परिवार के सभी आदरणीय भगत जनों एवम् मातृ शक्ति को जय राम जी की
भगवान की कौन सी लीला में क्या हेतु बना है यह हमारी बुद्धि का विषय नहीं, उन्हें जानना-समझना उनकी कृपा से ही सम्भव है। भगवान की प्रार्थना से, स्मरण-कीर्तन-चिन्तन करने से चित्त सरस होने लगता है और फिर अनुभव होता है प्रभु की सन्निधि का; और इसका अनुभव होते ही चित्त आत्यन्तिक वेग से प्रवेश कर जाता है अन्तर्देश में, तब भगवान स्वयं मार्गदर्शक चितस्वरूप गुरु के रूप में भवसागर से पार ले जाने वाली नाव पर केवट के रूप में प्रकट हो जाते हैं…। और जानते हो? ऐसा होते ही तत्क्षण सम्पूर्ण दुःखों का अभाव, पर्यवसान होकर सदा-सदा के लिए स्थान प्राप्त हो जाता है।
मनुष्य आप ही अपना मित्र और आप ही अपना शत्रु है और दूसरा कोई न तो शत्रु है, न मित्र है। परिस्थिति का यदि सदुपयोग करें, तो वही परिस्थिति उद्धार करने वाली हो जाती है। *परिस्थिति प्राप्त हो, उसका पूर्ण सदुपयोग करो । यह मत सोचो कि अनुकूल परिस्थिति आयेगी, तब भजन करेंगे पैसा कुछ हो जाय, तब भजन करेंगे; _लड़का काम सँभाल ले, फिर भजन करेंगे। फिर नहीं होगा । किसी का हुआ नहीं ।*
जैसे पंडितजी वधू का हाथ वर को सौंप देते हैं , वैसे ही श्री सदगुरुदेव जीव का हाथ प्रभु को साँप देते हैं।
जीव के सच्चे स्वामी प्रभु ही हैं।
जो प्रभु के भरोसे रहता है वह संसार सागर की बड़ी-बड़ी बाधाओं से पार हो जाता है ।
नागमाता सुरसा ने प्रभु श्री हनुमानजी से कहा कि आप बल और बुद्धि में निपुण है। सुरसा ने प्रभु श्री हनुमानजी का बल तब देखा जब वे अपना कद दुगुना करते गए और बुद्धि तब देखी जब वे लघु बन गए ।
जो भी शरण में आता है प्रभु उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं।
जब प्रभु वनवास के बाद से श्री अयोध्याजी पधारे तो श्री भरतलालजी की नंदीग्राम में तपस्या को देखकर प्रभु श्री रामजी के श्रीनेत्रों में आंसू आ गए।
ज्ञानी को शांति मिल जाएगी पर शांति के साथ परमानंद तो भक्तों को ही मिलेगा
ज्ञानी को प्रभु अपने में लीन करते हैं पर भक्तों को प्रभु अपने संग रखते हैं, जैसे एक माता गर्भ में बच्चे को लीन रखती है और संग में बाहर बड़े बच्चे को रखती है। प्रभु जिसका संग करते हैं उसे भक्ति प्रदान करते हैं और जिसको लीन करते हैं उसे मोक्ष देते हैं।
Jai Ram ji to all the respected Bhagat people and mother power of the family. It is not a matter of our intellect for what purpose is made in which leela of God, it is possible to know and understand them only by His grace. With the prayer of the Lord, by remembrance-kirtana-contemplation, the mind begins to swell and then one experiences the presence of the Lord; And as soon as it is experienced, the mind enters the interior with great speed, then the Lord Himself appears in the form of a guiding mind in the form of a boat carrying a guru across the ocean of the universe…. And do you know? As soon as this happens, the absence of all sorrows, ending with the end, gets a place for ever and ever. Man himself is his friend and himself his enemy and no one else is neither enemy nor friend. If you make good use of the situation, then that situation becomes savior. * If you get the situation, make full use of it. Do not think that a favorable situation will come, then you will do bhajan, if money becomes something, then you will do bhajan; The boy should take care of the work, then he will do bhajan. Won’t happen again. Nobody happened.*
Just as Panditji hands over the hand of the bride to the groom, similarly Shri Sadgurudev gives a snake to the Lord. The true owner of the soul is the Lord. One who trusts in GOD crosses the great obstacles of the ocean of the world. Nagmata Sursa told Lord Shri Hanumanji that you are skilled in strength and intelligence. Surasa saw the strength of Lord Shri Hanumanji when he doubled his height and saw the wisdom when he became small. Whosoever comes in refuge, the Lord accepts him happily. When Lord Shri Ayodhya ji came after exile, then seeing Shri Bharatlalji’s penance in Nandigram, tears came in the eyes of Shri Ramji. The wise will get peace, but only the devotees will get ecstasy with peace. GOD absorbs the wise in Himself, but GOD keeps the devotees with Him, just as a mother keeps a child in the womb and an older child outside with her. The Lord bestows devotion to whomever he associates with, and salvation to whomever he merges.