अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

ईश्वर के सम्मुख

जीव जब ईश्वर के सम्मुख हो जाता है उसी क्षण जीव के सारे जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं,ईश्वर,

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निष्काम कर्मयोग

मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है। कर्म करना और फल की इच्छा न करना हीनिष्काम कर्म-योग यानि भक्ति-योग

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     मृत्यु सत्य है

मृत्यु  यात्रा है आत्मा चोले का नव निर्माण करती है।आत्मा के लिए शरीर का बदलाव वस्त्र बदलने के समान है।

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कर्म ज्योत जलाओ

मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है। कर्म की हम कितनी बाते करे कर्म को शुद्ध रूप से किये

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