
मौनकी शक्ति
संतका मौन बहुत बड़ा और दिव्य भूषण है। वाणीके मौनसे संतोंने आश्चर्यजनक बड़े-बड़े कार्योंका सम्पादन किया है। ग्यारहवीं शताब्दीके दूसरे

संतका मौन बहुत बड़ा और दिव्य भूषण है। वाणीके मौनसे संतोंने आश्चर्यजनक बड़े-बड़े कार्योंका सम्पादन किया है। ग्यारहवीं शताब्दीके दूसरे

हाड़-मांसकी देह और ‘मैं’ महर्षि रमणकी आयु तब सत्रह वर्षकी रही होगी। एक बार वे अपने काकाके घरकी छतपर सो

एक शूद्र अपनी पत्नीके साथ कार्तिकी यात्राके निमित्त पंढरपुर गया उसके साथ उसकी नन्ही सी पुत्री जनी भी थी उत्सव

नाग महाशयका सेवा-भाव तो अद्भुत ही था। एक दिन इन्होंने एक गरीब मनुष्यको अपनी झोपड़ी में भूमिपर पड़े देखा। आप

अभ्याससे सब कुछ सम्भव राजा भोज अपने मन्त्रीके साथ कहीं दूरकी यात्रा कर रहे थे। रास्तेमें उन्होंने एक किसानको ऊबड़

अबु उस्मान हयरी नामक एक संत हो गये हैं। एक दिनकी बात है। रास्तेमें एक आदमीने कोयलेकी टोकरी इनके ऊपर

दूसरी कथा – आप कौन हैं ? बात उस समयकी है, जब श्रीरामजी सीताजीके साथ एकान्तस्थान में सुखपूर्वक बैठे हुए

एक दासी नित्यप्रति महारानीकी सेज बिछाया करतीं। एक दिन उसने खूब ही सजाकर सेज बिछायी। गरमीके दिन थे। नदी किनारेके

एकाग्रताका बल इंग्लैण्डके इतिहासमें ‘एल्फ्रेड’ का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। एल्फ्रेडने प्रजाकी भलाईक लिये अनेक साहसिक कार्य

इसी कुर्सीपर आकर बैठूंगा ! ‘अबे लड़के, उठ। आकर बैठ गया इंजीनियर साहबकी कुर्सीपर। ‘ – एक लड़केको उठाते हुए