प्रभु का तेज
एक भक्त अंतर्मन से भाव में है अन्तर्मन से भगवान का सतसंग चल रहा है भक्त भाव मे गहरा चला
एक भक्त अंतर्मन से भाव में है अन्तर्मन से भगवान का सतसंग चल रहा है भक्त भाव मे गहरा चला

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं….जीवात्मा का विनाश करने वाले “काम, क्रोध और लोभ” यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को

एक भक्त की कर्म प्रधान साधना हैं। भक्त कर्म करते हुए जितना आनंद विभोर होता है । कर्म करते हुए
माओत्से-तुंग ने अपने बचपन की एक छोटी सी घटना लिखी है। लिखा है कि मेरी मां का एक बगीचा था।

क्योंकि सुख और दुख को भोगने के लिए ही इस शरीर की उत्पत्ति हुई है या जन्म होता है ।

रमण की समाधि समझने जैसी है। ज्यादा उम्र उनकी न थी। ज्यादा होती तो शायद समाधि मिलती भी न। ज्यादा

मनुष्य शरीर मिलना परम सौभाग्य की बात है। यह शरीर सुंदर घर है जिसके भीतर हृदय में परमात्मा विराजमान हैं।
सुंदरी जी :आदिनाथ प्रभु और माता सुनंदा की पुत्री सुंदरी जी थी। आदिनाथ प्रभु ने सुंदरी जी को गणित का

मिथिला के महाराजा जनक केवल एक राजा ही नहीं थे वे धर्म, ज्ञान और कर्मयोग के आदर्श पुरुष थे। उनका

आत्मा के आगे जीव या परम शब्द केवल मनुष्य के द्वारा अपनी ही आत्मा को दी गईं अविद्याजनित उपाधियाँ हैं!