
भगवद्प्रेम में मधुर भाव की सेवा साधना
भगवद्प्रेम में मधुर भाव की सेवा का अधिकार पाने के लिये दो तरह की साधना करनी पड़ती है। एक को
भगवद्प्रेम में मधुर भाव की सेवा का अधिकार पाने के लिये दो तरह की साधना करनी पड़ती है। एक को
राम कंहा है राम कंही बाहर नहीं है राम आपकी पुकार मे है राम को कंहा ढूंढ रे बन्दे, प्राणो
।। । भगवान् ने गीतामें कहा है‒ ‘ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः’ (गीता १५ / ७) । ‘इस संसार में जीव
जीव पर पल पल, हर पल प्रभु की कृपा वृष्टि होती रहती है । उस कृपा के दर्शन करने हेतु
भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले,” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव … ?उनका ध्यान रखना ,
खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाएंगे, इसलिए इस प्रेमपूर्ण संसार में प्रेम किये जा वन्दे, यही साथ जायेगा।
।। जय जय जय श्री राम ।। रामचंद्र के भजन बिनु जो चह पद निर्बान।ग्यानवंत अपि सो नर पसु बिनु
क्या आपने कभी सोचा है कि लोग जन्म-जन्मांतर तक जप करते रहते हैं, फिर भी ईश्वर उनके समक्ष प्रकट क्यों
भगवान की भक्ति हो या अध्यात्म में मोक्ष पाना हो, ये सब कुछ एक ही भाव पर पूर्ण हो सकता
भगवान के नामों का जप मनुष्य की बुद्धि को पवित्र और निर्मल करने वाला है। श्रीमद्भगवद्गीता (१० / २५) में