जय महाकाल

buddha pond statue


*मैं निराकार, मैं ही आकार हूँ,*
*मैं महाकाल, मैं ही किरात हूँ ।।*
*समय का प्रारब्ध, मैं समय का ही अंत हूं,*
*मैं भूत, वर्तमान और मैं ही भविष्य हूँ ।।*
*मैं ही राख, मैं ही श्वांस हूँ,*
*मैं मृत्यु और मैं ही अंत हूँ ।।*
*हूँ कण-कण में जीवन के हर क्षण में,*
*मैं हर दुख में और सुख में व्याप्त हूँ ।।*

*निश्फल नहीं मैं भय नहीं,*
*मैं दंड हूँ , कोई भ्रम नहीं ।।*
*मैं वितरागी, मैं ही आशुतोष हूँ,*
*मैं सरल सौम्य, मैं भयंकर रूद्र हूँ ।।*

*मैं ही अनादि, मैं ही अनंत हूँ,*
*मैं हूँ अनामय, मैं ही अजन्म हूँ ।।*
*शांति का शोर हूँ शोर की अशांति मैं,*
*कालों का काल मैं ही भूतनाथ हूँ ।।*

*मैं भीम आकाश, रूद्र अग्नि रूप हूँ,*
*मैं ही उग्र सूर्य, मैं ही शीतल चन्द्र हूँ ।।*
*मैं ही भव जल में, सर्व क्षिति में हूँ,*
*मैं ही पशु-पछी और जीवों में व्याप्त हूँ ।।*

*हूँ श्मशानवासी मैं ताण्डव हूँ क्रोध का*
*भस्म का कर श्रृंगार, करता विषपान मैं ।।*
*मैं ही महाकाल, मैं ही मोक्ष का सार हूँ,*
*काल हूँ मैं काल हूँ, मैं मृत्यु की ललकार हूँ ।।*

*कहते चँद्रशेखर, मैं ही नटराज हूँ,*
*मैं नीलकंठ और मैं ही नागनाथ हूँ ।।*
*मैं आदिदेव, मैं ही अनादिकाल हूँ,*
*मैं ही शिवशंकर, मैं ही उमानाथ हूँ ।।*

*मैं ही सृजन हूँ, मैं ही कालदृष्टि हूँ,*
*सृष्टि संहारक, मैं ही संम्पूर्ण सृष्टि हूँ ।।*
*मैं मुक्ति, मैं शक्ति, मैं ही तो भक्ति हूँ,*
*मैं ही जटाधारी, मैं ही तो शिवशक्ति हूँ ।।*

*मैं ही महेश, मैं ही विश्वेश हूँ,*
*मैं ही कपाल और कपालधारी हूँ ।।*
*मैं ही प्रचंड, मैं ही सर्वत्र हूँ,*
*विनाश का नाश, हूँ अविनाशी मैं ।।*

*मैं ही हूँ “मैं” और , मैं ही हूँ मैं “नहीं”*
*मैं हूँ इक वो जो कोई सोचता नहीं ।।*
*अघोर हूँ मैं भोर हूँ, विभत्स और विभोर हूँ,*
*अंधकार का अंत मैं, प्रकाश का मैं पंख हूँ ।।*

*मैं पूर्ण एक अपूर्ण हूँ, अपूर्ण में भी पूर्ण हूँ,*
*मैं ही हाड़ मांस और मैं ही पंच तत्व हूँ ।।*
*मैं ही ओमकार, मैं ही शंभूनाथ नाथ हूँ,*
*देवों का देव मैं कहलाता महादेव हूँ ।।
*



* I am formless, I am the shape,* * I am Mahakal, I am Kirat. * Time’s destiny, I am the end of time,* *I am the past, the present and I am the future.* * I am the ashes, I am the breath,* *I am death and I am the end.* * I am in every moment of life in every particle,* *I am pervaded in every sorrow and in happiness.*

* not ineffective, I am not afraid,* * I am punishment, no illusion.* * I am Vitragi, I am Ashutosh,* * I am simple gentle, I am fierce Rudra.*

* I am the beginning, I am the infinite,* * I am Anamay, I am the unborn.* * I am the noise of peace, I am the disturbance of noise,* * I am the Bhootnath of the Kaal.*

* I am Bhima Akash, Rudra Agni form,* * I am the fiery sun, I am the cold moon. * I am only in the water, in all the damage,* * I am pervaded in animals and birds and living beings.*

*I am the crematorium, I am the orgy of anger* * Make up with ashes, I drink poison. * I am Mahakal, I am the essence of salvation,* * I am Kaal, I am Kaal, I am the challenge of death.

* says Chandrashekhar, I am Nataraja,* *I am Neelkanth and I am Nagnath.* * I am Adidev, I am the eternal,* * I am Shivshankar, I am Umanath.

* I am the creation, I am the time vision,* * Creation destroyer, I am the whole creation. * I am liberation, I am power, I am devotion,* * I am the Jatadhari, I am the Shiva Shakti.

* I am Mahesh, I am Vishvesh,* * I am the cranium and the cranium. * I am fierce, I am everywhere,* * Destroyer of destruction, I am imperishable..*

* I am “I” and, I am only “I”* *I am the one who does not think.* * I am aghor, I am the morning, I am vibhatsa and mabhor,* * I am the end of darkness, I am the wing of light.

* I am the perfect one imperfect, I am complete even in the imperfect,* * I am the bone and the flesh and I am the five elements.* * I am Omkar, I am Shambhunath Nath,* I am called the God of gods, Mahadev. ,

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