प्रभु की भक्ति के चार लक्षण हैं

हरे कृष्ण हरे कृष्ण

काल छिछाना है खड़ा, जग पियारे मीत
राम सनेही बाहिरा, क्यों सोबय निहचिंत।

मृत्यु रुपी बाज तुम पर झपटने के लिये खड़ा है। प्यारे मित्रों जागों। परम प्रिय स्नेही भगवान बाहर है। तुम क्यों निश्चिंत सोये हो। भगवान की भक्ति बिना तुम निश्चिंत मत सोओ।

काल हमारे संग है, कश जीवन की आस
दस दिन नाम संभार ले,जब लगि पिंजर सांश।

मृत्यु सदा हमारे साथ है। इस जीवन की कोई आशा नहीं है। केवल दस दिन प्रभु का नाम सुमिरन करलो जब तक इस शरीर में सांस बचा है।

काल काल सब कोई कहै, काल ना चिन्है कोयी
जेती मन की कल्पना, काल कहाबै सोयी।

मृत्यु मृत्यु सब कोई कहते है पर इस मृत्यु को कोई नहीं पहचानता है। जिसके मन में मृत्यु के बारे में जैसी कल्पना है-वही मृत्यु कहलाता है।

माली आवत देखि के, कलियाॅं करे पुकार
फूले फूले चुनि लियो, कल्ह हमारी बार।

माली को आता देख कर फूल पूकारने लगे। सभी फूलों को तुम आज चुन लो-मेरी भी बारी कल आऐगी। एक दिन सबकी एक ही दशा होगी।

आरत कैय हरि भक्ति करु, सब कारज सिध होये
करम जाल भव जाल मे, भक्त फंसे नहि कोये।

प्रभु की भक्ति आर्त स्वर में करने से आप के सभी कार्य सफल होंगे। सांसारिक कर्मों के सभी जाल भक्तों को कभी फाॅंस नहीं सकते हैं। प्रभु अपने भक्तों की सब प्रकार से रक्षा करते है।

कुशल कुशल जो पूछता, जग मे रहा ना कोये
जरा मुअई ना भय मुआ, कुशल कहाॅ ते होये।

हमेशा एक दूसरे से कुशल-कुशल पूछते हो। जब संसार में कोई नहीं रहा तो कैसा कुशल।
बुढ़ापा नहीं मरा, न भय मरा तो कुशल कहाॅ से कैसे होगा।

चहुॅ दिस ठाढ़े सूरमा, हाथ लिये हथियार
सब ही येह तन देखता, काल ले गया मार।

चारों दिशाओं में वीर हाथों में हथियार लेकर खड़े थे। सब लोग अपने शरीर पर गर्व कर रहे थे परंतु मृत्यु एक ही चोट में शरीर को मार कर ले गई।

चार च्ंन्ह हरि भक्ति के, परगट देखै देत
दया धरम आधीनता, पर दुख को हरि लेत।

प्रभु की भक्ति के चार लक्षण हैं जो स्पष्टतः दिखाई देते हैं। दया, धर्म, गुरु एंव ईश्वर की अधीनता। तब प्रभु उसे अपना लेते है।

जब लग नाता जाति का, तब लग भक्ति ना होये
नाता तोरै हरि भजै, भक्त कहाबै सोये।

जब तक जाति और वंश का अभिमान है प्रभु की भक्ति नहीं हो सकती है। इन सारे संसारिक संबंधों को जो तोड़ देगा वही सच्चा भक्त है।

जल ज्यों प्यारा माछली, लोभी प्यारा दाम
माता प्यारा बालका, भक्ति प्यारी राम।

जिस प्रकार जल मछली को, धन लोभी मनुष्य को तथा पुत्र अपने माता को प्यारा होता है, उसी प्रकार भक्त को प्रभु की भक्ति प्यारी होती है।

तिमिर गया रबि देखत, कुमति गयी गुरु ज्ञान
सुमति गयी अति लोभ से, भक्ति गयी अभिमान।

अंधकार सूर्य को देखते ही भाग जाता है। गुरु के ज्ञान से मूर्खता का नाश हो जाता है।
अत्यधिक लालच से सुबुद्धि नष्ट हो जाता है और अंहकार से भक्ति का अंत हो जाता है।

भाव बिना नहि भक्ति जग, भक्ति बिना नहि भाव
भक्ति भाव ऐक रुप है, दोउ ऐक सुभाव।

विश्वास और प्रेम बिना भक्ति निरर्थक है और भक्ति के बिना विश्वास और प्रेम वेकार है।
भक्ति और प्रेम का स्वरुप और स्वभाव एक है।

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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