यह सृष्टि चौरासी लाख योनियों का वन है, जिसमें विधाता ने हमें रखा है, जो प्रभु नाम रूपी आश्रय को पकडे रहते हैं, वे मोक्ष पा जाते हैं और जो इसमें चूके, वे भटकते रहकर कष्ट पाते हैं।
एक बार एक संत के शिष्य ने संत से पूछा ‘गुरुदेव आप हमेशा कहते हैं कि हमें एक क्षण के लिए भी प्रभु की ओर से ध्यान नहीं हटाना चाहिए, किंतु यह कैसे संभव है?
माया का इतना मोहक स्वरूप है जो सभी को अपनी और आकर्षित कर लेता है और वैसे भी जिसे मोक्ष मिलना है, उसे किसी भी समय मिल सकता है।’
यह सुनकर संत बोले…
बात बहुत पुरानी है एक राज्य का राजा अत्यंत अत्याचारी था, वह हर बात पर ही गुस्सा होकर प्रजा को बंदी बनाकर एक ऐसे वन में छोड देता था, जिसके चारों ओर एक ऊंची व गोलाकार दीवार थी।
अधिकांश बंदी उस वन में भटकते हुए पत्थरों से माथा टकराकर मर जाते थे।
उन्हीं में से एक ऐसा व्यक्ति भी था, जो सदैव ईश्वर के नाम का स्मरण करता रहता था, उसे विश्वास था कि जब ईश्वर ने ये सारी मायावी रचनाएं की हैं, तो उस माया से निकलने का कोई मार्ग भी बनाया होगा।
वह प्रतिदिन उस दीवार के सहारे गोल-गोल घूमा करता था और दूसरों से भी ऐसा करने का आग्रह करता था, किंतु दूसरे बंदी या तो अपनी ही मस्ती में व्यस्त रहते या थककर बैठ जाते।
वह व्यक्ति न थका और न उसने बातों में समय गंवाया, आखिर उसने भगवान का नाम जप करते हुए, स्थान-स्थान पर स्पर्श कर-करके वह स्थान ढूंढ लिया, जहां से बाहर निकालने का मार्ग था, इस प्रकार उसने वन से मुक्ति पा ली।
यह कहानी सुनाकर गुरुजी बोले:-
‘यह सृष्टि भी चौरासी लाख योनियों का वन है, जिसमें विधाता ने हमें रखा है, जो प्रभु नाम रूपी आश्रय को पकडे रहते हैं, वे मोक्ष पा जाते हैं और जो इसमें चूके, वे भटकते रहकर कष्ट पाते हैं।’
यदि कोई काम एकाग्र मन से किया जाए तो उसमें सफलता निश्चित है, इस सफलता से आपको कोई भी नहीं रोक सकता।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे ।
हरे रामा हरे रामा, रामा रामा हरे हरे।।…