मीरा चरित भाग- 74

मीरा ने स्त्रियों की ओर दृष्टि फेरी- ‘तुम दुर्गा और चामुण्डा का स्वरूप हो।बिना मन के कोई हाथ तुम्हें कैसे लगा सकता है? जो तुम्हारी ओर कुदृष्टि करे, उसकी आँखे निकाल लो।जो तुम्हारे धर्म पर हाथ डाले, उसे बेरहमी से कुचल दो।यदि मार न पाओ तो मर जाओ।स्त्रीत्व खोकर रोते छीजते जीवन से मरण बेहतर है।पापियों के हाथ में पड़ने से पूर्व ही देह छोड़ दो।मनमें दृढ़ता और भगवान पर भरोजा हो तो असंभव कुछ भी नहीं।तुम्हें लूटने वाले तो बहुत हैं और बचाने वाले कोई दिखाई नहीं देता।औरों के भरोसे मत जीओ, पराये का मुँह कब तक ताकती रहोगी।’

चित्तौड़ पहुँचने से पूर्व ही मीरा की ख्याति वहाँ पहुँच गई।प्रजा वर्ग जहाँ प्रसन्न हुआ, वहीं राणाजी की ऐड़ी की झाल (लपट) चोटी तक पहुँच गई।क्रोध से लाल पीले हो वे मीरा के महल पहुँचे- ‘न हो तो दीवानजी की पाग आप ही बाँध कर गद्दी पर विराज जायें’- उन्होंने जाते ही कहा।
मीरा गिरधर के बागे सी रही थीं।देवर की बात सुनकर उन्होंने दृष्टि उठाकर एक बार उनकी ओर देखा और पुन:अपने काममें लग गईं।भाभी की यह निश्चिंतता देख कर विक्रम मन ही मन खीज उठे, पर स्वर को धीमा करके बोले- ‘आपके पास सोना चाँदी अधिक है तो उसे राजकोष में जमा करवा दीजिए।यों राह बाट में क्यों लुटाती फिरतीं हैं? भक्ति करते करते अब आप राजकाज में भी हस्तक्षेप करने लगीं।कर्मचारियों को डाँट कर भगा दिया आपने, क्यों? सहज कर कौन देता है? थोड़ी बहुत सख़्ती तो करनी पड़ती है और ऊपर से आपने तो उन्हें लड़ने का उत्साह दिलाया।अब इस प्रकार राजकाज कैसे चल सकता है? जिस घराने की नारियों को सूर्य चंद्र भी सहज नहीं देख पाते थे, वे अब मंदिरो, राह बाट में घूमतीं हैं, नाचीज लोगों से बातें करतीं हैं।यह सब मुझसे सहा नहीं जाता।वे अपना काम कर रहे थे, आपने क्यों पधार करके उनके काममें दखल दिया।’
‘वे स्त्रियों को ले जाना चाहते थे।आपने कर में स्त्रियाँ तो नहीं माँगी होगीं?’- मीरा ने गम्भीर स्वर में कहा- ‘पिछले वर्ष के अकाल और अश्विन की डकैती ने उन्हें भूखे मरने पर विवश कर दिया है।राज्य के कर्मचारी उन्हें गालियाँ देते हुये जो हाथ लगा, वही उठा ले जा रहे थे।स्त्रियों से मसखरी कर रहे थे, यह मुझसे सहा न गया।मैनें तो उन्हें यही कहा कि जमाने की हालत हूजूर को अर्ज कर दिया करो।वे क्या जानें कि प्रजा किस स्थिति में है? जिसके पास खाने को अन्न नहीं है, वह कर कहाँ से चुकायेगा? दो वर्ष का कर बाकी था,सो मैनें अपनी दासियों के आभूषण दे दिए।आपके पास कर आ गया और वे भी चार दिन निश्चितता की साँस लेगें।’
‘दासियों के गहने’- राणाजी ने क्रोध मिश्रित आश्चर्य से कहा- ‘दासियाँ तो सोने चाँदी से लूमाँ झूँमा हो रही हैं।उन चार गहनों से हाँसल पूरा हो गया?’
‘ये गहने तो मैनें यहाँ आकर दिये हैं।उस समय तो चारों दासियों के गहने उतरवा दिये थे।’
‘लोग तो झूठ बोलते हैं कि डाकू आये, अकाल पड़ा।बहाने खाजने वालों को उपायों की कमी नहीं रहती।आज अर्ज कर रहा हूँ कि मुझे मेरा काम करने दें। अब कभी बीच में न पड़ियेगा। नहीं तो मुझसे बुरा कोई न होगा। चारों ओर बदनामी हो रही है कि मेवाड़ की कुवँरानी बाबुड़ों, मोड़ों की भीड़ में नाचती है। सुन-सुन कर हमारे कान पक गये, पर आपको क्या चिन्ता?’
मीरा ने समीप पड़ा तानपुरा उठाया-

या बदनामी लागे मीठी हो हिन्दूपति राणा।
साँकड़ी सेरया में म्हाँने गुरू मिलिया, किंकर फिरू अपूठी हो मेवाड़ा राणा।
थाँरा तो राम मीरा म्हाँने बतावौ, नीतर थाँरी भगती झूठी हो मेड़तणी मीरा।
म्हँरा तो राम राणा सबमें विराजै, थाँरा हिया री किंकर फूटी हो चित्तौड़ा राणा।
कोई निन्दो कोई वन्दो हूँ, तो चाँलू ली चाल अनूठी हो सिसोदया राणा।
सतगुरू सूँ बाँता करता, दुरजन लोगाँ ने दीठी हो चित्तौड़ा राणा।
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर चढ़ गयो रंग मजीठी हो हिन्दूपति राणा।

‘मुझे जोकहना था सो कह दिया, अब कुछ हो जाये तो मुझे दोष न दीजियेगा’- कहकर विक्रम चले गये।मीरा के संत हृदय पर तो इसका कोई प्रभाव न पड़ा किंतु ड्योढ़ी पर बैठे मेड़तिया राठौर इस अपमान से झुलस उठे- ‘किसी दूसरे से कहलवा देते।बड़ी भौजाई से स्वयं दाँताँकच्ची करने दौड़े आये।’
‘इतनी भी अक़्ल नहीं है इन मतिहीन राणाजी में?’
‘अरे, बुरा क्या किया बाईसा हुकुम ने, तुम्हारे कर में तो कोई कमी नहीं रहने दी, फिर?’
अरे, दिन रात भाँड भवैयों से घिरे रहते हैं।सीमाएँ दुश्मनों ने दबा लीं हैं, इसका तो ज्ञान ही नहीं है।यहाँ घर में सिँह बनते हैं।’
‘किसी दिन खोटी बीतेगी’
‘हाँ, जीभ की भूल माथे को भोगनी पड़ती है और राजा की मूर्खता प्रजा को दु:ख देती है।किसी दिन इनकी भूल मूर्खता मेवाड़ को ले डूबेगी।’
‘मुझे बाईसा हुकुम ने एकसंकेत भी किया होता न तो यहीं धूल चटा देता।फिर जो होना होता हो जाता।हमारे जीते जी हमारे सामने बाईसा का अपमान कर गया।’
‘होने को क्या होता? उमराव तो सब रूठे बैठे हैं।छोटे बड़े की मर्यादा रखना तो सीखा ही नहीं यह। न जाने कैसे इसे राजा बना दिया भगवान ने।ऐसा लगता हैकि ननिहाल जैसा निपज गया है, यहाँ तो ऐसे कोई न थे।’
‘अरे अपने जवाँई सा को देखते तुम? रूप गुणों के समुद्र थे।अपना भाग्य रूठा और वे ओछी उमर पाये।’

राणा का षड़यन्त्र…….

महाराणा का क्रोध धीरे धीरे प्रकट हुआ। एक दिन चार दासियों के साथ उदयकुँवर बाईसा ने आकर मीरा से कहा- ‘भाभी म्हाँरा, श्रीजी ने आपकी सेवा में ये दासियाँ भेजी हैं।’
‘बाईसा ! मेरी क्या सेवा है? मेरे पास तो एक ही दो पर्याप्त हैं।यहाँ तो पहले से ही अधिक हैं।’-मीरा ने हँस कर कहा।
‘क्यों भरण पोषण के लिए जागीर कम हो तो श्रीजी से निवेदन करूँ?’
‘अरे नहीं, कृपा है प्रभु की, लालजीसा ने भेजी है तो छोड़ पधारो।’
पन्द्रह बीस दिन पश्चात ही मीरा की खास दासी मिथुला की सारी देह में दाह उत्पन्न हो गया।वह रह रह करके नहाती और गीले वस्त्र पहने रहती।बार बार गला सूखता और वह पानी पीते पीते थक जाती।देह में जैसे लपटें फूटतीं।वैद्यजी आये, परीक्षा करके कहा- ‘छोरी बचेगी नहीं। जाने-अनजाने में पेट में विष उतर गया है।’
क्रमशः



Meera turned her eyes towards the women – ‘You are the form of Durga and Chamunda. How can anyone touch you without mind? Whoever casts evil eye on you, take out his eyes. Whoever puts his hand on your religion, crush him mercilessly. If you cannot kill, then die. Leave the body. Nothing is impossible if you have firmness in your mind and trust in God. There are many people who rob you and you do not see anyone to save you.

चित्तौड़ पहुँचने से पूर्व ही मीरा की ख्याति वहाँ पहुँच गई।प्रजा वर्ग जहाँ प्रसन्न हुआ, वहीं राणाजी की ऐड़ी की झाल (लपट) चोटी तक पहुँच गई।क्रोध से लाल पीले हो वे मीरा के महल पहुँचे- ‘न हो तो दीवानजी की पाग आप ही बाँध कर गद्दी पर विराज जायें’- उन्होंने जाते ही कहा। मीरा गिरधर के बागे सी रही थीं।देवर की बात सुनकर उन्होंने दृष्टि उठाकर एक बार उनकी ओर देखा और पुन:अपने काममें लग गईं।भाभी की यह निश्चिंतता देख कर विक्रम मन ही मन खीज उठे, पर स्वर को धीमा करके बोले- ‘आपके पास सोना चाँदी अधिक है तो उसे राजकोष में जमा करवा दीजिए।यों राह बाट में क्यों लुटाती फिरतीं हैं? भक्ति करते करते अब आप राजकाज में भी हस्तक्षेप करने लगीं।कर्मचारियों को डाँट कर भगा दिया आपने, क्यों? सहज कर कौन देता है? थोड़ी बहुत सख़्ती तो करनी पड़ती है और ऊपर से आपने तो उन्हें लड़ने का उत्साह दिलाया।अब इस प्रकार राजकाज कैसे चल सकता है? जिस घराने की नारियों को सूर्य चंद्र भी सहज नहीं देख पाते थे, वे अब मंदिरो, राह बाट में घूमतीं हैं, नाचीज लोगों से बातें करतीं हैं।यह सब मुझसे सहा नहीं जाता।वे अपना काम कर रहे थे, आपने क्यों पधार करके उनके काममें दखल दिया।’ ‘वे स्त्रियों को ले जाना चाहते थे।आपने कर में स्त्रियाँ तो नहीं माँगी होगीं?’- मीरा ने गम्भीर स्वर में कहा- ‘पिछले वर्ष के अकाल और अश्विन की डकैती ने उन्हें भूखे मरने पर विवश कर दिया है।राज्य के कर्मचारी उन्हें गालियाँ देते हुये जो हाथ लगा, वही उठा ले जा रहे थे।स्त्रियों से मसखरी कर रहे थे, यह मुझसे सहा न गया।मैनें तो उन्हें यही कहा कि जमाने की हालत हूजूर को अर्ज कर दिया करो।वे क्या जानें कि प्रजा किस स्थिति में है? जिसके पास खाने को अन्न नहीं है, वह कर कहाँ से चुकायेगा? दो वर्ष का कर बाकी था,सो मैनें अपनी दासियों के आभूषण दे दिए।आपके पास कर आ गया और वे भी चार दिन निश्चितता की साँस लेगें।’ ‘दासियों के गहने’- राणाजी ने क्रोध मिश्रित आश्चर्य से कहा- ‘दासियाँ तो सोने चाँदी से लूमाँ झूँमा हो रही हैं।उन चार गहनों से हाँसल पूरा हो गया?’ ‘ये गहने तो मैनें यहाँ आकर दिये हैं।उस समय तो चारों दासियों के गहने उतरवा दिये थे।’ ‘लोग तो झूठ बोलते हैं कि डाकू आये, अकाल पड़ा।बहाने खाजने वालों को उपायों की कमी नहीं रहती।आज अर्ज कर रहा हूँ कि मुझे मेरा काम करने दें। अब कभी बीच में न पड़ियेगा। नहीं तो मुझसे बुरा कोई न होगा। चारों ओर बदनामी हो रही है कि मेवाड़ की कुवँरानी बाबुड़ों, मोड़ों की भीड़ में नाचती है। सुन-सुन कर हमारे कान पक गये, पर आपको क्या चिन्ता?’ मीरा ने समीप पड़ा तानपुरा उठाया-

Or defamation may be sweet, Hindupati Rana. I got my teacher in Sankari Seraya, Kinkar Firu is untouchable, Mewada Rana. Where is Ram Meera, please tell me, if you are a liar, you are a liar, Meera. Where is Ram Rana sitting in everyone, Thanra hiya ri kinkar phuti ho Chittorada Rana. If I am a blasphemer or a vando, then the move of the hand should be unique, Sisodaya Rana. Satguru used to distribute snuff, evil people have seen Chittorda Rana. Meera says Lord Girdhar went to Nagar, Rang Majithi ho Hindupati Rana.

‘I said what I wanted to say, now don’t blame me if something happens’- Vikram went away saying this. Meera’s saintly heart was not affected by this, but Medatiya Rathore sitting on the porch was incensed by this insult- ‘Someone else Would have made them say. Elder brother-in-law himself came running to get his teeth cleaned.’ ‘Doesn’t this senseless Ranaji have that much intelligence?’ ‘Arey, what bad did Baisa Hukum do, there was no shortage in your taxes, then?’ Arey, day and night they are surrounded by brothers-in-law. Enemies have suppressed the borders, there is no knowledge of this. Lions are made in the house here.’ ‘Someday the mistake will pass’ ‘Yes, the forehead has to suffer the mistake of the tongue and the stupidity of the king hurts the people. Someday their mistake and stupidity will drown Mewar.’ ‘Baisa Hukum had given me even a hint, otherwise I would have licked the dust here. Then whatever had to happen would have happened. Baisa was insulted in front of us while we were alive.’ ‘What would have happened? Umrao is all sulking. He hasn’t learned to respect the elders. Don’t know how God made him a king. It seems that he has died like a child, there were no such people here.’ ‘Hey, do you see your youth? His form was an ocean of virtues. His fate upset him and he lived a short life.

Rana’s conspiracy

Maharana’s anger appeared slowly. One day Udaykunwar Baisa came with four maids and said to Meera- ‘Sister-in-law Mhanra, Shreeji has sent these maids for your service.’ ‘Baisa! What is my service? I have only one or two is enough. Here there are already more.’- Meera said with a smile. ‘Why should I request Shreeji if the manor is less for maintenance?’ ‘Oh no, it’s God’s grace, Laljisa has sent it, so leave it.’ After 15 to 20 days Meera’s special maidservant Mithula developed a burning sensation all over her body. She used to keep bathing and wearing wet clothes. , after examining said – ‘The girl will not survive. Knowingly or unknowingly, poison has entered the stomach. respectively

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