
उपहार का संबंध और दाता का भाव..
“” द्वारिका जाने को तैयार सुदामा ने चावल की पोटली बांधती पत्नी से कहा।तीन मुट्ठी तन्दुल?यह भला कैसा उपहार हुआ

“” द्वारिका जाने को तैयार सुदामा ने चावल की पोटली बांधती पत्नी से कहा।तीन मुट्ठी तन्दुल?यह भला कैसा उपहार हुआ

. जगतगुरु वल्लभाचार्य जी हमारे श्रीनाथ जी की सेवा करते थे। उन दोनों में पिता पुत्र का अद्भुत प्रेम

.श्री नर्मदा किनारे एक उच्च कोटि के संत विराजते थे जिनका नाम श्री वंशीदास ब्रह्मचारी जी था।.उनका नित्य का नियम

. श्रीजयदेव जी भगवान श्रीकृष्ण के प्रेमी भक्त थे। आपके हृदय में श्रीकृष्ण प्रेम हिलौरे लेता रहता था। उसी

वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । नाम था कांता बाई… बिहारी जी को अपना लाला कहा करती

हरि बोल हरि बोल नदी पर कपड़े धोते हुए धोबी ने कहा, बाबा आगे जाओ हरि बोल हरि बोल बाबा

गणिका थीं श्रीवारमुखीजी। लोक और वेद-दोनोंसे गर्हित था उनका कर्म परंतु प्रभुकी कृप किसपर हो जाय, कब किसके किस जन्मका

जब कभी एक बार भी बिना निमित्त के तुम अपने से जुड़ जाते हो, तो घटना घट गई। कुंजी मिल

आपकी बातें अनेकों को अप्रिय क्यों लगती हैं? सुननेवाले पर निर्भर है। तुम अगर सच में ही सत्य की खोज

.एक बार अवंतिपुर में साधु कोटिकर्ण आए। उन दिनों उनके नाम की धूम थी।.उनका सत्संग पाने दूर-दूर से लोग आते