
उपासनाका फल
सोमं सुत्वात्र संसारं सारं कुर्वीत तत्त्ववित् । यथाऽऽसीत् सुत्वचा पाला दत्वेन्द्राय मुखच्युतम् ll (नीतिमञ्जरी 130) महर्षि अत्रिका आश्रम उनकी तपस्याका
सोमं सुत्वात्र संसारं सारं कुर्वीत तत्त्ववित् । यथाऽऽसीत् सुत्वचा पाला दत्वेन्द्राय मुखच्युतम् ll (नीतिमञ्जरी 130) महर्षि अत्रिका आश्रम उनकी तपस्याका
नास्तिक और आस्तिक (म0म0 देवर्षि श्रीकलानाथजी शास्त्री ) भारतके मूर्धन्य वैज्ञानिक, नोबेल पुरस्कार विजेता, भारतरत्न चन्द्रशेखर वेंकटरामन् अत्यन्त व्यस्त होते
रस्सीमें सर्पका भ्रम (स्वामी श्रीअमरानन्दजी घड़ीने अभी-अभी नौका घण्टा बजाया था। हिरेन ‘सुन्दरवनके बाघ’ फिल्म देखनेके बाद वापस अपने घर
ऋषि ‘शब्द’ और ‘लिखित’ दो भाई थे दोनों ही बड़े तपस्वी थे और दोनों ही अलग-अलग आश्रम बनाकर रहते थे।
14] कुसंगका फल प्रतिदिन कुछ बगुले आकर एक किसानके खेतकी फसल बरबाद कर जाया करते थे। इसे देखकर किसानने उन
विभज्य भुञ्जते सन्तो भक्ष्यं प्राप्य सहाग्निना । चतुरश्चमसान् कृत्वा तं सोममृभवः पपुः ॥ (नीतिमञ्जरी 10 ) सुधन्वाके पुत्र ऋभु, विभु
आखिरमें मिला क्या ? विश्व भ्रमणपर निकला एक धनी व्यापारी नीदरलैण्डके एम्सटर्डम शहरमें पहुँचा। वहाँ उसने एक अत्यन्त भव्य और
मार्गमें एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था । सहस्रों चींटियाँ उससे चिपटी थीं। पाससे एक सत्पुरुष शिष्यके साथ जा रहे
सार्थक जीवन हरी घासके बीच एक सूखी घासका तिनका पड़ा था। उसे देखकर हरी घास तिनकेके निष्क्रिय, अर्थहीन जीवनपर खिलखिलाकर
विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य पूर्वकालकी बात है, नर्मदाके तटपर गालव नामसे प्रसिद्ध एक सत्यपरायण मुनि रहते थे। वे