वास्तविक महाभारत आपके भीतर है

आज एक साधक का लिखा लेख पढ़ने को मिला।मुझे बहुत ज्ञानवर्धक लगा।इस लिए उसकी कॉपी कर मित्रों के ज्ञानार्थ पोस्ट कर रहा हूं:-

क्या वास्तविक महाभारत यह नहीं है है•••?••
शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में, संजय कुरुक्षेत्र के उस स्थान पर गए जहां संसार का सबसे महानतम युद्ध हुआ था।

उसने इधर-उधर देखा और सोचने लगा कि क्या वास्तव में यहीं युद्ध हुआ था? यदि यहां युद्ध हुआ था तो जहां वो खड़ा है, वहां की जमीन रक्त से सराबोर होनी चाहिए। क्या वो आज उसी जगह पर खड़ा है जहां महान पांडव और कृष्ण खड़े थे?

तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने वहां आकर धीमे और शांत स्वर में कहा, “आप उस बारे में सच्चाई कभी नहीं जान पाएंगे!”

संजय ने धूल के बड़े से गुबार के बीच दिखाई देने वाले भगवा वस्त्रधारी एक वृद्ध व्यक्ति को देखने के लिए उस ओर सिर को घुमाया।

“मुझे पता है कि आप कुरुक्षेत्र युद्ध के बारे में पता लगाने के लिए यहां हैं, लेकिन आप उस युद्ध के बारे में तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप ये नहीं जान लेते हैं कि असली युद्ध है क्या?” बूढ़े आदमी ने रहस्यमय ढंग से कहा।

तब संजय ने उस रहस्यमय व्यक्ति से पूछा” आप महाभारत के बारे में क्या जानते हो?”

वह कहने लगा, “महाभारत एक महाकाव्य है, एक गाथा है, एक वास्तविकता भी है, लेकिन निश्चित रूप से एक दर्शन भी है।”

वृद्ध व्यक्ति संजय को और अधिक सवालों के चक्कर में फसा कर मुस्कुरा रहा था।

“क्या आप मुझे बता सकते हैं कि दर्शन क्या है?” संजय ने निवेदन किया।

अवश्य जानता हूं, बूढ़े आदमी ने कहना शुरू किया। पांडव कुछ और नहीं, बल्कि आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं – दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण – और क्या आप जानते हैं कि कौरव क्या हैं? उसने अपनी आँखें संकीर्ण करते हुए पूछा।

कौरव ऐसे सौ तरह के वासनाओं के विकार हैं, जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं लेकिन आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है। पर क्या आप जानते हैं कैसे?

संजय ने फिर से न में सर हिला दिया।

“जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं!” यह कह वह वृद्ध व्यक्ति बड़े प्यार से मुस्कुराया और संजय अंतर्दृष्टि खुलने पर जो नवीन रत्न प्राप्त हुआ उस पर विचार करने लगा..

“कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज, आपकी आत्मा, आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं और यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।” वृद्ध आदमी ने कहा।

संजय अब तक लगभग चेतन अवस्था में पहुंच गया था, लेकिन जल्दी से एक और सवाल लेकर आया।

फिर कौरवों के लिए द्रोणाचार्य और भीष्म क्यों लड़ रहे हैं?

भीष्म हमारे अहंकार का प्रतीक हैं, अश्वत्थामा हमारी वासनाएं, इच्छाएं हैं, जो कि जल्दी नहीं मरतीं। दुर्योधन अत्यधिक रूप से हमारी सांसारिक वासनाओं, इच्छाओं में लिप्तता का प्रतीक है। द्रोणाचार्य/कृपाचार्य हमारे संस्कार हैं। जयद्रथ हमारे शरीर के प्रति राग का प्रतीक है कि ‘मैं ये देह हूं’ का भाव। द्रुपद वैराग्य का प्रतीक हैं। अर्जुन हमारा मन हैं, जो भ्रमित हो जाता है। कृष्ण हमारी आत्मा हैं। पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं, मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक। द्रोपदी कुंडलिनी शक्ति है, वह जागृत शक्ति है, जिसके ५ पति ५ चक्र हैं। आत्मा से दुष्टों के प्रति उठने वाले रोष शब्द ही कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है, जो अर्जुन रूपी मन को विश्वास दिलाते हैं कि युद्ध कर, मैं हूँ ना और गीता के उपदेश मायूस मन को उद्वेलित कर जागृत करते हैं कि अपनी बुराइयों पर विजय पा, अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं, सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर अर्थात अपनी मेटेरियलिस्टिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य पाठ पर आरूढ़ हो जा, विकार रूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति को ख़त्म कर ।

श्री कृष्ण का साथ होते ही ७२००० नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है, और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्य आत्मा, जागृति कृष्ण ही हूँ, मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं, इसलिए उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं के सच को जानो, भगवान को पाओ, यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है, यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

ये शरीर ही धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन का दूसरा रूप है। जब श्री कृष्ण रूपी आत्मा जागृत होती है तो मन अर्जुन बन कर अपनी पाँचों इंद्रियों से उत्पन्न सौ प्रकार की विकारयुक्त वासनाओं को ख़त्म कर कृष्ण से एकाकार हो जाता है।

वृद्ध आदमी ने दुःखी भाव के साथ सिर हिलाया और कहा, “जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, अपने बड़ों के प्रति आपकी धारणा बदल जाती है। जिन बुजुर्गों के बारे में आपने सोचा था कि आपके बढ़ते वर्षों में वे संपूर्ण थे, अब आपको लगता है वे सभी परिपूर्ण नहीं हैं। उनमें दोष हैं। और एक दिन आपको यह तय करना होगा कि उनका व्यवहार आपके लिए अच्छा या बुरा है। तब आपको यह भी अहसास हो सकता है कि आपको सच्चाई के लिए उनका विरोध करना या लड़ना भी पड़ सकता है। यह बड़ा होने का सबसे कठिन हिस्सा है और यही वजह है कि गीता महत्वपूर्ण है।”

संजय धरती पर बैठ गया, इसलिए नहीं कि वह थका हुआ था या थक गया था, बल्कि इसलिए कि वह जो समझ लेकर यहां आया था, वो एक-एक कर धराशाई हो रही थी। लेकिन फिर भी उसने लगभग फुसफुसाते हुए एक और प्रश्न पूछा, तब कर्ण के बारे में आपका क्या कहना है?

“आह!” वृद्ध ने कहा। आपने अंत के लिए सबसे अच्छा प्रश्न बचाकर रखा हुआ है।

“कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। वह इच्छा है। वह सांसारिक सुख के प्रति आपके राग का प्रतीक है। वह आप का ही एक हिस्सा है, लेकिन वह अपने प्रति अन्याय महसूस करता है और आपके विरोधी विकारों के साथ खड़ा दिखता है। और हर समय विकारों के विचारों के साथ खड़े रहने के कोई न कोई कारण और बहाना बनाता रहता है।”

“क्या आपकी इच्छा; आपको विकारों के वशीभूत होकर उनमें बह जाने या अपनाने के लिए प्रेरित नहीं करती रहती है?” वृद्ध ने संजय से पूछा।

संजय ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया और भूमि की तरफ सिर करके सारी विचार श्रंखलाओं को क्रमबद्ध कर मस्तिष्क में बैठाने का प्रयास करने लगा। और जब उसने अपने सिर को ऊपर उठाया, वह वृद्ध व्यक्ति धूल के गुबारों के मध्य कहीं विलीन हो चुका था। लेकिन जाने से पहले वह जीवन की वो दिशा एवं दर्शन दे गया था, जिसे आत्मसात करने के अतिरिक्त संजय के सामने अब कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था।
क्या हम सिर्फ़ लिख कर या पढ़ कर क्षणिक सराह कर या महसूस करके नहीं रह जाते और अपने अंतर्मन रूपी श्री कृष्ण के अनुसार हर समय सचेत रह कर चल पाते हैं और अपने अहंकार और ग़लत का साथ नहीं देते ? सोचें…..



Today I got to read an article written by a seeker. I found it very informative. That is why I am copying it and posting it for the knowledge of my friends: –

Isn’t this the real Mahabharata?••?•• The scriptures say that in the eighteen-day Mahabharata war, 80% of the male population of that time was wiped out. At the end of the war, Sanjaya went to the place of Kurukshetra where the world’s greatest battle took place.

He looked around and started wondering if the war really took place here? If there was a war here then the ground where he is standing should be drenched in blood. Is he standing today at the same place where the great Pandavas and Krishna stood?

Then an old man came there and said in a low and calm voice, “You will never know the truth about that!”

Sanjay turned his head to see an old man dressed in saffron visible amidst a large cloud of dust.

“I know you are here to find out about the Kurukshetra war, but you cannot know about that war unless you know what the real war is?” The old man said mysteriously.

Then Sanjay asked that mysterious person, “What do you know about Mahabharata?”

He went on to say, “The Mahabharata is an epic, a saga, a reality, but certainly also a philosophy.”

The old man was smiling at Sanjay while baiting him with more questions.

“Can you tell me what philosophy is?” Sanjay requested.

Of course I know, the old man started saying. The Pandavas are nothing but your five senses – sight, smell, taste, touch and hearing – and do you know what the Kauravas are? he asked, narrowing his eyes.

Kauravas are the hundred types of vices of lust which attack your senses every day but you can fight them and win. But do you know how?

Sanjay again shook his head in no.

“When Krishna rides your chariot!” Saying this, the old man smiled lovingly and Sanjay started thinking about the new gem he had received after gaining insight.

“Krishna is your inner voice, your soul, your guiding light and if you put your life in his hands you have nothing to worry about again.” The old man said.

Sanjay had almost reached conscious state by now, but quickly came up with another question.

Then why are Dronacharya and Bhishma fighting for the Kauravas?

Bhishma is the symbol of our ego, Ashwatthama is our lusts and desires, which do not die quickly. Duryodhana highly symbolizes our indulgence in worldly lusts and desires. Dronacharya/Kripacharya are our values. Jayadratha symbolizes the attachment towards our body that feeling of ‘I am this body’. Drupada is a symbol of renunciation. Arjun is our mind, which gets confused. Krishna is our soul. The five Pandavas are also the five lower chakras, from Muladhara to Vishuddha Chakra. Draupadi is Kundalini Shakti, she is the awakened Shakti, who has 5 husbands and 5 Chakras. The words of anger rising from the soul towards the wicked are the sound of the Panchjanya conch shell of Krishna, which assures the mind like Arjun that it is I who fight, and the teachings of Gita excite the dejected mind and awaken it to overcome its evils. Fight your low thoughts, low desires, worldly desires, your internal enemies i.e. Kauravas, i.e. give up your materialistic desires and become focused on Chaitanya Path, eliminate the Kaurava unrighteous and evil nature in the form of vices.

As soon as we are with Shri Krishna, the 72000 nadis are filled with God’s conscious power, and we come to know that I am the conscious soul, Jagriti Krishna, I am not a body made of food, so wake up, wake up and find yourself, your soul. Know your own truth, find God, this is God realization or self-realization, this is the highest goal of this human life.

This body itself is the field of religion, Kurukshetra. Dhritarashtra is another form of a mind blinded by ignorance. When the soul in the form of Shri Krishna awakens, the mind becomes Arjun and becomes one with Krishna by eliminating the hundred types of sinful desires arising from its five senses.

The old man nodded sadly and said, “As you grow up, your perception of your elders changes. The elders you thought were perfect in your growing up years, now you They all seem to have flaws and one day you may have to decide whether their behavior is good or bad for you. This is the hardest part of growing up and that’s why Geeta is important.”

Sanjay sat down on the ground, not because he was tired or exhausted, but because the understanding he had come here with was being destroyed one by one. But still he asked another question almost in a whisper, then what do you have to say about Karna?

“Aah!” The old man said. You saved the best question for last.

“Karna is the brother of your senses. He is desire. He symbolizes your passion for worldly pleasures. He is a part of you, but he feels injustice towards himself and appears to be standing with your opposing vices. And All the time one keeps making some reason or the other to stand with the thoughts of vices.”

“Doesn’t your desire continue to inspire you to succumb to the vices and get carried away by them?” The old man asked Sanjay.

Sanjay nodded in acceptance and turned his head towards the ground and started trying to put all the thought chains in order in his mind. And when he raised his head, the old man had disappeared somewhere amidst the clouds of dust. But before leaving, he had given him such a direction and philosophy of life that Sanjay was left with no other option except to assimilate it. Are we not able to stop momentary appreciation or feeling just by writing or reading and remain conscious all the time according to Shri Krishna in the form of our inner self and do not support our ego and wrongdoing? Think…..

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