
सेवाका अवसर ही सौभाग्य है
श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अपने मित्र श्रीगिरीशचन्द्र विद्यारत्नके साथ बंगालके कालना नामक गाँव जा रहे थे। मार्गमें उनकी दृष्टि एक लेटे
श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अपने मित्र श्रीगिरीशचन्द्र विद्यारत्नके साथ बंगालके कालना नामक गाँव जा रहे थे। मार्गमें उनकी दृष्टि एक लेटे
एक नरेशने अपने दरबारमें सामन्तोंसे पूछा- ‘मांस सस्ता है या महँगा ?’ सामन्तोंने उत्तर दिया- सस्ता है।’ सामन्तोंकी बात सुनकर
हजरत इब्राहीम जब बलखके बादशाह थे, उन्होंने एक गुलाम खरीदा। अपनी स्वाभाविक उदारता के कारण उन्होंने उस गुलामसे पूछा—’तेरा नाम
सूर्याजी पंतका सुपुत्र नारायण बचपनसे ही विरक्त सा रहता, तप और ज्ञानार्जनमें ही उसका बचपन बीता। माँ पुत्रवधूका मुँह देखनेके
शारीरिक बलसे उपाय श्रेष्ठ है किसी वनमें बरगदका एक विशाल वृक्ष था। उसकी घनी शाखाओंपर अनेक पक्षी रहा करते थे।
कोसलमें गाधि नामके एक बुद्धिमान् श्रोत्रिय, धर्मात्मा ब्राह्मण रहते थे। शास्त्रज्ञान और धर्माचरणका फल विषयोंसे वैराग्य न हो तो शास्त्रज्ञान
विजयके लिये सेनापति आवश्यक एक समयकी बात है। हैहयवंशी क्षत्रियोंने अपने प्रचण्ड पराक्रमसे अलौकिक समृद्धि अर्जित की। उनकी इस विपुल
पंढरपुरकी कार्तिक-यात्राका मेला लगा था। अनेकों साधु-संत पधारे थे। एकादशीका निर्जल उपवास करके द्वादशीके दिन पारणके लिये सभी उतावले दीख
गौड़ेश्वर वत्सराजका मन राजा मुञ्जके आदेश पालन और स्वकर्तव्य – निर्णयके बीच झूल रहा था। वह जानता था कि यदि
‘आत्मकल्याणके अधिकारी पापी, पुण्यात्मा सब हैं। अपने उद्धारकी बात प्रत्येक प्राणी सोच सकता है।’ अम्बपालीके मनमें आशाका संचार हुआ। ‘यान