’t worry daughter! Everything is going well. Then he looked at the sky and said ‘Radhe Karunamayi Radhe….Kripa…….Mayi…!’ Further words got stuck in his throat. Wiping his eyes with both hands, he laughed like a child.

‘What happened sir? Did I make a mistake?’- asked Meera.

‘No daughter! Why did you feel that way?”

‘Then why did you cry and why did you laugh?’

‘ Seeing you progressing quickly in yoga, spirituality and music, tears came out in an impulse of happiness and laughter came to see you in confusion. The pain you mentioned, that and many other similar experiences you must have had, will happen in the future as well. These are the steps of your success daughter! But don’t tell them to anyone else. Take the juice from within.’

‘Not even Guruji?’

‘You can tell them if you want.’

‘Told you, huh?’

Bihari Dasji laughed – ‘So I will pray to Radharani that no harm should come to my daughter. May the merciful always bless you.’

During these days Meera got a maidservant who was four years older than her, whose name was Mangala. Right at the time of marriage, her husband died and she accepted the vow of a virgin for life. Hearing about Meera, he requested his parents and they kept it near Meera. Due to her heart-disease, Meera now started enjoying solitude. Suddenly there is a feeling of pangs in the heart, feeling as if something has been displaced in the chest. His hand would involuntarily go to the throat or chest, his eyes would fill with tears. Anyone who saw her inside or outside once or twice asked, ‘What happened Meera, is there any pain? Have you got some sickness?”

Mother used to think-‘ Waking up early in the morning, she keeps on twisting and breaking her hands and feet and the whole body. Somewhere some vein must have been snapped. Don’t know what to do with this after learning yoga? But whom should I tell? Neither does it believe nor does the food giver listen to anyone’s orders. Who can tell them? Who has two tongues in his mouth or who has two heads on his torso? Both Baisa (Abhay and Lakshmi) got married. Now she is the elder girl in the house, but do you know a single thing or work of women? She learns the work of men or of Babas. Oh God! What will happen to this girl?’

Dudaji got worried after hearing about Meera’s illness. When Meera did not tell anything on asking, then they called Rajvaidya. After checking everything, he said – ‘There is no slowness in Baisa.’ respectively

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