परमात्मा की खोज पर निकलने में जो सबसे बड़ी बाधा है, वह मन का यह नियम है कि हमें उसका ही पता चलता है, जो नहीं है। निगेटिव का पता चलता है, पाजिटिव का पता नहीं चलता। टूट गया दांत, तो पता चलता है। वह दांत चालीस साल से आपके पास था, तब इस जीभ ने कभी उसकी फिक्र न की। आज नहीं है, तो उसकी तलाश है!
मन निगेटिविटी, मन जो है नकार की तरफ दौड़ता है। वैसे ही जैसे पानी गङ्ढों की तरफ दौड़ता है, ऐसा ही मन अभाव की तरफ, एब्सेंस की तरफ, जो नहीं है, उसकी तरफ दौड़ता है। जो है, उसकी तरफ मन नहीं दौड़ता।
और परमात्मा सर्वाधिक है। टू मच। इतना ज्यादा है कि उसके सिवाय और कुछ भी नहीं है। वही वही है। सब तरफ वही है। आंख खोलें तो, आंख बंद करें तो; जागें तो, सो जाएं तो। सब तरफ वही वही है। सागर की तरह हमें घेरे हुए है। इसलिए करोड़ों में एक उसकी खोज पर निकलता है।
अगर परमात्मा की खोज पर निकलना हो, करोड़ों में एक बनना हो, तो इस सूत्र से विपरीत चलेंगे तभी, अन्यथा कभी नहीं। जो आपके पास हो, उसका स्मरण रखें; और जो आपसे दूर हो, उसे भूल जाएं। जो दांत अभी मुंह में हो, उसे जीभ से टटोलें; और जो गिर जाए, उसे मत टटोलें। जो आज सुबह रोटी मिली हो, उसका आनंद लें; जो रोटी कल मिलेगी, उसके सपने मत देखें। जो नहीं है, उसे छोड़ दें; और जो है, उसे पूरे आनंद से जी लें। तो आप करोड़ों में एक बनना शुरू हो जाएंगे।
क्योंकि ध्यान रखना, यात्रा सीधी परमात्मा की नहीं हो सकती, जब तक आपके मन का ढंग, आपके मन की व्यवस्था न बदले।
कभी आपने खयाल किया कि आप सोचते हैं, एक मकान बना लें। जब तक नहीं बनाते, तब तक मन बिलकुल आर्किटेक्ट हो जाता है। कितनी कल्पनाएं करता है! कितने नक्शे बनाता है! फिर मकान बन जाता है। फिर उसी मकान में जीने लगते हैं, और मकान को भूल जाते हैं। हां, रास्ते से जो निकलते होंगे, उनके मन में आपके मकान के लिए विचार आता होगा। आपको भर नहीं आता, जो उसके भीतर रहता है!
देवी महापुराण।
The biggest obstacle in going on the search of God is the law of the mind that we come to know only that which is not there. Negative is detected, positive is not detected. Broken tooth, then it turns out. You had that tooth for forty years, then this tongue never bothered about it. Not today, so looking for him! The mind runs towards negativity, the mind which is negative. Just as the water runs towards the pits, so the mind runs towards the absence, towards the absence, towards that which is not there. The mind does not run towards that which is. And God is the highest. Too much It is so much that there is nothing other than that. That’s what it is. It’s the same everywhere. If you open your eyes, you close your eyes; If you wake up, then go to sleep. It’s the same everywhere. Surrounds us like the ocean. So one in crores sets out on his quest. If you want to go out in search of God, to become one among crores, then you will go against this sutra only then, otherwise never. Remember what you have; And forget the one who is away from you. Touch the tooth that is currently in the mouth with the tongue; And don’t touch the one who falls. Enjoy the bread you got this morning; Don’t dream of the bread you will get tomorrow. Leave what is not; And whatever it is, live it to the fullest. Then you will start becoming one in crores. Because keep in mind, the journey cannot be directly of God, unless the way of your mind, the system of your mind does not change. Have you ever thought that you think, build a house. Until you create, the mind becomes an architect. How many fantasies! How many maps does it make! Then it becomes a house. Then they start living in the same house, and forget the house. Yes, those who come out of the way must have an idea for your house. You don’t get filled with what lives inside! Devi Mahapurana.