
जीवन का परम लाभ
श्रीमद्भागवत जी मे वर्णन आता हैं की जब सुदामा जी महाराज ठाकुर जी से मिलने के लिए जाते हैं
श्रीमद्भागवत जी मे वर्णन आता हैं की जब सुदामा जी महाराज ठाकुर जी से मिलने के लिए जाते हैं
जीवन में हम जैसे भी हो जब भी समय मिले भगवान को भजते रहे भगवान मेरे है मै भगवान का
मुझे नही पता था, की जिंदगी को कैसे जिया जाता है, जैसे सब लोग खाना पीना सोना घूमना फिरना
भक्त भगवान को भजते हुए भगवान के भाव मे लीन रहता है। भक्त का दिल हर क्षण भगवान को पुकारता
दक्षिण भारत से किसी समय एक कृष्ण भक्त वैष्णव साधु वृंदावन की यात्रा के लिए आए थे । एक बार
भगवान हमारे अहसास में आ गए हमारे जीवन का लक्ष्य परमात्मा को सच्चे मन से भजना है हमे देखना यह
. रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंगला में एक सुन्दर खण्डकाव्य लिखा है कबीर पर। उसके अनुसार कबीरदासजी मगहर में रहते
पुंडलिक जी माता-पिता के परम भक्त थे। एक दिन पुंडलिक अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण रुक्मिणी
युवक अंकमाल भगवान बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और बोला- “भगवन्! मेरी इच्छा है कि मैं संसार की कुछ सेवा
भगवान् मेरा है मै भगवान की हूं। मुझे आज और अभी भगवान से सच्चा और पका सम्बन्ध बनाना है। भगवान्