रामायण और महाभारत के बीच का कालखंड कितना कितना बड़ा है ये हम सभी जानते हैं। रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर युग में हुआ बताया जाता है। पुराणों के अनुसार त्रेतायुग ३६०० दिव्य वर्षों एवं द्वापर युग २४०० दिव्य वर्षों का होता है। पौराणिक काल गणना के अनुसार चतुर्युगी व्यवस्था बनाई गयी है। किन्तु कई पौराणिक चरित्र ऐसे हैं जिन्होंने बहुत लम्बी आयु प्राप्त की और रामायण और महाभारत, दोनों काल में उपस्थित रहे। आज हम ऐसे ही कुछ महापुरुषों के विषय में जानेंगे।
इस लेख में हम देवताओं को नहीं जोड़ रहे क्यूंकि उनकी आयु स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इस लेख में हम सभी सप्त-चिरंजीवियों को भी नहीं जोड़ रहे, जिनमें वे भी हैं जो द्वापर में जन्मे, क्यूंकि एक तो वे त्रेता में उपस्थित नहीं थे और दूसरे हम जानते हैं कि वे कल्प के अंत तक जीवित रहेंगे। इसके अतिरिक्त मनु एवं सप्तर्षियों (अंगिरा, पुलह, पुलत्स्य, क्रतु, अत्रि, मरीचि एवं वशिष्ठ) को भी नहीं जोड़ रहे क्यूंकि वे भी कल्पान्तजीवी हैं। वैसे भी महाभरत में सप्तर्षियों का वर्णन केवल एक बार आता है जब वे पितामह भीष्म के अंतिम क्षणों में उनसे मिलने आये।
इसके अतिरिक्त कई ऐसे व्यक्ति हैं जो है तो सतयुग के जो द्वापर तक जिए, किन्तु रामायण और महाभारत दोनों में ही उनकी समान भूमिका नहीं है, उन्हें भी इस लेख में नहीं जोड़ रहे हैं। जैसे महाराज मुचुकंद, महाराज कुकुद्मी, महर्षि अगस्त्य, महर्षि भारद्वाज, महर्षि शक्ति, काकभुशुण्डि, देवर्षि नारद, तक्षक, गरुड़, ऋषि होत्रवाहन, वासुकि, आर्यक, तक्षक, नहुष इत्यादि। तो चलिए आरम्भ करते हैं:
परशुराम: परशुराम त्रेता युग के ही व्यक्ति हैं। त्रेता में ही माता सीता के स्वयंवर में उनकी भेंट श्रीराम से होती है। द्वापर में वे भीष्म से युद्ध करते हैं और श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान करते हैं। कलियुग में ये भगवान कल्कि के गुरु बनेंगे।
हनुमान: ये भी त्रेता के ही व्यक्ति हैं। त्रेता में तो खैर इनकी प्रशंसा से पूरा रामायण भरा है। द्वापर में वे भीम और अर्जुन का घमंड तोड़ते हैं। श्रीकृष्ण भी इनके द्वारा ही बलराम, गरुड़, सुदर्शन चक्र और सत्यभामा का अभिमान भंग करवाते हैं। महाभारत युद्ध में ये अर्जुन के रथ पर विराजमान रहते हैं। कलियुग में तुलसीदास द्वारा इनके दर्शन की बात कही जाती है।
गरुड़: सतयुग के व्यक्ति। सतयुग में भगवान विष्णु के वाहन बने। त्रेता में श्री राम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त किया। त्रेता में ही काकभुशुण्डि से भेंट की। द्वापर में हनुमान से टकराये और लज्जित हुए।
विभीषण: ये भी त्रेता के ही व्यक्ति हैं। रावण के छोटे भाई और श्रीराम के भक्त। लंका युद्ध मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। द्वापर में सहदेव का इनसे मिलने का वर्णन आता है जब सहदेव दिग्विजय हेतु दक्षिण दिशा में जाते हैं और इनसे स्वीकृति प्राप्त करते हैं।
जाम्बवन्त: सतयुग के व्यक्ति। सतयुग में समुद्र मंथन के समय पूरी पृथ्वी की सात परिक्रमा कर डाली थी। फिर त्रेता में श्रीराम के सहयोगी बने। द्वापर में श्रीकृष्ण से युद्ध हुआ और फिर उनसे अपनी पुत्री जाम्बवन्ती का विवाह किया।
महर्षि लोमश: ये सतयुग के व्यक्ति हैं। सतयुग में भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला। त्रेता में ये दशरथ को उपदेश देते हैं। त्रेता में ही काकभुशुण्डि को श्राप देते है। द्वापर में ये युधिष्ठिर और पांडवों को आशीर्वाद देने इन्द्रप्रस्थ आते हैं। फिर महाभारत युद्ध के पश्चात शरशैया पर पड़े भीष्म से मिलने भी जाते हैं। ये सहस्त्रों कल्पों तक जीने वाले व्यक्ति हैं, यही इनका वरदान भी है और श्राप भी।
महर्षि दुर्वासा: सतयुग के व्यक्ति। महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र और चंद्र एवं दतात्रेय के छोटे भाई। भयानक क्रोधी। सतयुग में इंद्र को श्राप दिया, जिस कारण समुद्र मंथन करना पड़ा। त्रेता में श्रीराम से मिले जिनके लिए श्रीराम पारिजात वृक्ष को धरती पर ले आये। द्वापर में दुर्योधन से मिलकर फिर युधिष्ठिर और अन्य पांडवों से मिले, जब श्रीकृष्ण की कृपा से पांडवों के प्राण बचे।
बाणासुर: त्रेतायुग के व्यक्ति। दैत्यराज बलि के ज्येष्ठ पुत्र एवं महान शिवभक्त। त्रेता में रावण का परम मित्र। सीता स्वयंवर भी देखने को आये थे। द्वापर में श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को बंदी बनाया जिस कारण उनसे युद्ध हुआ। उसी युद्ध मे भगवान शंकर भी बाणासुर की ओर से लड़े थे और श्रीकृष्ण और भगवान शंकर में युद्ध हुआ था। उस युद्ध के विषय में विस्तार से यहाँ पढ़ें।
मय दानव: त्रेता के व्यक्ति। त्रेता में मंदोदरी और धन्यमालिनी के पिता, रावण के श्वसुर। द्वापर में श्रीकृष्ण की द्वारिका और पांडवों के इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया