प्रभु कृपा
केवल भौतिक उपलब्धियों को प्रभु कृपा का स्वरूप नहीं समझना चाहिए।अक्सर लोग भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति को ही दैवीय
केवल भौतिक उपलब्धियों को प्रभु कृपा का स्वरूप नहीं समझना चाहिए।अक्सर लोग भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति को ही दैवीय
निश्चित ही स्वभाव बदल जाने से जीवन का प्रभाव भी बदल जाता है। यूँ तो अधिकांश लोग जिन्दगी से शिकायत
जीवन बहुत सरल है,इसे हमने ही कठिन बनाया है।हमे अपने जीवन में कठिन समय में प्रतिक्रिया नही करनी चाहिए, बल्कि
परम पिता परमेश्वर ही सृष्टि के सृजन हार,पालनहार और संहारक भी है।जब वह किसी भी कृति का सृजन करते है,तब
सभी तैरना चाहते है,अच्छी बात है, किन्तु बहने में जो आनंद है वह तैरने में कहाँ ? तैरने में संघर्ष
सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से पानी का लोटा पीकर राजा प्रसन्न हुआ और कहने लगा―”हे पानी पिलाने वाले !
प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में श्रेष्ठत्व की प्राप्ति के लिए प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा इन तीन अवस्थाओं से गुजरना
पिता अपने बेटे के साथ पांचसितारा होटल में प्रोग्राम अटेंड करके कार से वापस जा रहे थे। रास्ते में
हम पुरा जीवन किसी न किसी को पकड़ कर रखते और सोचते हैं अमुक सम्बन्ध अमुक रिस्तेदार हमें बहुत सुख
जब आप के सामने मुसीबत पर मुसीबते आती है। तब स्टारटिगं में आप अपने घर परिवार अपने हमसफ़र से आशा