
परम्परा एवं रूढ़ि
परम्परा एवं रूढ़ि परम्पराओंके जन्म और दीर्घजीवी होनेके विषय में सचेत करती हुई एक झेन कथा कहती है कि एक
परम्परा एवं रूढ़ि परम्पराओंके जन्म और दीर्घजीवी होनेके विषय में सचेत करती हुई एक झेन कथा कहती है कि एक
महात्मा गांधीजी उन दिनों चम्पारनमें थे। एक दिन वे वहाँसे बेतिया जा रहे थे। रातका समय था, ट्रेन खाली थी।
माँका दिल एक स्त्री थी। उसके पाँच बेटे थे। वह अपने पाँचों बेटोंको बहुत मानती थी। उसके बेटे भी आपसमें
विष्णुपदी गंगाजीकी अद्भुत महिमा पूर्वकालकी बात है। चमत्कारपुरमें उत्तम व्रतका पालन करनेवाले चण्डशर्मा नामसे विख्यात एक ब्राह्मण हो गये हैं,
पूज्यपाद गोस्वामी श्रीगुल्लूजी देववाणी – संस्कृत, हिंदी या व्रजभाषाको छोड़कर दूसरी भाषाका एक शब्द भी नहीं बोलते थे। उन्होंने एक
महाभारतका युद्ध निश्चित हो गया था। दोनों पक्ष अपने अपने मित्रों, सम्बन्धियों, सहायकोंको एकत्र करनेमें लग गये थे। श्रीकृष्णचन्द्र पाण्डवोंके
एक बार मुनियोंमें परस्पर इस विषयपर बड़ा विवाद हुआ कि ‘किस समय थोड़ा-सा भी पुण्य अत्यधिक फलदायक होता है तथा
किसी राज्यमें वहाँका राजकुमार बड़ा लाड़ला था। वह एक दिन रास्तेमें एक लावण्यवती युवतीको देखकर मोहित हो गया। युवती एक
‘जाकी रही भावना जैसी’ एकबार संगीताचार्य तानसेनने एक भजन यशोदा प्रतिदिन कहती हैं।’ गाया- जसुदा बार बार यों भाखै। है
इंगलैंडको प्रसिद्ध संस्था ‘रॉयल एकडेमी की चित्र सजानेवाली समितिको बैठक हो रही थी। एकडेमी हालमें सुसज्जित करनेके लिये देश-विदेशके चित्रकारोंने