रामायण (Ramayan)

भरत जी की तपस्या

भरत जी श्रीराम की चरण-पादुकाओं को लेकर अयोध्या लौट आए। राम वन में रहे और भरत राजमहल में सुख भोगें,

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भगवान राम की देवताओं द्वारा स्तुति

दोहा-बरषहिं सुमन हरषि सुर बाजहिं गगन निसान।गावहिं किंनर सुरबधू नाचहिं चढ़ीं बिमान।। भावार्थ-देवता हर्षित होकर फूल बरसाने लगे।आकाश में डंके

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कलियुग मुक्ति नाम जप से

।। कलियुग की व्याख्या ।।(श्रीरामचरितमानस से) कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते

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एक श्लोकी रामायण-

श्री रामाय नमः आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।वैधिहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।बालिनिर्दलानं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।पश्चाद रावण कुंभकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।। भावार्थ-श्रीराम

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