
गौरैयाका आग बुझाना
गौरैयाका आग बुझाना बात त्रेतायुग — श्रीरामके समय की है। सुतीक्ष्ण ऋषिके आश्रम में बहुत-से ऋषि एक समूहमें साथ रहते
गौरैयाका आग बुझाना बात त्रेतायुग — श्रीरामके समय की है। सुतीक्ष्ण ऋषिके आश्रम में बहुत-से ऋषि एक समूहमें साथ रहते
महात्मा जडभरत तो अपनेको सर्वथा जड़की ही भाँति रखते थे। कोई भी कुछ काम बतलाता तो कर देते। वह बदले
कुछ सूफी बोध-कथाएँ सूफी फकीरोंकी जीवन-शैली और आराधनाका ढंग निराला रहा है और वैसा ही कुछ निरालापन उनके द्वारा अपने
भारतवासियोंके समान ही अरब भी अतिथिका सम्मान करनेमें अपना गौरव मानते हैं। अतिथिका स्वागत-सत्कार वहाँ कर्तव्य समझा जाता है। अरबलोगोंकी
बाशीं नगरमें जोगा परमानन्द नामक प्रसिद्ध हरिभक्त नित्य पूजाके बाद गीताका एक-एक श्लोक कहकर पंढरिको 700 बार साष्टाङ्ग नमस्कार करता
जनकपुरमें एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। उसके एक छोटा लड़का था। एक बार वह कुछ लोगोंके साथ चित्रकूट जा रही
कलकत्ता हाईकोर्ट के जज स्वर्गीय श्रीगुरुदास बनर्जी अपने आचार-विचार, खान-पानमें बड़े कट्टर थे। ‘माडर्न रिव्यू’ के पुराने एक अङ्कमें श्रीअमल
एक भिक्षुक अचानक राजा हो गया था। उस देशके संतानहीन नरेशने घोषणा की थी कि उनकी मृत्युके पश्चात् जो पहिला
इन श्रीकल्याणजीका पहला नाम था – अम्बादास । छोटी उम्रमें ही इनका गुरु श्रीसंत रामदासजीसे सम्बन्ध हो गया था। गुरुजीने
एक राजा जंगलके रास्ते कहीं जा रहा था। उसने देखा एक खेतमें एक जवान आदमी हल जोत रहा है। और