राम कंहा है राम कंही बाहर नहीं है राम आपकी पुकार मे है राम को कंहा ढूंढ रे बन्दे, प्राणो में राम है समाये हुए, राम की भक्ति से राम मिल जाते हैं
रामनिराकार, निर्गुण, अजन्मा, अनंत, निरंतर, असीम, सर्वव्यापी हैं। हमें भी अपने भीतर के ‘राम’ (अनुभव) को जागृत करना है।
राम परमचेतना का, ईश्वर का नाम है। जो हर मनुष्य के अंदर उसके हृदय में निवास करता है। मानवशरीर ‘दशरथ’ है। अर्थात दस इंद्रियाँ रूपी अश्वों का रथ। इस रथ के दस अश्व हैं- दो कान, दो आँखें, एक नाक, एक जुबान, एक (संपूर्ण) त्वचा, एक मन, एक बुद्घि और एक प्राण। इस दशरथ का सारथी है- ‘राम’। राम इंद्रियों का सूरज है। उसी के तेज से शरीर और उसकी इंद्रियाँ चल रही हैं।
जब शरीर रूपी रथ पर चेतना रूपी राम आरूढ़ होकर इस का संचालन अपने हाथों में लेते हैं तभी वह सजीव होकर अभिव्यक्ति करता है। शरीर दथरथ है तो सारथी राम, शरीर शव है तो शिव (चेतना) राम…। राम से वियोग होते ही दशरथ का अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। इन दोनों का मिलन ही अनुभव और अभिव्यक्ति का, जड़ और चेतना का, परा और प्रकृति का मिलन है। अपने सारथी राम के बिना दशरथ उद्देश्यहीन है और दशरथ के बिना राम अभिव्यक्ति विहीन।
सकारात्मक ऊर्जा, शांति और आनंद महसूस करने लगते हैं।
कुछ लोग रामायण को ईश्वर के अवतार श्रीराम की लीला समझकर, श्रद्धा और भक्ति से निरंतर पढ़ते रहते हैं तो कुछ लोग इसे भारतीय इतिहास की महानगाथा समझकर वर्तमान में उसके चिन्हों और साक्ष्यों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह महान गाथा पढ़ने का एक और तरीका भी है। वह तरीका है ‘खोज’ का। यह खोज बाहरी साक्ष्यों या तथ्यों की नहीं है। यह आंतरिक खोज है।
वास्तव में रामायण इंसान के अलग-अलग मनोभावों का ताना-बाना है। इसकी हर घटना इंसान की आंतरिक स्थिति का ही प्रतिबिंब है। रामायण में चित्रित हर चरित्र इंसान के अंदर ही मौजूद है, जो समय-समय पर बाहर निकलता है। उदाहरण के तौर पर जब एक इंसान किसी दूसरे इंसान के विरुद्ध किसी के कान भरता है तब वह मंथरा बन जाता है। यदि कोई इंसान किसी बाहरवाले की बातों में आकर, अपने शुभचिंतकों पर ही संदेह करने लगे तो उस वक्त वह कैकेयी है।
राम का नाम सिमरण करने से मन में पवित्र भावनाएं प्रकट हो जाती है। राम राम जपते हुए हुए हृदय में प्रेम प्रकट होता है। भक्त की चेतना जागृत हो जाती है। राम नाम से भक्त राम भावना से ओतप्रोत होता है भक्त राम मंदिर में दर्शन के लिए जाता है भक्त बहुत भोला होता है वह राम को अन्तर्मन मे नही टटोलता है राम हमारे मन के हृदय के स्वामी हैं। भक्त के प्राण प्रभु राम में है। भक्त पल पल अपने स्वामी को निहारता है भक्त का भगवान जड चेतन मे समाया हुआ है भक्त को ऐसे लगता है यह विशव प्रभु का रूप है। हर पल राम राम राम राम मेरे राम मै तुम्हे देखना चाहता हूं तुम्हे निहारना चाहता हूं। तुम मे समा जाना चाहता हूं। तुम ही राम हो तुम ही कृष्ण हो। हृदय तंरगो को तुम्हे समर्पित करना चाहता हूं। तुम धडकन हो, तुम प्राण हो तुम सर्वस्व हो। राम आत्मा है एक समय के पश्चात् भक्त भगवान की भीतर खोज करता है
राम हृदय ही है राम आत्मा की पुकार है हम जीवन में अन्य से कुछ देर बात करते हैं परमात्मा के साथ हर क्षण बात करते हैं हृदय के भाव श्री हरी को समर्पित करते हुए हृदय आनंद से भर जाता है परमात्मा प्रभु राम कृष्ण हरि भक्त को अपनी लीला दिखाते हैं भक्त हृदय में उठते हुए प्रेम को प्रभु चरणों में समर्पित कर देता है। हृदय भाव में कभी मौन है तब कभी श्री हरी के भाव में नृत्य कर रहा है भक्त की पुकार और भाव मे परमात्मा है भक्त जानता है यह सब ईश्वर की लीला है आज प्रभु श्री हरी ही आये हैं तभी ये आनंद बन रहा है। गृहस्थ जीवन है कार्य भी कर रहा है दिल की उंमग में शरीर नहीं है भक्त का नृत्य शरीर से परे का नृत्य है। प्रभु प्रेम मुर्ति मंदिर से ऊपर उठ जाता है। भाव समय नहीं देखते घडी घडी उठते भाव प्रभु प्राण नाथ के प्रेम को प्रकट करते हैं। प्रेम ही जीवन का सार है
जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी बैठ
मै बावरी ढुबन भयी रही किनारे बैठ
जय श्री राम अनीता गर्ग