समुद्रतट पर एक व्यक्ति चिंतातुर बैठा था, इतने में उधर से विभीषण निकले।
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उन्होंने उस चिंतातुर व्यक्ति से पूछाः क्यों भाई ! किस बात की चिंता में पड़े हो ?
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मुझे समुद्र के उस पार जाना है परंतु कोई साधन नहीं है। अब क्या करूँ इस बात की चिंता है।
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अरे… इसमें इतने अधिक उदास क्यों होते हो ? ऐसा कहकर विभीषण ने एक पत्ते पर एक नाम लिखा तथा उसकी धोती के पल्लू से बाँधते हुए कहा..
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इसमें तारक मंत्र बाँधा है। तू श्रद्धा रखकर तनिक भी घबराये बिना पानी पर चलते जाना। अवश्य पार लग जायेगा।
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विभीषण के वचनों पर विश्वास रखकर वह भाई समुद्र की ओर आगे बढ़ा तथा सागर की छाती पर नाचता-नाचता पानी पर चलने लगा।
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जब बीच समुद्र में आया तब उसके मन में संदेह हुआ कि विभीषण ने ऐसा कौन-सा तारक मंत्र लिखकर मेरे पल्लू से बाँधा है कि मैं समुद्र पर चल सकता हूँ।
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जरा देखना चाहिए।
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श्रद्धा और विश्वास के मार्ग में संदेह ऐसी विकट परिस्थितियाँ निर्मित कर देता है कि…
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काफी ऊँचाई तक पहुँचा हुआ साधक भी विवेक के अभाव में संदेहरूपी षड्यंत्र का शिकार होकर अपना पतन कर बैठता है…
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तो फिर साधारण मनुष्य को तो संदेह की आँच ही गिराने के लिए पर्याप्त है।
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हजारों-हजारों जन्मों की साधना अपने सदगुरु पर संदेह करने मात्र से खतरे में पड़ जाती है।
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अतः साधक को सदगुरु के दिए हुए अनमोल रत्न-समान बोध पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए।
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उस व्यक्ति ने अपने पल्लू में बँधा हुआ पन्ना खोला और पढ़ा तो उस पर दो अक्षर का ‘राम’ नाम लिखा हुआ था।
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उसकी श्रद्धा तुरंत ही अश्रद्धा में बदल गयी: अरे ! यह तारक मंत्र है ! यह तो सबसे सीधा सादा राम नाम है !
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मन में इस प्रकार की अश्रद्धा उपजते ही वह डूब मरा।
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हृदय में भरपूर श्रद्धा हो तो मानव महेश्वर बन सकता है। अतः अपने हृदय को अश्रद्धा से बचाना चाहिए।
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इस प्रकार के संग व परिस्थितियों से सदैव बचना चाहिए जो ईश्वर तथा संतों के प्रति बनी हमारी आस्था, श्रद्धा व भक्ति को डगमगाते हों।
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त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्।।
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कुल के हित के लिए एक व्यक्ति को त्याग दो। गाँव के हित के लिए कुल को त्याग दो। देश के हित के लिए गाँव का परित्याग कर दो और आत्मा के कल्याण के लिए सारे भूमंडल को त्याग दो..!!
🙏🌹जय जय श्री राधे🌹🙏