अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

प्रभु का तेज 

एक भक्त अंतर्मन से भाव में है  अन्तर्मन से भगवान का सतसंग चल रहा है भक्त भाव मे गहरा चला

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जीवन भीतर है

माओत्से-तुंग ने अपने बचपन की एक छोटी सी घटना लिखी है। लिखा है कि मेरी मां का एक बगीचा था।

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रमण की समाधि

रमण की समाधि समझने जैसी है। ज्यादा उम्र उनकी न थी। ज्यादा होती तो शायद समाधि मिलती भी न। ज्यादा

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