भीतर के कपाट खोल रे

जिस प्रकार कोई खाली दीप में तेल डाल दे,ज्योति रख देऔर उसे जला दें, तो दीपक की ज्योति से चारो ओर प्रकाश फैल जाता है, और अंधकार दूर हो जाता है। उसी प्रकार सत्संग में बैठने से हमारे मन के भीतर के कपाट खुल जाते हैं, मस्तिष्क में चल रहे नकारात्मक भाव बदल जाते हैं ।और हमारे अंधकारमय जीवन मे प्रकाश की किरणें फैल जाती है।हमारे जीवन पथ पर आ रही समस्याओं से लड़ने के लिए हमे नयी ऊर्जा मिलती है।एक नवीन चेतना का आगमन होता है।

सत्संग में हमे वासनाओं और कामनाओं से बचने का मार्ग मिलता है।क्योंकि इच्छाएं अनन्त होती है जो मनुष्य के विनाश का कारण बनती है।सत्संग से हमे संयमित जीवन जीने की राह मिलती है। हमारी कामना और वासना के गड्ढे जीवन मे इतने गहरे हो गए हैं कि हम सत्य के मार्ग पर चलने से कतराते हैं, क्योंकि जहाँ सत्य है, वहीं संयम है, वहीं संतुष्टि है, और वही परमात्मा है।और परमात्मा को पाना कोई सरल कार्य तो है नही?
सत्संग में भगवद् कृपा से , सदगुरु की कृपा से हम परम सत्य को जानकर आनन्दित हो जाते हैं। उस परम सत्य को जानकर ही हम परिवार को समाज को कामनाओं और वासनाओं के गड्ढे में जाने से बचा सकते हैं। हम चाहते कि जिस सत्य को जानकर मैं आनन्दित हुआँ ,उसे जानकर तुम भी आनन्दित होओ। मान लो हमारे घर के सामने खड्डा हो और बरसात ज्यादा हो जाने से, उस खड्डे में पानी भर गया , ऊपर भी पानी भर गया , खड्डा दिख नहीं रहा है तो हम हर सम्भव प्रयास करेंगे कि कोई राहगीर इस गड्ढे में न गिर जाए।हम दूसरो को चेता दे की यहाँ खड्डा है बचके निकलना । इसे इंसानियत कहते हैं , मनुष्यता कहते हैं । यह हम किसी पे एहसान नहीं कर रहा , यह हमारे मनुष्य होने के कारण कर्तव्य है।
ऐसे ही हम भी संसार के दुःख रुपी खड्डे में न गिर जाए, सत्संग में संत रुपी मित्र हमे सत्संग युक्ति देता हैं कैसे हम दुःख के खड्डे से बचें।और इसका मार्ग सत्संग से ही मिलता है, जहां सार्थक जीवन जीने का मार्ग मिल जाता है।हमे केवल अपने आत्मविश्वास को बनाये रखना है।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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