माँदुर्गा गायत्री एवं ध्यानमंत्र

यह मंत्र आत्मा की ऊर्जा को शुद्ध करने और माँ दुर्गा के प्रति विश्वास और समर्पण को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता है, ताकि भक्त अपने जीवन में सार्थकता, शांति, और सफलता प्राप्त कर सकें।

ॐ महिषमर्दिन्यै च विद्महे दुर्गादेव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।।

ॐ कात्यायन्यै विद्महे, कन्याकुमार्ये च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।।

ॐ गिरिजाय च विद्महे, शिवप्रियाय च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।।

ॐ महाशूलिन्यै विद्महे, महादुर्गायै धीमहि, तन्नो भगवती प्रचोदयात्।।

।। माँ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र ।।
(दशभुजादुर्गा ध्यान मंत्र)

ॐ जटाजूटसमायुक्तां मर्द्धेन्दुकृतशेखराम्।
लोचनत्रयसंयुक्तां पूर्णेन्दुसदृशाननाम्।।

तप्तकाञ्चनवर्णाभां सुप्रतिष्ठां सुलोचनाम्।
नवयौवनसम्पन्नां सर्वाभरणभूषिताम्।।

सुचारुदशनां देवीं पीनोन्नतपयोधराम्।
त्रिभङ्गस्थानसंस्थानां महिषासुर मद्दिनीम्।।

मृणालायतसंस्पर्श दशबाहुसमन्विताम्।
त्रिशूलं दक्षिणे ध्येयं खड़्गं चक्रं क्रमादधः।।

तीक्ष्णबाणं तथाशक्तिं दक्षिणे सन्निबेशयेत्।
खेटकं पूर्णचापञ्च पाशमङ्कुशमेव च।।

घण्टां बा परशुं बापि बामतः सन्निबेशयेत्।
अधस्तान्महिषं तद्वद्विशिरस्कं प्रदर्शयेत्।।

शिरश्छेदोद्भवं बीह्मेद्दानवं खड़्गपाणिनम्।
हृदि शूलेन निर्भिन्नं निर्यदन्त्रविभूषितम्।।

रक्तारक्तीकृताङ्गं च रक्तबिस्फुरितेक्षणम्।
बेष्टितं नागपाशेन भ्रुकुटी भीषणाननम्।।

सपाश-बामहस्तेन धृतकेशंच दुर्गया।
रमद्रुधिरबज्रंच देव्याः सिंहं प्रदर्शयेत्।।

देव्याः दक्षिणं पादं समं सिंहो परिस्थितम्।
कीधिदूर्धं तथा बाम-मङ्गुष्ठं महिषोपरि।।

प्रसन्नवदनां देवीं सर्वकाम फलप्रदाम्।
शत्रुङ्कयकरीं देवीं दैत्यदानव दर्पहां।।

स्तुयमानंच तद्रूप-ममरैः सन्निबेशयेत्।
उग्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोग्रा चण्डनायिका।।

चण्डा चण्डवर्ती चैव चण्डरूपाति चण्डिका।
अष्टाभिः शक्तिभिस्ताभिः सततं परिवेष्टिताम्।।

चिन्तयेज्जगतां धात्री धर्मकामार्थमोक्षदाम्।।

हिंदी भावार्थ-

वह जिनके बाल ब्रह्मा के द्वारा जटित हैं, वही जिनका मस्तक चंद्रमा द्वारा सजाया गया है, जिनके तीन नेत्र हैं, वही जिनका चेहरा पूर्णिमा चंद्रमा की तरह है।

वह जिनका रंग जैसे भट्टी में पिघला सोना हो, वही जिनकी उत्तम तरह से स्थिति है, वही जिनकी शरीर में सुन्दर नेत्र हैं, और वही जिन्होंने युवा आकृति को प्राप्त किया है, वही जिनका शरीर सभी प्रकार के आभूषणों से युक्त है।

वह देवी जो सुंदर दस बाहुओं वाली है, जिनका स्तन ऊपर उठा हुआ है, जिन्होंने त्रिभंगी रूप में स्थान लिया है और महिषासुर का संहार किया है।

वह देवी जिनका शरीर मृणाली से स्पर्श करता है और जिनके पास दस बाहुएँ हैं, उन्हें त्रिशूल और दक्षिणा में खड़ग के साथ ध्यान किया जाना चाहिए, और वह चक्र को भी अपने क्रम से धारण करती है।

वह देवी जो तीक्ष्ण तीर और शक्तिशाली आयुध लेकर दक्षिण (दाहिनी) हाथ में बैठी है, वही जिनके पास खेटक, पूर्ण चाप, पाश, और एक अंकुश है।

उसके दाहिने (बायें) हाथ में घण्टा, परशु, और बाएं (बायें) हाथ में बाण है, और उसके पैरों के नीचे महिषासुर को विशिरस्क रूप में प्रकट है।

जिनका मस्तक खड़्ग से उत्पन्न हुआ है, जो दानवों का वध करने वाली है, जिनका हृदय शूल (त्रिशूल) से भिन्न है, जो बिना आस्तीन में अंगभूषणों से युक्त है।

उनके शरीर का रंग लाल-लाल है, उनके आंखों का रंग रक्त से बीमल है, उनका शरीर नागपाश (एक प्रकार का आयुध) से बँधा हुआ है, और उनका मुख भयानक है।

वह दुर्गा देवी, जिनके बाएँ हाथ में पाश (रस्मी रूप से दिखाई देने वाला पाश) और बायें हाथ में केश (मैंसे पकड़ने वाला केश, बाल) धारण करती है, वह जिनके मुख से रक्त और वज्र (देवताओं के आयुध) निकलते हैं और वह देवी जिनके द्वारके पास सिंह (शेर) को प्रकट करती है।

उनका दक्षिण (दाहिना) पाद सम रूप से सिंह के ऊपर स्थित है, उनका कीचक पाद (वाम-पाद) भी महिष के ऊपर है।

वह देवी जिनका चेहरा प्रसन्नता से भरपूर है, जो सभी कामों की पूर्ति करने वाली है, जो शत्रुओं और दैत्यों के घमंड को नष्ट करने वाली है।

उसकी महिमा को व्यक्त करने वाले मेरे मन्त्रगण उसके उग्रचण्डा, प्रचण्डा, और चण्डोग्रा स्वरूप में बैठते हैं, वह जिनके रूप के आदि हैं, और वह जिन्होंने चण्ड मुखी देवी की स्तुति की है।

वह देवी जिन्का नाम चण्डा, चण्डवर्ती, चण्डरूपा, और अष्टभुजा है, वही जिनके आसपास निरंतर आठ शक्तियाँ हैं और वही जिन्होंने सदैव जगत के धरण के धरन (सर्वभूतों के पालक) के रूप में ध्यान किया है, वह धर्म, काम, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए है। ।। श्री दुर्गादेव्यै नमो नमः ।।



This mantra aims to purify the energy of the soul and promote faith and devotion towards Maa Durga, so that the devotee can achieve meaning, peace, and success in his life.

ॐ Mahishamardinyai विद्महे Durgadevyai धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।

ॐ Katyayanyai विद्महे, Kanyakumari धीमहि, Durga prachodaya.

ॐ Girijaya cha vidmahe, Shivapriyaya cha vidmahe, tanno Durga prachodaya.

ॐ Mahashulinyai विद्महे Mahadurgaai धीमहि।

।। Maa Mahishasuramardini Stotra. (Dasbhujadurga Dhyana Mantra)

ॐ with matted hair and jute, with a peak made of half-moon. She had three eyes and a face like the full moon

She was of a burnt golden complexion and well established with beautiful eyes She was endowed with new youth and adorned with all kinds of ornaments

The goddess had beautiful teeth and plump raised breasts The buffalo demon intoxicated by the places of Tribhanga

She was ten-armed with the touch of a lotus flower. The trident should be meditated on the right and the sword and the wheel in order below.

The sharp arrow and the power should be placed on the right. A khetaka a full bow a rope and a goad

A bell or an ax should be placed on the left side From below the buffalo should be displayed with the same two heads.

The demon Bihmed, whose head was cut off, was sword-wielding. It was pierced by a spear in the heart and decorated with teeth

His body turned red and his eyes sparkled red He was wrapped in a snake rope and had a frightening face.

Durga with her hair held in her left hand with a rope The lion of the goddess should be displayed with the blood of Rama and the thunderbolt.

A lion stood flat on the right foot of the goddess Keydhidurdha and left thumb on the buffalo.

The goddess with a cheerful face bestows the fruits of all desires She is the goddess who destroys the pride of the demons and enemies

And when he is praised, he should be placed in the form of the immortals. She is fierce and fierce and fierce and fierce and the heroine of the fierce.

Chanda, Chandavarti, and Chandarupati, Chandika. She was constantly surrounded by the eight powers

The mother of the worlds should think of her as the giver of dharma, kama, artha and liberation.

Hindi meaning-

He whose hair is braided by Brahma, whose head is adorned by the moon, who has three eyes, whose face is like the full moon.

Those whose complexion is like gold melted in a furnace, only those whose condition is excellent, only those whose body has beautiful eyes, and only those who have attained a youthful figure, only those whose body is adorned with all kinds of ornaments.

The goddess who is beautiful with ten arms, whose breasts are raised, who has taken the form of Tribhangi and has killed Mahishasura.

The goddess whose body touches Mrinali and who has ten arms, should be meditated upon with the trident and the kharaga in dakshina, and she also holds the chakra in her order.

The goddess who is seated with a sharp arrow and a powerful weapon in her right hand is the one who has a khetak, a full arc, a noose, and a goad.

In his right (left) hand is a bell, a halberd, and in his left (left) hand is an arrow, and under his feet Mahishasura is manifested in Vishiraska form.

Whose head is born from a sword, which kills demons, whose heart is different from a prong (trident), who is sleeveless and is adorned with body ornaments.

The color of his body is scarlet, the color of his eyes is bloodshot, his body is tied with snakes (a type of weapon), and his face is terrible.

The goddess Durga, who holds a paash (ritually visible noose) in her left hand and a hair (hair held by me) in her left hand, the one from whose mouth comes blood and vajra (weapons of the gods) and The goddess near whose door a lion appears.

His Dakshina (right) foot is placed evenly over the lion, his Kichak foot (left-foot) is also placed over Mahisha.

The goddess whose face is full of happiness, who fulfills all tasks, who destroys the pride of enemies and demons.

My mantras expressing her glory sit in her form of Ugrachanda, Prachanda and Chandogra, those whose form they are accustomed to, and those who have praised Chand Mukhi Devi.

She is the goddess whose name is Chanda, Chandavarti, Chandrarupa, and Ashtabhuja, the one who has eight powers around her continuously and the one who has always meditated as the sustainer of the universe (the maintainer of all beings), she is the master of religion, lust, and salvation. Is for attainment. , Shri Durgadevayai Namo Namah.

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