राम जी का चित्र-कूट क्या है

आज भगवान वाल्मीकि जी के पास आए हैं, पूछते हैं, गुरु जी मैं कहाँ रहूँ?
वाल्मीकि जी कहते हैं, आप पूछते हैं “मैं कहाँ रहूँ?” तो यह तो बताइये कि आप कहाँ नहीं रहते?
देखें, आध्यात्मिक दृष्टि से तो परमात्मा सर्वव्यापक है, माने वह निराकार होकर सब जगह है। जैसे वायु सब जगह है, पर जब तक चले न तब तक अनुभव में नहीं आती। वह मालूम पड़े इसी के लिए पंखा है।
यों उस निराकार को एक नामरूप देकर, साकार बनाकर, अंत:करण में उतारे बिना, वह परमात्मा अनुभव में नहीं आता।
वाल्मीकि जी कहते हैं कि इस प्रकार आप सर्वव्यापक होते हुए भी, उस भक्त के अंतःकरण में रहते हैं, जिसने आपको नामरूप की डोरी से अपने भीतर उतार लिया।
इस प्रकार व्यवहारिक दृष्टि से तो आप एक ही जगह ठहर सकते हैं, आप भक्तों के हृदय में ही निवास करिए, माने आप चित्रकूट में निवास करिए।
ध्यान दें, भगवान चित्रकूट में ठहरते हैं। यदि आप अपना हृदय चित्रकूट बना लें, तो भगवान अभी इसमें ठहर जाएँ।
देखें कूट माने स्थित होना। रामायण में दो ही कूट हैं, चित्रकूट और त्रिकूट। त्रिकूट में रावण रहता है, चित्रकूट में राम जी रहते हैं। और आपका हृदय जब तक चित्रकूट नहीं बन जाता, त्रिकूट ही है।
त्रिकूट माने ऐसा हृदय जहाँ तीन, सत रज तम, स्थूल सुक्ष्म कारण, जागृत स्वप्न सुषुप्ति, काम क्रोध लोभ स्थित हों, वहाँ मोह रूपी रावण की सत्ता है।
और जिस चित् में, भगवान का एक चित्र, स्थित हो गया, एक स्वरूप उतर आया, कूटस्थ हो गया, वह चित् ही चित्रकूट है।



अब आप बात मान कर अपने चित् को चित्रकूट बनाने के लिए, नाम के जप और रूप के चिंतन में लगें, और भगवान को दिल मे ठहरा लें।

श्री हरि ,जय सीतराम जी



Today God has come to Valmiki ji, asks, Guru ji where should I live? Valmiki ji says, you ask “Where shall I live?” So tell me where do you not live? See, from the spiritual point of view, God is omnipresent, that means he is formless and is present everywhere. Like air is everywhere, but it is not experienced until it moves. It is known that he is a fan for this. Thus, without giving a name and form to that formless, making it corporeal, and bringing it into the heart, that God cannot be experienced. Valmiki ji says that in this way, despite being omnipresent, you remain in the heart of that devotee, who took you inside himself by the rope of name. In this way, from a practical point of view, you can stay at only one place, you reside in the heart of the devotees, that is, you reside in Chitrakoot. Note, God stays in Chitrakoot. If you make your heart Chitrakoot, may God stay in it for now. See koot means to be situated. There are only two koots in Ramayana, Chitrakoot and Trikoot. Ravan lives in Trikut, Ram lives in Chitrakoot. And until your heart becomes Chitrakoot, it is Trikoot only. Trikoot means such a heart where three, Sat, Raj, Tam, gross, subtle reason, awakened dream, deep sleep, lust, anger and greed are situated there, there is the power of Ravana in the form of delusion. And the mind in which a picture of God got established, a form descended, became Kutastha, that mind is Chitrakoot.

Now, obeying this, to make your mind Chitrakoot, engage in chanting of the name and contemplation of the form, and keep God in your heart.

Sri Hari ,Jai Sitaram Ji

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *