
समयके पंख
समयके पंख एक बार एक कलाकारने अपने चित्रोंकी प्रदर्शनी लगायी। उसे देखनेके लिये नगरके सैकड़ों धनी-मानी व्यक्ति भी पहुंचे। एक
समयके पंख एक बार एक कलाकारने अपने चित्रोंकी प्रदर्शनी लगायी। उसे देखनेके लिये नगरके सैकड़ों धनी-मानी व्यक्ति भी पहुंचे। एक
पीड़ा एक समान एक दुकानदार था – मनिराम। वह अपनी दुकानमें कुत्तेके बच्चे रखता था। एक दिन जब वह अपनी
गुजरातके धोलनगरके नरेश वीरधवल एक दिन भोजन करके पलंगपर लेटे थे और उनका सेवक राजाके पैर दबा रहा था। राजाने
मध्यकालीन यूरोपकी कथा है। अपने सेनापतिकी वीरतासे एक राजाने युद्धमें विजय प्राप्त की। उसने राजधानीमें सेनापतिका धूमधामसे स्वागत करनेका विचार
एक भंगिन शौचालय स्वच्छ करके जब चलने लगी तब किसी भले आदमीने कुतूहलवश पूछा—’तुम्हें यह काम करनेमें घृणा नहीं लगती
कुछ ही दिनों पहलेकी बात है, एक महात्माने हरद्वारमें एक सज्जनको देखकर दीर्घ साँस ली। पूछनेपर उन्होंने बताया कि एक
गौरैयाका आग बुझाना बात त्रेतायुग — श्रीरामके समय की है। सुतीक्ष्ण ऋषिके आश्रम में बहुत-से ऋषि एक समूहमें साथ रहते
महात्मा जडभरत तो अपनेको सर्वथा जड़की ही भाँति रखते थे। कोई भी कुछ काम बतलाता तो कर देते। वह बदले
कुछ सूफी बोध-कथाएँ सूफी फकीरोंकी जीवन-शैली और आराधनाका ढंग निराला रहा है और वैसा ही कुछ निरालापन उनके द्वारा अपने
भारतवासियोंके समान ही अरब भी अतिथिका सम्मान करनेमें अपना गौरव मानते हैं। अतिथिका स्वागत-सत्कार वहाँ कर्तव्य समझा जाता है। अरबलोगोंकी