
आत्मा तु चेत जा
ऐ आत्मा! ये शरीर तेरा घर नहीं है। ऐ आत्मा! तुझे परम तत्व परमात्मा से साक्षात्कार करना है। ऐ आत्मा,
ऐ आत्मा! ये शरीर तेरा घर नहीं है। ऐ आत्मा! तुझे परम तत्व परमात्मा से साक्षात्कार करना है। ऐ आत्मा,
एक फकीर नानक के पास आया और उसने कहा कि मैंने सुना है कि तुम चाहो तो क्षण में मुझे
आज का युग भौतिक पदार्थों में खुशी ढुंढता है। वह बाहर की खुशी के साथ जीवन जीते हैं उनकी कल्पना
किसे कहते है आभामंडल-औरा -प्रभामंडल-प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है “सदैव बहने वाली हवा”।
ध्यान अ-मन की अवस्था है। ध्यान बिना किसी विचार के शुद्ध चेतना की स्थिति है। साधारणता, तुम्हारी चेतना, कचरे से
नामदेव उन्हें ढूंढते हुए शिव मंदिर में पहुँचे।वहाँ देखा तो विसोबा खेचर शिवलिंग पर पाँव पसार कर सोए हुए थे।नामदेव
जीव जब ईश्वर के सम्मुख हो जाता है उसी क्षण जीव के सारे जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं,ईश्वर,
कभी-कभी यह भ्रम सहज रूप से मन में आता है कि जो जगत मुझे चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा
मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है। कर्म करना और फल की इच्छा न करना हीनिष्काम कर्म-योग यानि भक्ति-योग
मृत्यु यात्रा है आत्मा चोले का नव निर्माण करती है।आत्मा के लिए शरीर का बदलाव वस्त्र बदलने के समान है।