रघुकुल शिरोमणि श्री राम विश्वरूप हैं।

नृत्य-संगीत के उत्सव में, मंदोदरी के कर्णफूल व रावण के मुकट को श्री राम द्वारा एक ही बाण में काट देने पर, मंदोदरी को उसी क्षण श्री राम में ब्रह्म दर्शन हो जाते हैं-

“रामो न मानुस”- अर्थात श्री राम जी कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं।
“विस्वरूप रघुवंशमुनि”-अर्थात रघुकुल शिरोमणि श्री राम विश्वरूप हैं।
“रामो देववर: साक्षात्प्रधानपुरूषेश्वर:”-अर्थात देवाधिदेव भगवान श्री राम साक्षात प्रकृति और पुरूष के नियामक हैं।
“मनुज बास सचराचर रूप राम भगवान”-अर्थात सारा विश्व उन्हीं का स्वरूप है। उन्हीं सचराचर रूप भगवान श्री रामचन्द्र जी ने मनुष्य रूप में अवतार लिया है।
“राघवो भक्तवत्सल:”-अर्थात श्री राघवो भक्तवत्सल हैं।

ये उक्तियाँ केवल कथन ही नहीं, अपितु मंदोदरी के हृदय से निकले गहन उद्गार हैं। मयतनुजा निशाचर राज रावण की भार्या मंदोदरी द्वारा श्री राम में ब्रह्मत्व-दर्शन को महर्षि बाल्मीकि जी, महामुनि वेव्यास जी एवं गोस्वामी तुलसीदास जी तीनों ही युग-संतो ने स्वीकार कर, मंदोदरी को महाबुद्धिशालिनी शुभलक्षणा व नारि-ललाम विश्लेषणों से विभूषित किया है। स्वयं राक्षस राज रावण उसे एक देवी की भाँति सम्मान देता था।

दानवराज मय व हेमा अप्सरा से जन्मी मंदोदरी के चरित्र में किसी भी प्रकार की राक्षसी प्रवृत्ति नहीं थी। वह बार बार अपने पति को ससम्मान सीता को लौटा देने, श्री राम से बैर त्याग कर उनकी कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिये अनुग्रह करती रही। यद्यपि मंदोदरी की अपनी कुछ मर्यादाएँ थी। वह पूर्णतया “पतिहिते रता” सुनारि थी। मर्यादाओं में रह कर भी वह बार बार अपने पति को कुमार्ग पर जाने से रोकती रही।

“भाव बस्यe भगवान” इस दृष्टिकोण से भी मंदोदरी तनिक भी कहीं कम दृष्टिगत नहीं होती-
“सुनहुँ नाथ सीता बिनु दीन्हें
हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।”
अर्थात
हे नाथ ! सुनिये,सीता को लौटाये बिना शम्भु और ब्रह्मा के किये भी आपका भला न होगा।

वह अपने पति से तनिक भी भयभीत नहीं होती और श्री राम की प्रभुता का बखान कर बार बार अपने पति से कुमति त्याग देने के लिये कहती है-
“पति रघुपतिहिं मनुज जनि मानहुँ
अग जग नाथ अतुलबल जानहुँ।”

वह उन्हें स्मरण दिलाती है कि श्री राम के लघु भ्राता द्वारा खीचीं हुई एक छोटी सी रेखा को तो आप लाँघ न सके, उनके साथ युद्ध कैसे करेंगे?
किन्तु रावण कहाँ मानने वाला था?

अपने जीवन की अति विकट घड़ियों व काली परछाईयों का आभास मंदोदरी पहले ही कर चुकी थी। रावण-वध पर मंदोदरी का विलाप, ऐसा तत्व-ज्ञान-मय विलाप अन्यत्र कोई दूसरा नही मिलेगा। वह पति-वध करने वाले को दोष नहीं,अपितु वध होने वाले अपने पति के कुकृत्यों को दोष देती है। अब महाभागवत मंदोदरी पूर्णत: राममय हो जाती है-
“अहह नाथ रघुनाथ सम
कृपासिंधु नहिं आन।
जोगि वृंद दुर्लभ गति
तोहि दीन्हीं भगवान।”

मंदोदरी ने सतत प्रभु श्री राम को परमब्रह्म और श्री सीता जी को जगजननी जगदम्बा ही माना था।मंदोदरी का नाम प्रमुख सात सती-नारियों में अति आदर के साथ लिया जाता है।



In the festival of dance and music, when Shri Ram cut off Mandodari’s earrings and Ravana’s crown with a single arrow, Mandodari got Brahma Darshan in Shri Ram at the same moment-

“Ramo na manus”- meaning Sri Rama is not an ordinary human being. “Viswaroop Raghuvanshamuni”-that is, the chief of the Raghu dynasty, Sri Rama, is Visvaroopa. “Ramo Devavara: Sakshaatpradhanpurusheshwara:”-meaning Lord Rama is the regulator of nature and man. “Manuj Bas Sacharachar Roop Ram Bhagwan”-meaning the whole world is His form. The same moving and non-moving form of Lord Ramachandra has taken human form. “Raghavo Bhaktavatsala:”-that is, Sri Raghavo is compassionate to the devotees.

These words are not just statements, but are deep utterances from the heart of Mandodari. Maharishi Valmiki ji, Mahamuni Vevyas ji and Goswami Tulsidas ji accepted the philosophy of Brahmatva in Shri Ram by Mandodari, the wife of Maytanuja Nishachar Raj Ravana, all the three era-saints have adorned Mandodari with Mahabuddhishalini Shubhlakshana and Nari-Lalam analysis. The demon king Ravana himself used to respect her like a goddess.

Mandodari born from demon king Maya and Hema Apsara did not have any kind of demonic tendency in her character. She repeatedly begged her husband to return Sita with respect, to give up enmity with Shri Ram and get his grace. Although Mandodari had some limitations of its own. She was completely “patihite rata” goldsmith. Despite living within the limits, she repeatedly prevented her husband from going on the wrong path.

Mandodari is no less visible even from the point of view of “Bhaav basye Bhagwan”. “Sunhun Nath Sita Binu Dinhe Who is in your interest now? In other words Hey Nath! Listen, without returning Sita to Shambhu and Brahma, you will not be benefited.

She is not at all afraid of her husband and by praising the lordship of Shri Ram, she repeatedly asks her husband to give up her virginity. ′′ Husband Raghupatihi Manuj Jani Manhun Ag Jag Nath Atulbal Janhun.

She reminds them that you can’t cross a small line drawn by Shri Ram’s younger brother, how will you fight with him? But where was Ravana going to agree?

Mandodari had already felt the most difficult times and dark shadows of her life. Mandodari’s lamentation on Ravana-killing, such elemental-knowledge-filled lamentation will not be found anywhere else. She does not blame the husband-killer, but blames the misdeeds of her husband who is killed. Now Mahabhagwat Mandodari becomes completely Ramamay- “Ah Nath Raghunath Sam Kripasindhu does not come. Jogi Vrind rare speed Tohi Dinhi Bhagwan.”

Mandodari always considered Lord Shri Ram as Parambrahma and Shri Sita ji as Jagjanani Jagdamba. Mandodari’s name is taken with great respect among the main seven sati-women.

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