मीरा चरित भाग-25

तुम्हारे गिरधर ही तुम्हारे रक्षक हैं। अभी डेढ़ महीना और रहूँगा यहाँ।’

मीराके एकादश वर्ष में प्रवेश के तीसरे ही दिन दूदाजी बाबा बिहारीदासजी के साथ श्यामकुंज में आये। बाबा ने भरे मन से कहा-‘मैं जा रहा हूँ पुत्री!’

कहते-कहते उनकी आँखों से कई बूँदें झर पड़ीं। मीरा ने भी रोते हुए उनके चरणों पर सिर रखा। बाँह पकड़ उसे उठाकर सिर पर हाथ धर वे उसकी ओर निहारते रहे। इस दृश्य ने वहाँ उपस्थित सभी जनों को रुला दिया। आँसू भरी आँखों से उनकी ओर देख मीरा धरती की ओर देखने लगी। ‘कुछ कहना है बेटी?’ – अपने आँसू पोंछते हुए बाबा बिहारीदासजीने पूछा।

मीरा के मुँदै हुए नेत्रों से प्रेमाश्रु टपक रहे थे। उसने भरे गलेसे कहा
‘आप वृन्दावन पधार रहे हैं। बाबा! मेरा एक संदेश ले जायँगे?’ ‘बोलो बेटी! तुम्हारा संदेश-वाहक होकर तो मैं कृतार्थ हो जाऊँगा।’

मीरा ने कक्ष में दृष्टि फेरी। उसकी दासियों सखियों के अतिरिक्त दूदाजी और रायसल भी वहाँ उपस्थित थे। लाजके मारे बोला नहीं गया उससे। लकड़ी की कलमदान से कागज-कलम लेकर वह लिखने लगी। आँसुओंसे दृष्टि धुंधला जाती। आँखें पोंछ फिर लिखने लगती। लिखकर उसने मन-ही-मन पढ़ा-

स्याम मोरी बाँहड़ली गहो।
या भवसागर मँझधार में, थे ही निभावण हो।
म्हाँ में औगुण घणा छै हो, थे ही सहो तो सह।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी, लाज विरद की बहो।

और

गोविन्द कबहुँ मिलै पिया मेरा।
चरण कँवल को हँस हँस देखूँ, राखूँ नैणा नेरा।
निरखण को मोहि चाव घणेरौ, कब देखूँ मुख तेरा।
ब्याकुल प्राण धरत नहीं धीरज, मिल तू मीत सबेरा।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, ताप तपन बहु तेरा।

पत्र को समेटकर और सुन्दर रेशमी थैली में रखकर उसे बाबा बिहारीदासजी की और बढ़ा दिया। बाबा ने उसे लेकर सिर चढ़ाया और झोली में से डिबिया निकालकर उसमें रख दिया। गिरधर गोपालको प्रणाम कर सब बाहर आये। मीरा ने एक बार पुनः प्रणाम किया।

‘पहुँचाने कौन जायेगा?’–उसने दूदाजीसे पूछा।

‘मैं जाऊँगा।’ रायसल बोले- ‘बाबा पुष्कर तक ही जाने को कह रहे हैं, किन्तु आवश्यकता हुई तो वृन्दावन तक मैं पहुँचा आऊँगा।’ महावीर रायसल को देखकर मीराको संतोष हुआ।बिहारीदासजी के जाने से ऐसा लगा, जैसे गुरु, मित्र और सलाहकार खो गया।

संत रैदासजी का चरणाश्रय…..

‘कल गुरु पूर्णिमा है।’- मीरा अपने श्यामकुँज में बैठी हुई सोच रही हैं- ‘सदा से इस दिन लोग गुरु-पूजा करते आ रहे हैं। शास्त्र कहते हैं कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता। गुरु ही परमतत्त्व का दाता है। तब मेरे गुरू कौन?’
वह एकदम से उठकर दूदाजी के पास चल पड़ी। दूदाजी के समीप जयमल बैठे थे। वे तलवार और भाले के दाँवों के विषय में पूछ रहे थे। दूदाजी उनकी शंका समाधान करने के पश्चात् बोले- ‘समीपके युद्ध में जैसे तलवार, कटार, बरछी है, वैसे ही दूर की मार में भाला और तीर अपनी बराबरी नहीं रखते। विशेष रूप से तीर अधिक उपयोगी है। तुम चलाना सीख रहे हो न?’

‘हाँ, हुकम! बचेट (बीचवाले) काकोसा फरमाते हैं कि तलवारसे भी तीर अधिक कारगर है। तीर-धनुष दूर या पास सभी स्थानों पर काम आते हैं। किन्तु बाबोसा! घोड़े पर बैठकर तीर चलाना घोड़े की गति से तीर की गति, लक्ष्य और अपने बलाबल का साम्य बैठाना क्या बहुत कठिन नहीं है?’

‘अभ्यास होनेपर कुछ भी कठिन नहीं होता। बेटे! यदि देह लचीली है, भुजाओंमें बल है, मन में धैर्य और बुद्धि में निर्णय की शक्ति है तो सफलता चरण तले रहती है। अपने साथ-साथ अपने अश्व को भी साधो। योद्धा का आधा बल उसका अश्व है, यह मत भूलो। इसीलिये गरीब राजपूत स्वयं भुने चने खाकर भी अपने अश्वको घी से सनी रातिब खिलाते हैं। राजपूतों की स्त्रियाँ अपने पति के अश्व की पूजा-सेवा करती हैं क्योंकि वही रण में विजय का बड़ा माध्यम है और घायल होनेपर वही प्राणों पर खेलकर स्वामी को घर लाता है। इसी कारण नवरात्रि में शक्ति (करवाल) और केकाण (घोड़ा) दोनोंकी पूजा होती है, अतः ध्यान रखो कि तुमसे तुम्हारा अश्व योग्यता और बलमें तनिक भी कम न हो।’

‘किन्तु बाबोसा ! युद्धमें अश्व कम नहीं मरते, तब फिर….? – जयमलने पूछा।

‘बहुत से अश्वों को युद्ध के लिये एक साथ सधाया जाता है। तुम भी बड़े होकर चार-पाँच अश्व अपने लिये तैयार कर लेना। सबसे बड़ी बात यह है बेटा कि आदमी को घोड़े की सवारी आनी चाहिये। आदमी के प्यार, सेवा, ऐड़ और लगाम के संकेत से साधारण पशु भी विशेष हो जाता है और भूखा थका घायल होने पर भी स्वयँ के प्राण निकलने तक वह अपनी बुद्धि के अनुसार घायल अथवा मूर्छित स्वामी की रक्षा करता है।’
“बाबोसा! मुझे सैन्धव और गान्धारी अश्व कब मिलेंगे?”
“बेटा! अभी तुम छोटे हो। जैसे तुम्हारे धनुष, तलवार और भाले छोटे हैं, वैसे ही अश्व भी छोटा है।”
‘बावजी हुकम (पिता) जैसा बड़ा कब हो जाऊँगा?’
‘तनिक रुको; रुको भाई!’- मीरा इन दोनों को बात करते देखकर दूदाजी को प्रणाम करके जयमल के पीछे बैठ गयी थी। अब उसे टोकते हुए वह बाबोसा के समीप आ गयी।

‘अहो, जीजा! आप कब पधारीं? खम्माधणी!’-जयमल ने उठकर हाथ जोड़ अभिवादन करते हुए पूछा।

‘जब आप तलवार, तीर की क्षमता ज्ञात कर रहे थे। मैंने सोचा कि इन्हें समाधान मिल जाने पर अपनी बात पूछूंगी; पर आप हैं कि तलवार से भाले, भाले से तीर, तीर से अश्व पर आये और अब पट्टणी अश्व से सैन्धव और सैन्धव से गान्धारी पर आकर, कौन जाने आप युद्ध के किस चक्रव्यूह से निकलने के लिये कौन-सा दाँव पूछ बैठें। इसलिये बीच में ही टोक दिया है। मुझे मेरे नन्हें से प्रश्न का उत्तर मिल जाये तो आप अपना महाभारत पुनः आरम्भ कर दीजियेगा। बावजी हुकम की तलवार जितने तो हैं नहीं और उनके बराबर होनेकी बात कर रहे हैं।’
जयमल और दूदाजी मीरा की बात पर हँस पड़े।

‘कहो बेटा! क्या पूछना है?’–दूदाजीने कहा।
जयमल के समीप पड़ी चौकी को मीरा दूदाजी के पलंग के समीप खींच लायी। उस पर बैठते हुए बोली- ‘बाबोसा! शास्त्र और संत कहते हैं कि गुरु बिना ज्ञान नहीं होता। मेरे गुरु कौन हैं?’
‘हैं तो बाबा बिहारीदासजी, योगी श्रीनिवृत्तिनाथजी।’– जयमलने कहा।
क्रमशः



Your Girdhar is your protector. I will stay here for a month and a half more.’

Dudaji came to Shyamkunj with Baba Biharidasji on the third day of Meera’s admission in the eleventh year. Baba said with a full heart – ‘I am going daughter!’

While saying this, many drops of water fell from his eyes. Meera also kept her head at his feet crying. Holding her by the arm, lifting her up and keeping her hand on her head, they kept looking at her. This scene made everyone present there cry. Meera started looking at the ground looking at him with tearful eyes. ‘Have something to say daughter?’ Baba Bihari Dasji asked while wiping his tears.

Tears of love were dripping from Meera’s closed eyes. she said with a hug ‘You are coming to Vrindavan. Dad! Will you take a message of mine?’ ‘Speak daughter! I will be grateful by being your messenger.’

Meera looked around the room. Apart from his maids and friends, Dudaji and Raisal were also present there. Out of shame I did not speak to him. She started writing by taking pen and paper from the wooden pen holder. Vision blurred by tears. Wiping her eyes, she started writing again. By writing, he read in his mind-

Siam Mori Bahdli Gaho. Or in the middle of the Bhavsagar, you have to fulfill them. There should be a lot of virtues in me, if you bear them, then bear it. Lord Hari Abinasi of Mira, daughter-in-law of Laj Virad.

And

When did Govind meet my drink? Let me look at the feet of Kanwal with a smile, keep my eyes in my eyes. Nirkhan ko mohi chav ghanerau, when will I see your face. Troubled life, not the earth, patience, meet you friend in the morning. Meera’s Lord Girdhar Nagar, Tap Tapan daughter-in-law.

Wrapping the letter and keeping it in a beautiful silk bag, he extended it to Baba Biharidasji. Baba took him and offered his head and took out the casket from his bag and kept it in it. Everyone came out after saluting Girdhar Gopal. Meera bowed once again.

‘Who will go to deliver?’- He asked Dudaji.

‘I’ll go.’ Raisal said – ‘Baba is asking to go till Pushkar only, but if necessary I will reach Vrindavan.’ Meera was satisfied to see Mahavir Raisal. With the departure of Biharidasji, it felt as if the teacher, friend and advisor had been lost.

The feet of Saint Raidasji…..

‘Tomorrow is Guru Purnima.’- Meera is thinking while sitting in her Shyamkunj- ‘People have been worshiping Guru on this day since forever. The scriptures say that there is no knowledge without a Guru. Guru is the giver of the Supreme. Then who is my teacher?’ She immediately got up and went to her grandfather. Jaimal was sitting near Dudaji. He was asking about sword and spear shots. After clearing his doubts, Dudaji said – ‘Just as there are swords, daggers and spears in close combat, in the same way, spears and arrows are not equal in distant combat. The arrows in particular are more useful. You are learning to drive, aren’t you?’

‘Yes, Hukam! Bachet (intermediate) Kakosa says that the arrow is more effective than the sword. Arrows and bows are useful at all places, far or near. But Babosa! Is it not very difficult to balance the speed of the arrow with the speed of the horse, the target and your strength?’

‘Nothing is difficult with practice. Son! If the body is flexible, there is strength in the arms, patience in the mind and the power of decision in the intellect, then success lies at your feet. Along with yourself, train your horse as well. Don’t forget that half of a warrior’s strength is his horse. That’s why poor Rajputs feed their horses with ghee even after eating roasted gram. Rajput women worship and serve their husband’s horse because it is the main means of victory in the battle and when injured, it brings the master home by risking his life. This is the reason why both Shakti (Karwal) and Kekan (horse) are worshiped during Navratri, so take care that your horse does not reduce even a bit in its ability and strength.

‘But Babosa! Horses do not die less in war, then then….? Jaimal asked.

‘Many horses are harnessed together for battle. You also grow up and prepare four to five horses for yourself. The most important thing is that a man should know how to ride a horse. Even an ordinary animal becomes special by the sign of man’s love, service, aid and rein and even when hungry, tired and injured, he protects the injured or unconscious owner according to his intelligence till he dies.’ “Babosa! When will I get Sandhav and Gandhari Ashwa?” “Son! You are small now. Just as your bow, sword and spear are small, so is the horse.” ‘When will I grow up like Bavji Hukam (father)?’ ‘Wait a minute; Wait brother!’- Seeing these two talking, Meera bowed down to Dudaji and sat behind Jaimal. Now interrupting him, she came close to Babosa.

‘Oh, brother-in-law! when did you come Khammadhani!’- Jaimal got up and asked while greeting with folded hands.

‘When you were finding out the capacity of sword, arrow. I thought I would ask my point of view when they found a solution; But you are that from sword to spear, from spear to arrow, from arrow to horse and now Pattani coming from horse to Sandhav and from Sandhav to Gandhari, who knows what bet you will ask to get out of which maze of war. That’s why interrupted in the middle. If I get the answer to the question from my little one, then you will start your Mahabharata again. Bavji is not equal to the sword of Hukam and is talking about being equal to them.’ Jaimal and Dudaji laughed at Meera’s words.

‘Say son! What to ask?’-Dudaji said. Meera pulled the post lying near Jaimal near Dudaji’s bed. Sitting on it she said- ‘Babosa! Scriptures and saints say that there is no Guru without knowledge. Who is my teacher?’ ‘It is Baba Biharidasji, Yogi Shrinivrittinathji.’- said Jaimal. respectively

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