Spiritual Story

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बहूके सद्भावका असर

बहूके सद्भावका असर पुत्रकी उम्र पैंतीससे पचास छूने लगी। पिता पुत्रको व्यापारमें स्वतन्त्रता नहीं देता था, तिजोरीकी चाबी भी नहीं।

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एकान्त कहीं नहीं

दक्षिण भारतके प्रतिष्ठित संत स्वामी वादिराजजीके अ अनेकों शिष्य थे; किंतु स्वामीजी अपने अन्त्यज शिष्य कनकदासपर अधिक स्नेह रखते थे।

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पूर्ण समर्पण

राजा बृहदश्व सौ अश्वमेध यज्ञ करना चाहते थे। लगभग बानवे यज्ञ वे कर चुके थे। उनके गुरु उस समय समाधिस्थ

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भगवान् थाल साफ कर गये

पंढरपुरमें दामाजी सेठ नामक एक दर्जी (छींपी) भगवान् विट्ठलनाथके बड़े ही भक्त थे। उनके सुपुत्र नामाजीको भी बचपनसे वही लत

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