भगवान लीला करते

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भक्त भगवान की भक्ति करता है तब मार्ग में उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पङता है। प्रथम मन का भटकाव है। मन भक्त को भगवान मे लगने नहीं देता है। भगवान का सिमरण स्मरण करते हुए मन कुछ टिकने लगता है। भगवान की भक्ति बहुत करते हैं।

भगवान के दर्शन की आत्म तत्व को जाग्रत करने के लिए किसी विरले का दिल तङफता है। जिसका दिल प्रभु प्राण नाथ का बन जाने के लिए बेचने होता है। जीवन में उसे किसी भी प्रकार से चैन मिलता है। वह परमात्मा की खोज बाहर से न करके अपने अन्दर से करता है

अन्तर्मन का दरवाजा खटकाता है। उस की धुन गहरी होती है। दिल मे अरमान मचलते है। कब श्री हरी से मिलन होगा।हर सांस भगवान को पुकार रही है। ऐसे भक्त भगवान को माला मनका मुर्ति ग्रंथों में नहीं ढुंढता है। भक्त का दिल मन्दिर बन जाता है। दिल में भगवान बैठ जाते है। भक्त के दिल में नीत नई उमंग जगती है। भक्त अपने आप को भुल जाता है। भगवान का बन जाता है। दिल की धड़कन पुकार लगाती है। तब भगवान भक्त पर धन और ऐश्वर्य की बोछार करते हैं। संसारिक सुख के रस से तृप्त करना चाहते हैं जिससे भक्त आगे की ओर न बढ पाए। भगवान की कृपा भक्त पर हर क्षण बरस रही होती है।

भक्त भगवान को शिश नवा कर प्रार्थना करता है ।हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ तेरे नाम रस के सामने इस कोङी का कोई मोल नहीं है। हे नाथ प्रेम रस के सामने संसारिक वैभव और सुख फीके है। हे मेरे प्राण प्रिय अवश्य ही मुझ से कुछ भुल हुई प्रभु तभी तुम प्रेम को स्वीकार नहीं करते हो। मेरे नाथ तुम ही मेरे प्राण अधारे हो। अपने अन्तर्मन मे झांकता है। यह दिल की तङफ होती है। दिल पैसे के तराजू में तुलता नहीं है यह सब मार्ग के पङाव है समझ कर आगे बढ़ता है। भक्त और भगवान का झगड़ा पुराना है नहीं चाहीए तेरी माया रे।

भगवान नाम रस ऐसा रस है जिसने गहरी डुबकी लगाकर नाम रस का भगवान के भावो का रसपान किया है। उन भक्तों के लिए भौतिक रस फीके है। भक्त भगवान का चिन्तन मनन भावो से करता है। भगवान फिर लीला करते हैं भक्त को एक एक पैसे के लिए तरसाते है।भक्त भगवान नाम रस में तृप्ति के मार्ग पर होता है। भक्त भोजन करना नहीं चाहता है। संसारिक सुख में दुख दिखाई देते हैं। भक्त ऊपरी तौर पर सिरियस होता है। अन्तर्मन से सिरियस नहीं है भक्त अपने अन्तर्मन को पढता है क्या ये परिस्थिति तुझे तोड़ सकती है। अन्तर्मन से आवाज आती हैं ये मार्ग का पङाव है। तु दृढ होकर अपने अन्तर्मन मे खोज कर। भक्त भगवान को भजता रहता है सख्ती से भगवान के हाथ को पकङ लेता है।

भक्त जानता है यह सब लीला है भक्त उस परिस्थिति को अध्यात्म की दृष्टि से पढता है।तेरा मार्ग पुरण होने वाला है।इसलिए प्रभु प्राण नाथ कृपा कर रहे हैं। भक्त देखता है अब सभी किनारा कर गए हैं।

भक्त मौन हो जाता है। मौन में प्रत्येक मार्ग का हल है। मौन में हम अपने आप से अपने अन्तर्मन से बात करने लगते हैं। हमारे अन्तर्मन की डिसीजन पावर स्टरोंग हो जाती है। हमारे अन्तर्मन मे नई जागृति होती है। हमारा नव निर्माण होता है। मौन में हम आत्मचिंतन करने लगते हैं। चाहे कैसी भी परिस्थिति हो आत्मा का इन परिस्थितियों पर कोई प्रभाव नहीं पङता है फिर तु क्यों सोचता है आत्मचिंतन शांति का मार्ग है। आत्म आनंद परमानन्द है। जय श्री राम अनीता गर्ग

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