मीरा चरित भाग- 78

उदयकुँवर बाईसा का आश्चर्य उनके हृदय को मथे जा रहा था। भजन पूरा होने पर मीरा ने धोक दी।हृदय का उत्साह थमता ही न था।विक्षिप्त की भाँति उन्होंने मूरत को छाती और गालों से लगाकर प्रीत की अनगित मोहरें दीं।उदयकुँवर बाईसा उठकर धीरे धीरे बाहर चली गईं।
‘बाईसा हुकम ! बाईसा हुकम !’- दासियाँ उदयकुँवर बाईसा के जाते ही रोती हुई एक साथ ही अपनी स्वामिनी के चरणों में जा पड़ीं – ‘यह आपने क्या किया? अब क्या होगा? हम क्या करें?’
‘क्या हो गया बावरी? क्यों रो रही हो तुम सब?’- मीरा ने चम्पा की पीठ सहलाते हुए कहा।
‘आपने जहर क्यों आरोग लिया?’
मीरा हँस पड़ी- ‘जहर कब पिया पागल, मैंने तो चरणामृत पिया है। विष पिया होता तो मर न जाती अब तक। उठो, चिंता मत करो। भगवान पर विश्वास करना सीखो। प्रह्लाद को तो सांपों से डँसवाया गया, हाथियों के पाँव तले कुचलवाया गया और आग में जलाया गया, पर क्या हुआ? यह जान लो कि मारनेवाले से बचानेवाला बहुत बड़ा है।’
‘बाईसा हुकम, अपने मेड़ते चले जायें’- चम्पा ने आँसू ढ़रकाते हुये कहा।
‘क्यों भला? प्रभु मेड़ते में हैं और चित्तौड़ में नहीं बसते? यह सारी धरती और इसपर बसने वाले जीव भगवान के ही निपजायें हुये हैं। तुम भय त्याग दो। भय और भक्ति साथ नहीं रहते।’

‘पी लिया’- महाराणा विक्रमादित्य ने पूछा।
‘हाँ, अन्नदाता’- दयाराम पंडाजी ने कहा।
‘क्या बात है पंडाजी, ऐसे क्यों हो रहे हो?’
‘कुछ नहीं हुकुम’
‘कुछ तो’
‘जब कुँवराणीसा आरोगने लगीं तो बाईसा हुकुम ने अर्ज कर दिया कि मत आरोगो भाभा म्हाँरा यह तो विष है।यह सुनकर मेरी तो पिंडलियाँ काँने लगीं सरकार, कि ड्योढ़ी पर बैठे मेड़तिये राठौर अभी मेरे टुकड़े टुकड़े कर देगें, किंतु कुँवराणी सा तो उनका बात सुनकर हँस पड़ीं।उल्टे बाईसा को समझाने लगीं कि आई मौत टलती नहीं और दूर हो तो कोई खींच कर पास ला नहीं सकता।आप चिंता न करे।मेरी आँखों के सामने ही उन्होंने कटोरा होठों से लगाकर खाली कर दिया।ऐसे जानबूझकर कौन प्रत्यक्ष काल को गले लगाता है सरकार, मैं तो देखकर चकित रह गया।
‘गले लगाया सो तो उसके साथ जाना भी पड़ेगा’- महाराणा बोले- ‘दो घड़ी में सुन लेना मेड़तणीजी सा बड़े घर पहुँच गईं, पर जीजा हुकुम यह क्या सूझी कि उन्होंने कह दिया?’
‘अब आज्ञा हो अन्नदाता’
‘जाओ, इस बात की कहीं चर्चा न करना’
‘खातिर जमा रखें सरकार’
उसके जाते ही उदयकुँवर बाईसा पधारीं।सूखा मुँह, भाल पर पसानें की बूँदें औक साँस जैसे छाती में समा नहीं रही हो।उन्हें देखकर महाराणा ने अपना मनोरथ पूर्ण माना।मुस्कराते हुए उन्होंने पूछा- ‘क्या हुआ जीजा हुकुम, काम हो गया न’
उदयकुँवर बाईसा ने अस्वीकृति में माथा हिला दिया।
‘हैं? भाभी म्हाँरा जीवित हैं?’- उनकी आँखे आश्चर्य से फैल गईं।
‘हाँ हुकुम, दयाराम पंडा के साथ मैं भी तमाशा देखने गई थी।चरणामृत का नाम सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुईं।प्याले को ठाकुर जी के चरणों में रखकर उन्होंने एक भजन गाया और फिर प्याले को उठाकर होंठों से लगा लिया।यह देखकर मुझसे न रहा गया।दौड़ कर मैनें उनका हाथ थाम लिया और कहा कि मत आरोगो भाभीसा, यह जहर है, किंतु वे न मानीं।उसे सहज पी लिया।उनके मुख पर दु:ख या असंतोष की एक रेखा तक नहीं आई।सहज शांत प्रसन्न मुख से उन्होंने वह हलाहल पान कर लिया।कटोरा लेकर पंडाजी इधर आये और वे आनंद में मतवाली होकर और पाँवों में घुँघरू बाँध कर नाचने लगीं।भजन पूरा करके वे भगवान पर बलिहार हो रही थीं, फिर मैं इधर चली आई।वे सचमुच भक्त हैं हुकुम, हमें नहीं सताना चाहिए।वे जैसे भी रहना चाहें, रहने दीजिए।’
‘वाह जीजा हुकुम वाह, आप भी आ गईं न उस जादूगरनी के जाल में।वैद्य ने अवश्य कुछ चतुराई की है।अभी बुलाता हूँ उसे। प्रहरी।’- उन्होंने पुकारा।
‘वैद्यजी को बुलाने भेज किसी को’- अभिवादनकर पीछे की ओर चलता हुआ प्रहरी कक्ष से बाहर हो गया।

‘आज्ञा हो अन्नदाता’- वैद्य ने उपस्थित होकर अभिवादन किया।
‘तुम तो कहते थे कि इस विष से आधी घड़ी में हाथी मर जायेगा, किन्तु यहाँ तो मनुष्य का रोम भी (ताता) गर्म न हुआ।’- महाराणा उफन पड़े।
‘यह नहीं हो सकता सरकार, मनुष्य के लिए तो उसकी दो बूँद ही बहुत हैं।ऐसा कौन सा लोहे का मनुष्य है, मुझे बताने की कृपा करें अन्नदाता, यह बातमैं किसी प्रकार नहिं मान पा रहा हूँ- वैद्यजी ने कहा।
‘चुप रह नीच, हरामखोर’- राणा दाँत पीसते हुए बोले- ‘मेरा ही दिया खाता है और मुझसे ही चतुराई करता है? बड़ी भाभी म्हाँरा को आरोगाया था यह, पर वह तो मजे से नाच गा रही हैं।’
‘भक्तों का रक्षक तो भगवान हैं अन्नदाता, जहाँ चार हाथवाला रक्षा करता है, वहाँ दो हाथवालों की क्या चलेगी हुजूर? अन्यथा मनुष्य के लिए तो इस कटोरे में शेष बची ये दो बूँदे ही पर्याप्त हैं।’
‘फिर वही बात’- महाराणा गरज उठे- झूठ बोलकर मुझे भरमाना चाहता है? ये दो बूँदे तू ही पी।देखूँ तो तेरी बातों में कितनी सच्चाई है?’
‘मैं अन्नदाता?’- वैद्यजी का मुँह पीला पड़ गया।
‘हाँ तू, पी इसको।मुझे ही धोखा देना चाहता है?’
अरे अन्नदाता, मैनें धोखा नहीं दिया।यह हलाहल है’- वैद्यजी गिड़गिड़ाये- ‘मेरे बूढ़े माँ बाप का और छोरे छोरी का कौन धणी है? उन्हें कौन रोटी देगा? मेहर मेरे सरकार, मैनें हुजूर से कोई धोखा नहीं किया है।’ वैद्यजी रोने लगे।
‘ये त्रिया चरित्र मुझे नहीं सुहाते।पी इसे।’
काँपते हाथों से वैद्यजी ने कटोरा उठाया और भीतर की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुये बोले- ‘हे नारायण ! तुम्हारे भक्त के अनिष्ट में मैंने सहयोग दिया, उसी का दण्ड हाथों-हाथ मिल गया प्रभु, किंतु मैं अनजान था।मुझ पर नहीं, मेरे अनाथ बालकों और बूढ़े माँ बाप पर कृपा बनाये रखना स्वामी।’- उसने कटोरा ऊपर उठा कर मुँह खोला।विष की दो बूँदे जीभ पर टप-टप टपक पड़ी।थोड़ी देर में कटोरा हाथ से छूटा और झनझनाता हुआ दूर जा गिरा।वैद्यजी की आँखे चक्कर खाने लगीं।मुँह खुल गया और हल्का सा चक्कर खाकर वे भूमि पर जा गिरे।एक दो बार हाथ पैरों ने खींचातानी की, गले से अस्पष्ट आर्तनाद फूटा, गर्दन लुढ़क गई, आँखें फट गईं।
क्रमशः



Udaykunwar Baisa’s surprise was going on in his heart. On completion of the bhajan, Meera betrayed. The enthusiasm of the heart could not stop. Like a madman, he hugged the idol on the chest and cheeks and gave countless stamps of love. Udaykunwar Baisa got up and went out slowly. ‘Baisa Hukam! Baisa Hukam!’ – As soon as Udaykunwar Baisa left, the maidservants fell at the feet of their mistress crying together – ‘What have you done? What will happen now? What do we do?’ ‘What happened Bawari? Why are you all crying?’ Meera said caressing Champa’s back. ‘Why did you take poison?’ Meera laughed – ‘ When did you drink poison, you fool, I have drunk Charanamrit. Had she consumed poison, she would not have died by now. Wake up, don’t worry Learn to believe in God. Prahlad was bitten by snakes, crushed under the feet of elephants and burnt in the fire, but what happened? Know that the savior is greater than the slayer.’ ‘Baisa Hukam, go away with your medte’ – Champa said with tears in her eyes. ‘why indeed? Prabhu is in Medte and does not reside in Chittor? This whole earth and the creatures living on it are the creation of God. you drop the fear Fear and devotion do not go together.

‘Drank’ – Maharana Vikramaditya asked. ‘Yes, Annadata’ – Dayaram Pandaji said. ‘What’s the matter Pandaji, why are you acting like this?’ ‘Nothing Spades’ ‘Something’ ‘When Kunvaranisa started getting better, Baisa ordered that don’t heal my sister, this is poison. On hearing this, the government started shivering, that Rathor sitting on the porch will cut me into pieces, but if she is like a virgin, then they are talking about her. On hearing this, she laughed. On the contrary, she started explaining to Baisa that death cannot be avoided and if it is far away, no one can pull it near. The government embraces, I was surprised to see. ‘If you hug me, you will have to go with him’ – Maharana said – ‘Listen, in two hours Medtaniji has reached a big house, but brother-in-law Hukum, what did you think that she said?’ ‘Now be the food giver’ ‘Go, don’t discuss this anywhere’ ‘Keep deposits for the sake of the government’ As soon as he left, Udaykunwar Baisa arrived. Dry mouth, drops of sweat on the skin and breath as if the chest could not hold. Seeing him, the Maharana considered his wish fulfilled. Udaykunwar Baisa shook his head in disapproval. ‘Are? Sister-in-law Mhanra is alive?’- Her eyes widened in surprise. ‘Yes Hukum, I also went to watch the spectacle with Dayaram Panda. She was very happy to hear the name of Charanamrit. Placing the cup at the feet of Thakur ji, she sang a hymn and then lifted the cup and put it to her lips. Running, I took hold of her hand and said don’t get sick sister-in-law, it is poison, but she did not agree. She drank it easily. Not even a single line of sorrow or discontent appeared on her face. Pandaji came here with a bowl and she started dancing intoxicated with joy and tying anklets on her feet. , We should not torture. Let them live as they want.’ ‘Wow brother-in-law, Hukum wah, you have also come in the trap of that sorceress, haven’t you? The doctor must have done something clever. I will call him now. Sentinel.’- He called. ‘Send someone to call Vaidyaji’ – the sentinel went out of the room walking backwards after greeting him.

‘Aajna ho food giver’ – Vaidya appeared and greeted him. ‘You used to say that an elephant would die from this poison in half an hour, but here even a man’s hair (Tata) didn’t get warm.’- Maharana was furious. ‘This can’t happen, government, for a human being, only two drops of it are enough. Please tell me who is such a man of iron, giver of food, I am not able to accept this in any way – Vaidyaji said. ‘Shut up, you scoundrel’ – Rana said grinding his teeth – ‘He only eats my lamp and plays tricks with me only? Elder sister-in-law Mhanra was cured by this, but she is singing and dancing with pleasure. God is the savior of the devotees, the giver of food, where the one with four hands protects, how will the one with two hands do? Otherwise, these two drops remaining in this bowl are enough for a human being.’ ‘Then the same thing’ – Maharana thundered – He wants to mislead me by telling lies? You only drink these two drops. Let me see how much truth is there in your words?’ ‘I am the food giver?’- Vaidyaji’s face turned pale. ‘Yes you, drink it. Wants to cheat me only?’ Hey food giver, I have not cheated. Who will give them bread? Mehar Mere Sarkar, I have not cheated Huzoor.’ Vaidyaji started crying. ‘These three characters don’t suit me. Drink it.’ Vaidyaji picked up the bowl with trembling hands and looking inside with a steady gaze said – ‘O Narayan! I cooperated in the evil of your devotee, he got his punishment hand in hand Lord, but I was unaware. Lord, have mercy on my orphan children and old parents, not on me.’- He lifted the bowl up and opened his mouth. Two drops of poison dripped on the tongue. After a while, the bowl left the hand and fell away tinkling. Vaidyaji’s eyes started spinning. The arms and legs thrashed again and again, an indistinct moan erupted from the throat, the neck rolled, the eyes burst. respectively

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