हमे सत्संग अन्तर्मन से करना है

आज का प्रभु संकीर्तन
जीवन मे मनुष्य बहुत कुछ जानने और सीखने का प्रयत्न करता है।सीखना और जानना एक कला है।जो व्यक्ति इस कला में निपुण हो जाता है।

उसे ही सत्संग का पूर्ण लाभ मिल पाता है क्योंकि वह सत्संग के वचन को केवल कानों से ही नहीं बल्कि मन की गहराई से सुनता है।सत्संग के वचनों को हृदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनों का सम्मान है ।

बहुत से लोग सत्संग में जाते हैं और वहां सुनी हुई बातों को जीवन मे तो क्या दो चार दिन भी अपने पास नही रख पाते।क्योंकि उन्हें सुनकर सीखने की कला नही आती।पढिये कथा: एक शिष्य अपने गुरु जी के पास आकर बोला – गुरूजी हमेशा लोग प्रश्न करते हैं कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता ?

मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है गुरु जी बड़े प्रेम भाव से बोले – एक घड़ा मदिरा ले आओ । शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही अवाक रह गया । गुरु जी और शराब वह सोचता ही रह गया । गुरुजी ने कहा सोचते क्या हो, जाओ एक घड़ा मदिरा ले आओ । वह गया और एक मदिरा का घड़ा ले आया ।

गुरुजी के समक्ष रख कर बोला आज्ञा का पालन कर लिया है गुरुदेव । गुरु जी बोले यह सारी मदिरा पी लो । गुरुजी ने कहा एक बात का ध्यान रखना पीना पर शीघ्र कुल्ला कर देना । शराब गले के नीचे मत उतारना । शिष्य ने वही किया शराब मुंह में भरकर तत्काल रोक देता देखते-देखते घड़ा खाली हो गया । फिर आकर गुरु जी से कहा गुरुदेव घड़ा खाली हो गया है ।

गुरु जी ने पूछा तुझे नशा आया या नहीं । शिष्य बोला गुरुदेव नशा तो बिल्कुल नहीं आया । गुरुजी बोले अरे मदिरा का पूरा घडा खाली कर गए और नशा नहीं चढ़ा । शिष्य ने कहा गुरुदेव नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती । गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई फिर नशा कैसे चढ़ता ।

अब गुरु जी ने समझाया बस फिर सत्संग को भी ऊपर से सुन लेते हो गले के नीचे उतारते नहीं । सत्संग व्यवहार में आता नहीं तो प्रभाव कैसे पढ़े । सत्संग के वचन को केवल कानों से नहीं मन की गहराई से सुनना, वचन को हृदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनों का सम्मान है।

सत्संग का अर्थ है सत्य के संग ,अच्छे लोगो का संग,अच्छी बातों का संग।इन्हें जीवन मे गहरे तक उतारना चाहिए।
जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।



Today’s Lord Sankirtan Man tries to learn and learn a lot in life. Learning and knowing is an art. The person who becomes proficient in this art.

Only he gets the full benefit of the satsang because he listens to the words of the satsang not only with the ears but from the depth of the mind. To take the words of the satsang in the heart and act on them is the respect for the words of the satsang.

Many people go to satsangs and are not able to keep the things heard there with them even for two to four days in their life. Because they do not know the art of learning by listening to them. Read the story: A disciple came to his teacher and said – Guruji People always ask why there is no effect of satsang?

This question is circling in my mind too. Guru ji said with great love – bring a pitcher of wine. The disciple was speechless on hearing the name of the liquor. He kept thinking about Guru ji and alcohol. Guruji said, what are you thinking, go get a pitcher of wine. He went and brought a pitcher of wine.

After placing it in front of Guruji, he said that he has obeyed Gurudev. Guru ji said, drink all this wine. Guruji said, take care of one thing, drink it but rinse it immediately. Don’t force alcohol down your throat. The disciple did the same by filling his mouth with wine and stopping it immediately, the pitcher became empty in no time. Then came and said to Guru ji, Gurudev, the pitcher has become empty.

Guru ji asked whether you got intoxicated or not. The disciple said, Gurudev, I did not get intoxicated at all. Guruji said, hey, he emptied the whole pot of liquor and did not get intoxicated. The disciple said, Gurudev, intoxication comes only when the alcohol comes down the throat. Not even a drop went down his throat, then how could he get intoxicated.

Now Guru ji has explained that you just listen to the satsang from above and don’t take it down your throat. Satsang doesn’t come into practice, otherwise how can we read its effect? To listen to the words of satsang not only with the ears but from the depth of the mind, to take the words into the heart and act upon them is the respect for the words of the satsang.

Satsang means company of truth, company of good people, company of good things. These should be taken deep in life. Jai Jai Shri Radhekrishna ji. May Shri Hari bless you.

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