।। ॐ नमो भगवते गोविन्दाय ।।
जिनके हृदय में निरन्तर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे शुद्धान्त:करण पुरुष स्वप्न में भी यमराज को नहीं देखते।
जिनके हृदय में भक्ति महारानी का निवास है, उन्हें प्रेत, पिशाच, राक्षस या दैत्य आदि स्पर्श करने में भी समर्थ नहीं हो सकते।
भगवान् तप, वेदाध्ययन, ज्ञान और कर्म आदि किसी भी साधन से वश में नहीं किये जा सकते; वे केवल भक्ति से ही वशीभूत होते हैं। इसमें श्रीगोपीजन प्रमाण हैं।
मनुष्यों का सहस्रों जन्म के पुण्य-प्रताप से भक्ति में अनुराग होता है। कलियुग में केवल भक्ति, केवल भक्ति ही सार है। भक्ति से तो साक्षात् श्रीकृष्णचन्द्र सामने उपस्थित हो जाते हैं।
येषां चित्ते वसेद्भक्तिः सर्वदा प्रेमरूपिणी।
नते पश्यन्ति कीनाशं स्वप्नेऽप्यमलमूर्तयः।।
न प्रेतो न पिशाचो वा राक्षसो वासुरोऽपि वा।
भक्तियुक्तमनस्कानां स्पर्शने न प्रभुर्भवेत्।।
न तपोभिर्न वेदैश्च न ज्ञानेनापि कर्मणा।
हरिर्हि साध्यते भक्त्या प्रमाणं तत्र गोपिकाः।।
नृणां जन्मसहस्रेण भक्तौ प्रीतिर्हि जायते।
कलौ भक्तिः कलौ भक्तिः भक्त्या कृष्णः पुरः स्थितः।।
(श्रीमद्भागवतमाहात्म्य- २ / १६ – १९)
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।
।। ॐ नमो भगवते कृष्णाय ।।