ध्यान से सुक्ष्म की ओर

एक बहुत बड़ी हकीकत में आज बयां करने वाला हूं आपको, आपके संतों ने गुरुओं ने आपको ये बताया होगा, कि देवी देवता तरसते हैं इस शरीर के लिए, सत्य है, लेकिन देवी-देवता ही नहीं, ऊपर के समस्त जितने भी चेतन शरीर होते हैं देवी देवताओं से भी ऊपर, अनंतों शरीर, चाहे सतलोक, अनामी लोक, अलख लोक या उनसे करोड़ों अनंतों ऊपर के लोक, जितने भी शरीर हैं, जितने भी जीव हैं, वो सब तरसते हैं इस शरीर को पाने के लिए I

ऐसा क्यों ?? क्योंकि यही शरीर ऐसा है, जिसमें आत्म ज्ञान बहुत फास्टेस्ट, बहुत जल्दी तीव्रतम गति से पाया जा सकता है I कितनी बड़ी बात है I जितने सूक्ष्म शरीरों में जाओगे, वहां चेतनता अधिक होगी और चेतनता तो दुश्मन है आपकी I चेतनता स्वयं में एक पदार्थ है, प्रथम पदार्थ चेतना प्रकट हुई थी, फिर वो धीरे-धीरे स्थूल होती हुई यहां आ गई और उस चेतनता से ही सारी आपकी स्थूल चेतनाऐँ जुड़ी हुई हैं, एक तार से जुड़ी हैं, उसी तार को सुरति कहते हैं I

इसलिए सुरति कभी ऊपर चढ़ती है, कभी नीचे आती है, कभी अच्छी चेतना में जाती है, कभी स्थूल चेतनाओं में आती है I जो भी है, ऐसे अनमोल शरीर को आपने पाया है I तो फिर क्या आप उन लोकों की भक्ति करोगे ?? इस शरीर को वो खुद साष्टांग करते हैं, दंडवत करते हैं और इस शरीर को आप वैसे ही निरर्थक चले जाने दोगे उन लोकों की साधना करके ?? फिर वहां से आप खड़े होके उन लोकों में जाकर वापस से शरीर को पूजने लगोगे, कैसी विडंबना है ?? अरे समझो I देवी देवता सूक्ष्म तल पर हैं आपसे I

ये जो भाव भक्ति है, पता है क्यों करवाई जाती है ??? क्योंकि जो शरीर में जो भाव हैं, वो बहुत सूक्ष्म फूड हैं उन देवी-देवताओं के लिए, ऊपर के लोकों के पुरुषों के लिए I ये फ़ूड हैं उनके लिए भोजन है I आप जैसे ही द्रवित होते हो, तो एक ऐसी व्यवस्था है, कि उन तक भोजन पहुंचता है I इसीलिए आपने देखा होगा, कि हम दिया जलाते हैं, तो जब घी जलता है, तो वो सूक्ष्म स्वरूप में आता है घी, और वो देवी देवताओं को पोषित करता है I

ऐसे ही हम धूंआ देते हैं, लोहान जलाते हैं, वो सूक्ष्म जो उठते हैं, उनसे जो सुगंधी उठते हैं, वो देवी-देवताओं के सूक्ष्म शरीरों को पोषण देते हैं और जब आपने पोषण शुरू कर दिया और जिस दिन बंद कर दोगे, तो आपके ऊपर नकारात्मक प्रभाव भी देना शुरू कर देंगे I इसीलिए उनको पोषण देना भी बंद करो, क्योंकि वो केवल टिट फॉर टैट करते हैं, जितना पोषण दोगे उतना आपको दे देंगे, जैसे पोषण बंद किया नकारात्मकता और देना शुरू करेंगे I

अरे आत्मा की भक्ति करो I मुक्ति वही है I परम मुक्ति का धाम सर्वत्र है, कहीं आना जाना नहीं है I इसलिए मेरे कहने का तात्पर्य यह है, कि आप अवश्यमेव जो भी पैसा आपके पास है, उसका पूर्ण रूप से परख कर के सदुपयोग कीजिए I धन्यवाद I

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