
तुम अगर खाली मन से सुनने आये हो,
आपकी बातें अनेकों को अप्रिय क्यों लगती हैं? सुननेवाले पर निर्भर है। तुम अगर सच में ही सत्य की खोज
आपकी बातें अनेकों को अप्रिय क्यों लगती हैं? सुननेवाले पर निर्भर है। तुम अगर सच में ही सत्य की खोज
.एक बार अवंतिपुर में साधु कोटिकर्ण आए। उन दिनों उनके नाम की धूम थी।.उनका सत्संग पाने दूर-दूर से लोग आते
एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे। एक किरात (शिकारी), जब भी वहाँ से निकलता संत को
.5 साल का बच्चा :- माँ प्यार और लव मैं क्या फर्क है।.माँ:- मैँ तुम से जो करती हूँ वो
. श्रीहितकिशोरीशरण बाबाजी (सूरदास बाबा)(वृन्दावन) ‘भैया ! मेरे मन में ऐसी आवे कि विश्व को कुत्ता हू दुःखी न होय,
राधा जी की कृपा चन्दन वृंदावन की ब्रज भूमि में रहने वाला अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। दिन भर
. एक बार देवर्षि नारदजी की एक ब्राह्मण से मुलाकात हुई। ब्राह्मण ने उनसे जाते हुए पूछा–’मुनिवर अब आप कहाँ
.17वीं शताब्दी का समय था। हिन्दुस्तान में मुगल शासकों का अत्याचार, लूटमार बढ़ती ही जा रही थी। हिन्दुओं को जबरन
जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों
डॉक्टर प्राणजीवन मेहता गांधीजीके मित्रोंमेंसे थे। रेवाशंकर जगजीवनदास इनके भाई थे। पहले गांधीजी जब बम्बई जाते तब प्रायः इनके ही