भागवत में शुकदेवजी अब अजामिल की कथा सुना रहे है

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भागवत में शुकदेवजी अब अजामिल की कथा सुना रहे है

एक ब्राह्मण था अजामिल नाम का।

जाति का ब्राह्मण पर कर्मों से दुष्ट था।

लूटपाट करता, साधु- संतों को लूट लेता।

एक दिन घूमने गया वो।

एक जंगल में जाकर देखाकि एक कुंड में एक व्यक्ति, एक वैश्या के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था।

इसने उस वैश्या को भीगा हुआ देखा तो इसकी आंख में काम आ गया और कामांध हो गया।

उसने सोचा ये वैश्या मुझे प्राप्त हो जाए और उसने उसको प्राप्त कर लिया और घर ले आया।

फिर उससे उसकी संतानें हुईं और जो सबसे छोटी संतान थी उसका नाम उसने नारायण रखा।

देखिए हमें समझने की यह बात है कि अजामिल वन में गया उसने किसी को नहाते देखा और उसको काम जाग गया।

काम जीवन में जब भी आएगा नेत्रों से आएगा।

काम नेत्रों से प्रवेश करता है।

इसलिए क्या देखा जाए ये जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण है।

क्या देखा जाए, कितना देखा, कब देखा जाए और कैसे देखा जाए आदमी इस मामले को लेकर बिल्कुल ध्यान ही नहीं देता।

जो भक्त हैं, जो साधक हैं वो इस बात को साधना के रूप में लें कि क्या देखा जाए? कितना देखा जाए?

क्योंकि दृष्टि से जब दृश्य का प्रवेश होता है तो वो दृश्य अपना प्रभाव लेकर आता ही है आप उससे वंचित नहीं हो सकते हैं।

जो भी देखें सोच-समझ कर देखें

हमारे यहां एक कथावाचक हुए हैं डोंगरे महाराज जी।

बड़े सिद्ध संत थे। जब वे भागवत कहा करते थे तो आंखे बंद रखते थे।

लोग उनसे पूछते कि आप आंख बंद करके क्यों बोलते हैं?

तो वह कहते थे किजब मैं भागवत बोलता हूं तो मैं परमात्मा के साथ, भागवत के प्रसंगों के साथ जीता हूं।

डोंगरे जी कहते हैं मैं तो देख नहीं पाता।

बालकृष्ण का जन्म हुआ मुझे लगता है मैं वहीं था। तुलसीदास ने रामकथा ऐसे ही लिखी थी।

सामने दृश्य घट रहा है और लिख ली।

हमें ये समझना चाहिए कि क्या देखना है और कितना।

दृष्टि को विश्राम दीजिए अकारण न देखें। पहले भारत में संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो बच्चे लालन-पालन में माता-पिता के अलावा दादा-दादी, नाना- नानी के साथ सोते थे।

बूढ़े नाना- नानी, दादा-दादी अपने नाती- पोतों को महाभारत की कोई रामायण की कहानी सुनाते और बच्चे सो जाते।

अब हो गए छोटे- छोटे परिवार तो बच्चों को कौन कहानी सुनाए।

इसलिए सावधान रहिए।

क्या देख रहे हैं और क्या दिखा रहे हैं।

यह दृश्य कहीं न कहीं आपके मानस पटल पर प्रभाव डालेंगे।

इसीलिए तो कहते थे बच्चों को हिंसात्मक फिल्म न दिखाएं क्यों, क्योंकि वह कहीं न कहीं मानस पटल पर आकर क्रिया में आ जाती है।

इसलिए सावधान रहिए क्या देखा जाए?

अजामिल की कथा हमको ये समझा रही है कि क्या देखें?

कितना देखें और जरूरत नही है तो न देखें।

हमने पिछे पढ़ा कि अजामिल नाम का एक ब्राह्मण था जो अत्यंत दुष्ट प्रवृत्ति का था।

उसने एक वैश्या के साथ संबंध बनाए और जो संतान उत्पन्न हुई उनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण रखा।

एक दिन अजामिल बाहर बैठा था।

उसके गांव में साधु-संत आए।

गांव के युवकों से पूछा भैया हमें भोजन प्राप्त करना है।

तो कोई भला घर है उसके घर जाकर हम अन्न प्राप्त कर लें।

जो लड़के थे उन्होंने सोचा मजाक करते हैं साधु से, अजामिल के भी मजे ले लेंगे इस बहाने।

उन्होंने कहा एक बहुत अच्छा ब्राह्मण है, बड़ा शुद्ध है, बड़ा आचरणशील है।

आप लोग उसके घर चले जाइए वो भोजन करा देगा।

अजामिल तो अव्वल दर्जे का भ्रष्ट था लेकिन लड़कों ने साधुओं को उसके घर भेज दिया।

साधु-संत गए और साधु-संत ने अजामिल से बोला- आपके घर से भोजन चाहते हैं।

अजामिल ने कहा भोजन तो मिल जाएगा पर मैं तो अव्वल दर्जे का भ्रष्ट हूं।

उन्होंने कहा हम बना लेंगे, तुम सामग्री दे दो बस।

उसने भोजन बनाने की सामग्री दी।

उन्होंने भोजन बनाया और उनको लगा जाते-जाते कुछ भला कर जाएं इसका।

उन्होंने कहा तुम्हारी पत्नी गर्भवती है तो तुम्हारे यहां अब जो संतान हो उसका नाम तुम नारायण रख देना।

साधु उनको बोल गए।

अजामिल को कोई लेना- देना ही नहीं था उसने कहा कुछ तो नाम रखना ही है, चिंकू-पींकू तो नारायण ही रख देंगे।

नारायण नाम रख दिया।

सबसे छोटा पुत्र था तो अजामिल को बड़ा प्यार था उससे।

24 घंटे उसको बुलाए नारायण-नारायण।

नारायण पानी ला,

नारायण ये कर नारायण-नारायण।

80 साल की उम्र हो गई अजामिल की।

मृत्यु का दिन आया।

यमदूत लेने आए।

अजामिल को लगा कोई लेने आए हैं।

उसने सोचा क्या करूं-क्या करूं तो चिल्लाया नारायण-नारायण।

आवाज लगा रहा है अपने बेटे को।

नारायण जल्दी आ,

अब नारायण- नारायण चिल्लाया तो भगवान विष्णु के देवदूत दौड़े आए।

जीवन में नाम का बड़ा महत्व है भागवत कह रही है कि संतान का लालन-पालन करें तो होश में करें।

होश में रहने की जो बात यहां कही जा रही है, वो यही है कि बच्चों कों कहींन कहीं परमात्मा से जोड़े रखिए । भक्त बनाएइ ।

भक्त में सारे गुण होते हैं। भक्त एक आचरण है संपूर्ण आचरण।

कंप्लीट केरेक्टर का नाम भक्त है।

परमात्मा पूरा भक्त चाहता है।

नाम का बड़ा महत्व है इसलिए नाम लेते रहिए।

हरे कृष्ण

गुरु भगवान ने बताया- भगवान की शरण में रहने वाले विरले भक्तों के पाप श्री भगवान के नामोच्चारण से ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्य उदय होने पर कोहरा नष्ट हो जाता है। जिन्होंने अपने भगवद गुण अनुरागी मन मधुकर को भगवान श्री कृष्ण के चरणारविन्द मकरन्द का एक बार पान करा दिया; उन्होंने सारे प्रायश्चित कर लिए। वे स्वप्न में भी यमराज और उनके पाशधारी दूतों को नहीं देखते।

ॐॐॐ

Shukdevji is now narrating the story of Ajamil in Bhagwat

There was a Brahmin named Ajamil.

The Brahmin of the caste was wicked by deeds.

He used to loot, used to loot saints and sages.

One day he went for a walk.

Went to a forest and saw a man doing water sports with a courtesan in a pool.

When he saw that prostitute getting wet, his eyes became useful and he became lustful.

He thought that I should get this prostitute and he got her and brought her home.

Then he had children from her and he named the youngest child as Narayan.

Look, we have to understand that Ajamil went to the forest, he saw someone taking a bath, and he was aroused.

Whenever work comes in life, it will come through the eyes.

Sex enters through the eyes.

That’s why what to see is very important in life.

What to see, how much to see, when to see and how to see, man does not pay any attention to this matter.

Those who are devotees, those who are seekers should take this thing as meditation that what to see? How much to see?

Because when the vision enters the vision, then that vision definitely brings its effect, you cannot be deprived of it.

Whatever you watch, watch it carefully

Dongre Maharaj ji has become a narrator here.

He was a great saint. When he used to say Bhagwat, he used to keep his eyes closed.

People would ask him why do you speak with your eyes closed?

So he used to say that when I speak Bhagwat, I live with God, with the contexts of Bhagwat.

Dongre ji says that I cannot see.

Balkrishna was born I think I was there. Tulsidas wrote Ramkatha like this.

The scene in front is decreasing and wrote down.

We should understand what to watch and how much.

Give rest to your eyes, don’t look unnecessarily. Earlier there used to be joint families in India, then children used to sleep with grandparents, grandparents apart from their parents in bringing up.

Old grandfathers, grandparents would narrate the story of Ramayana from Mahabharata to their grandchildren and the children would fall asleep.

Now the families are small, so who will tell the story to the children.

So be careful.

What are you seeing and what are you showing?

This scene will affect your mind somewhere.

That’s why they used to say why don’t show violent films to the children, because somewhere they come into the mind and come into action.

So be careful what to watch?

The story of Ajamil is explaining to us what to see?

No matter how much you see, don’t see if you don’t need it.

We read earlier that there was a Brahmin named Ajamil who was of very evil nature.

He had a relationship with a courtesan and named the youngest son as Narayan.

One day Ajamil was sitting outside.

Saints came to his village.

Asked the youth of the village, brother, we have to get food.

So, if there is a good house, we can go to his house and get food.

Those who were boys thought that they are joking with the monk, they will also enjoy Ajamil on this pretext.

He said he is a very good Brahmin, very pure, very well mannered.

You guys go to his house, he will get you food.

Ajamil was corrupt of the highest order but the boys sent the sadhus to his house.

The sages and saints went and the sages said to Ajamil – they want food from your house.

Ajamil said that food will be available but I am corrupt of the first class.

They said we will make it, you just give the material.

He gave the ingredients to cook the food.

They cooked food and while leaving they should do some good for it.

He said that your wife is pregnant, so name the child you have now as Narayan.

The sage spoke to him.

Ajamil had nothing to do with it, he said that he has to name something, Chinku-Pinku will keep it as Narayan.

He has been named Narayan.

As he was the youngest son, Ajamil had great love for him.

Call him Narayan-Narayan for 24 hours.

Narayan bring water

Narayan do this Narayan-Narayan.

Ajamil has turned 80.

The day of death has come.

Yamdoot came to take it.

Ajamil felt that someone had come to take him.

He thought what to do, what to do, then he shouted Narayan-Narayan.

He is calling out to his son.

Narayan come soon

Now Narayan – Narayan shouted, then the angels of Lord Vishnu came running.

There is great importance of name in life Bhagwat is saying that if you bring up your child, then do it consciously.

The thing that is being said here to be conscious is that keep the children connected with the divine somewhere. Make devotees

A devotee has all the qualities. Devotee is a conduct, a complete conduct.

The name of the complete character is Bhakt.

God wants a complete devotee.

The name has great importance, so keep taking the name.

Hare Krishna

Guru Bhagwan told- The sins of the rare devotees who are in the shelter of God are destroyed by chanting the name of Shri Bhagwan like the fog is destroyed when the sun rises. The one who made Madhukar, a devotee of God’s virtues, drink Makarand at the feet of Lord Shri Krishna once; He did all the atonement. They do not see Yamraj and his messengers with noose even in their dreams.

OM OM OM

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