हम संग जैसा बनाएंगे वैसे बन जाएगे

।। जय श्रीहरि ।।

मन कभी भी ख़ाली नहीं बैठ सकता, कुछ ना कुछ करना इसका स्वभाव है। अच्छा काम करने को ना मिला तो ये बुरे की तरफ भागेगा। क्योंकि मन प्रायः संसार बन्धन में डालने वाले अविशुद्ध कर्मों में ही प्रवृत्त रहता है।

मन खाली हुआ, बस उपद्रव प्रारम्भ कर देगा (काम, क्रोध विकारों में जकड़ देगा)। लड़ाई- झगड़ा, विषय- विलास ऐसी कई गलत जगहों पर यह आपको ले जायेगा जहाँ पतन निश्चित है।

साधना के जगत में सबसे अधिक महत्वपूर्ण अगर कोई चीज़ है तो वह है ‘संग।’ हम कितना भी भजन, अध्ययन कर लें, लेकिन हमारा संग अगर गलत है, तो सुना हुआ, पढ़ा हुआ, और जाना हुआ तत्व आचरण में नहीं उतर पायेगा। दुर्जन की एक क्षण की संगति भी बड़ी खतरनाक होती है। कबीर दासजी कहते हैं-

‘कबीर साकत संग न कीजीयै, दूरहि जाईयै भाग।।

(साकत का अर्थ- परमात्मा से विमुख)

बासन कारो परसीयै, तउ कछ लागै दाग।।’

(बासन- बरतन, कारो- काला, परसीयै- छू लिया जाए)

कबीर मन पंखी भयो, उड उड दह दिस जाय।
जो जैसी संगत मिलै, सो तैसो फल खाय।।

वृत्ति और प्रवृत्ति तो सतसंग से ही सुधरती है। संग का ही प्रभाव था लूटपाट करने वाले वाल्मीकि रामायण लिख गए। थोड़े से बुद्ध के संग ने अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन कर दिया। भक्तों और महापुरुषों के संग से आचरण सुधरता है।

सत्संग में जाने से फ़ायदा ही फ़ायदा है। कभी नुकसान नही होता।

एक अँधा अगर फूलों के बाग में चला जाता है, भले ही वह फूलों की सुंदरता को न देख सके परंतु सुगंध तो ज़रुर ले ही लेगा।

पत्थर पानी में डूबने से पिघलता नहीं, पर सूरज की तपिश से तो बचा ही रहता है।

इसी प्रकार अगर मन से सत्संग में आप ना भी हों, तो भी कम से कम बुरी संगत से तो बचे ही रहोगे।

सत्संग वह आईना है। जहाँ पर हम अपने अवगुणों को देखकर उन्हें सुधारने की कोशिश करते हैं और हमारी कोशिश ही हमे एक दिन पूर्ण गुरमुख बना देती है।

हमारा खुद का सुधरना भी किसी समाज सेवा से कम नहीं है। यह भी एक बन्दगी है।

इस दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि यहाँ हर कोई दूसरे को सुधारने में लगा हुआ है। अगर खुद को सुधारने में लगा होता तो पूरा जीवन ही बदल जाता।

यहाँ हर कोई अपने आपको समझदार और दूसरे को मूर्ख समझता है। इसलिए दूसरों को कमियों वाला जानकर उन्हें सुधारने में लग जाता है।

ज्ञानी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह खुद की कमियों को देखता है।

सम्पूर्ण ज्ञान का एक मात्र उद्देश्य अपने स्वयं का निर्माण करना ही है। बिना आत्म सुधार के समाज सुधार किंचित संभव नहीं है। ‘हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।’

श्रीहरि सब का मङ्गल करें।

।। ॐ नमो नारायणाय ।।

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