
अच्छा पैसा ही अच्छे काममें लगता है।
एक ईश्वरविश्वासी, त्यागी महात्मा थे; वे किसीसे भीख नहीं माँगते, टोपी सीकर अपना गुजारा करते। एक टोपीकी कीमत सिर्फ दो
एक ईश्वरविश्वासी, त्यागी महात्मा थे; वे किसीसे भीख नहीं माँगते, टोपी सीकर अपना गुजारा करते। एक टोपीकी कीमत सिर्फ दो
(12) अब चिन्ता किस बातकी स्वामी केशवानन्द, जिन्होंने शिक्षाका व्यापक प्रचार किया, राज्यसभाके सदस्य थे। एक दिन उनके एक सहकर्मीने
एक बार श्रमण महावीर कुम्मार ग्रामसे कुछ दूर संध्या-वेलामें ध्यानस्थ खड़े थे। एक गोपाल आया और ध्यानस्थ महावीरसे बोला- ‘रे
देवर्षि नारद व्रजभूमिमें भ्रमण कर रहे थे। श्रीकृष्णचन्द्रका अवतार हुआ नहीं था; किंतु होनेवाला ही था। घूमते हुए वे एक
घट-घटमें वह साईं रमता एक बार सन्त उमरको रास्तेमें एक गुलाम बकरियाँ चराते हुए दिखायी दिया। वे उसके पास गये
आनन्दरामायणकी तीन बोधकथाएँ पहली कथा – भेड़ोंका उपदेश एक समयकी बात है, माता कैकेयी श्रीरामके पास गयीं और उनसे बोलीं-
संत बहिणाबाई और उनके पति गंगाधरराव अपनी प्यारी कपिलाके साथ देहूमें तुकाराम महाराजके दर्शनार्थ आये थे। रास्तेमें एक दिन गंगाधररावको
महाराणा संग्रामसिंह स्वर्ग पधारे। मेवाड़के सिंहासनके योग्य उनका ज्येष्ठ पुत्र विक्रमादित्य सिद्ध नहीं हुआ। राजपूत सरदारोंने उसे शीघ्र सिंहासनसे उतार
एक मुसलमान भक्त थे। उनका नाम अहमदशाह था। उन्हें प्रायः भगवान् श्रीकृष्णके दर्शन होते रहते थे। अहमदशाहसे ये विनोद भी
वनवासमें पाण्डव जब काम्यक वनमें थे, तब श्रीकृष्णचन्द्र सात्यकि आदिके साथ उनसे मिलने गये थे। उस समय उनके साथ सत्यभामाजी