भक्ति में निष्काम भाव

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ऐसा निष्काम बनना चाहिये कि यदि राम-नाम के बदले में कोई तुम्हें सुवर्ण से भरी हुई पृथ्वी देता हो तो उससे बदली मत करो, क्योंकि राम-नाम सत्य है और सोने से भरी हुई पृथ्वी असत्य है । असत्य वस्तु के लिये सत्य का बदला कदापि नही करना चाहिए।
साधना सूत्र
(1) प्रभु को अपने मन और बुद्धि से पूर्ण समर्पण का नाम ही शरणागति है ।
(2) जब आवश्यक बोलना पड़े, जब भोजन ग्रहण करना हो और जब रात्रि में निद्रा लेनी हो । इन तीन समय के अतिरिक्त हमेशा हमारी जिह्वा प्रभु का नाम रटती रहे । यह भक्ति की एक बहुत ऊँची स्थिति होती है ।
(3) प्रभु की भक्ति करना और प्रभु में अपना मन लगाना ही सर्वोपरि धर्म है ।
(4) प्रभु प्राप्ति के सभी साधन शरीर के अंग की तरह है, पर भक्ति प्राण स्वरूप है। जैसे प्राण के बिना शरीर मृत है। वैसे ही प्राण की तरह भक्ति बिना सभी साधन निष्फल सिद्ध होते हैं ।
उपासना सूत्र
(1) जब श्री सुदामाजी ने सुदामापुरी का वैभव देखा तो उन्होंने प्रभु से प्रार्थना करी कि संपत्ति प्रभु और भक्त के बीच व्यवधान नहीं बने ऐसा वरदान अगर प्रभु उन्हें देते हैं तब ही वे इस संपत्ति को स्वीकार करेंगे अन्यथा प्रभु से उन्होंने कहा कि इसे वापस ले लीजिए ।
(2) श्री सुदामाजी ने अपनी पत्नी भगवती सुशीलाजी को कहा कि धन- संपत्ति तुम्हारी है, मेरे तो सिर्फ मेरे प्रभु श्री कृष्णजी हैं ।
(3) प्रभु के धाम जाना जितना जरूरी है । उससे भी ज्यादा जरूरी प्रभु को निरंतर जीवन में याद करते रहना । क्योंकि ऐसा करने पर ही हम प्रभु के धाम पहुँच पाएंगे ।
(4) प्रभु सुनते हैं पर हम प्रभु को पुकारना ही नहीं जानते ।
🙏जय सीताराम🙏

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