मृत्यु के लिये प्रवेश!

earth world meditation

वाराणसी के एक गेस्ट हाउस का एकाउंट है, जहाँ लोग मृत्यु के लिए प्रवेश लेते हैं। इसे ‘काशी लाभ मुक्ति भवन’ कहा जाता है।

कुछ लोग इसे डेथं होटल भी कहते हैं ।।

एक हिंदु मान्यता के अनुसार यदि कोई काशी में अपनी अंतिम सांस लेता है, तो उसे काशी लाभ (काशी का फल) जो वास्तव में मोक्ष या मुक्ति है, प्राप्त होता है।

इस गेस्ट हाउस के बारे में दिलचस्प तथ्य यह है कि इसमें रहने और मरने के लिए केवल दो सप्ताह की अनुमति है। इसलिए इसमें प्रवेश से पहले किसी को अपनी मृत्यु के बारे में वास्तव में निश्चित होना चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति दो सप्ताह के बाद भी जीवित रहता है, तो उसे ये गेस्ट हाउस छोड़ना होता है।

उत्सुकतावश, मैंने वहां जाने का फैसला किया, यह समझने के लिए कि उन लोगों ने क्या सीखा, जिन्होंने
न केवल मृत्यु को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया बल्कि एक निश्चित समय के साथ अपनी मृत्यु का अनुमान भी लगा लिया हो।

मैंने गेस्टहाउस में दो सप्ताह बिताए और प्रवेश करने वाले लोगों का साक्षात्कार लिया। उनके जीवन के सबक वास्तव में विचारोत्तेजक थे।

उसी माहौल में मेरी मुलाकात श्री भैरव नाथ शुक्ला से हुई, जो पिछले 44 वर्षो से मुक्ति भवन के प्रबंधक थे। इतने सालों में उन्होंने वहाँ काम करते हुए 12,000 से ज्यादा मौते देखी थीं।

मैंने उनसे पूछा, “शुक्ला जी, आपने जीवन और मृत्यु, दोनों को इतने करीब से देखा है। मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आपके अनुभव क्या रहे।”

शुक्ला जी ने इस संबंध में मेरे साथ जीवन के 12 सबक साझा किये। लेकिन इस श्रृंखला में एक सबक, जिससे शुक्ला जी बहुत प्रभावित थे और जो मुझे भी अंदर तक छू गया, वह जीवन का पाठ है- ‘जाने से पहले सभी विवादों को मिटा दें।

उन्होंने मुझे इसके पीछे की एक कहानी सुनाई…

उस समय के एक संस्कृत विद्वान थे, जिनका नाम राम सागर मिश्रा था। मिश्रा जी छह भाइयों में सबसे बड़े थे और एक समय था जब उनके सबसे छोटे भाई के साथ उनके सबसे करीब के संबंध थे।

बरसों पहले एक तर्क ने मिश्रा और उनके सबसे छोटे भाई के बीच एक कटुता को जन्म दिया। इसके चलते उनके बीच एक दीवार बन गई, अंततः उनके घर का विभाजन हो गया।

अपने अंतिम वर्षों में, मिश्रा जी ने इस गेस्टहाउस में प्रवेश किया। उन्होंने मिश्रा जी को कमरा नं. 3 आरक्षित करने के लिए कहा क्योंकि उन्हें यकीन था कि उनके आने के 16वें दिन ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।

14वें दिन मिश्रा जी ने, 40 साल के अपने बिछड़े भाई को देखने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा, “यह कड़वाहट मेरे दिल को भारी कर रही है। मैं जाने से पहले हर मनमुटाव को सुलझाना चाहता हूँ।”

16वें दिन एक पत्र उनके भाई को भेजा गया। जल्द ही, उनके सबसे छोटा भाई आ गए। मिश्रा जी ने उनका हाथ पकड़ कर घर को बांटने वाली दीवार गिराने को कहा। उन्होंने अपने भाई से माफी मांगी।

दोनों भाई रो पड़े और बीच में ही अचानक मिश्रा जी ने बोलना बंद कर दिया। उनका चेहरा शांत हो गया और वह उसी क्षण वह चल बसे।

शुक्ला जी ने मुझे बताया कि उन्होंने वहाँ आने वाले कई लोगों के साथ इसी एक कहानी को बार-बार दोहराते हुए देखा है। उन्होंने कहा, “मैंने देखा है कि सारे लोग जीवन भर इस तरह का अनावश्यक मानसिक बोझा ढोते हैं, वे केवल अपनी यात्रा के समय इसे छोड़ना चाहते हैं।”

हालाँकि, उन्होंने कहा की ऐसा नहीं हो सकता है कि आपका कभी किसी से मनमुटाव ना हो बल्कि अच्छा यह है कि मनमुटाव होते ही उसे हल कर लिया जाए। किसी से मनमुटाव, किसी पर गुस्सा या शक-शुबा होने पर उसे ज्यादा लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए और उन्हें हमेशा जल्द से जल्द हल करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि अच्छी खबर यह है कि हम जिंदा हैं, लेकिन बुरी खबर यह है कि हम कब तक जिंदा है, यह कोई नहीं जानता।

तो, चाहे कुछ भी हो, अपने मनमुटावों को आज ही सुलझा लें, क्योंकि
कल का वादा इस दुनिया में किसी से नहीं किया जा सकता है। सोचें…क्या कुछ ऐसा है या कोई है जिसके साथ हम समय रहते शांति स्थापित करना चाहते हैं?

“जब हमें किसी के साथ कड़वे अनुभव होते हैं, तब हमें क्षमा भाव अपनाकर भावनात्मक बोझ दूर कर लेना चाहिए।



There is an account of a guest house in Varanasi where people take admission for death. It is called ‘Kashi Labh Mukti Bhavan’.

Some people also call it Death Hotel.

According to a Hindu belief if one takes his last breath in Kashi, he gets Kashi Labh (fruit of Kashi) which is actually Moksha or liberation.

The interesting fact about this guest house is that only two weeks are allowed to stay and die in it. Therefore one must be really sure of one’s death before entering into it.

If a person is still alive after two weeks, he has to leave this guest house.

Curious, I decided to go there to understand what the people who Not only has he accepted death as a reality but has also anticipated his death with a definite time.

I spent two weeks at the guesthouse and interviewed people who entered. His life lessons were indeed thought provoking.

In the same environment, I met Mr. Bhairav ​​Nath Shukla, who was the manager of Mukti Bhavan for the last 44 years. In all these years he had seen more than 12,000 deaths while working there.

I asked him, “Shukla ji, you have seen both life and death so closely. I am curious to know what your experiences have been like.”

Shukla ji shared 12 life lessons with me in this regard. But one of the lessons in this series, which impressed Shukla ji and touched me deeply, is the lesson of life – ‘Sweet all disputes before leaving’.

He told me a story behind it…

There was a Sanskrit scholar of that time, whose name was Ram Sagar Mishra. Mishra ji was the eldest of six brothers and at one point he had the closest relationship with his youngest brother.

Years ago, an argument led to a rift between Mishra and his youngest brother. This led to a wall between them, eventually dividing their household.

In his last years, Mishra ji entered this guesthouse. He gave room no. 3 as they were sure that he would die on the 16th day of his arrival.

On the 14th day, Mishra ji expressed his desire to see his estranged brother of 40 years. He said, “This bitterness is weighing heavily on my heart. I want to settle all disputes before I go.”

On the 16th day a letter was sent to his brother. Soon, his youngest brother arrived. Mishra ji held his hand and asked him to demolish the dividing wall. He apologized to his brother.

Both the brothers started crying and in the middle suddenly Mishra ji stopped speaking. His face became calm and he passed away at that very moment.

Shukla ji told me that he has seen the same story repeated again and again with many people who come there. He said, “I have seen that all people carry this kind of unnecessary mental load throughout their lives, they only want to drop it at the time of their journey.”

However, he said that it cannot happen that you never have any estrangement with anyone, rather it is better that the estrangement should be resolved as soon as it occurs. Disputes, anger or suspicion should not be kept for too long and should always be tried to resolve them as soon as possible, because the good news is that we are alive, but the bad news is that No one knows how long we are alive.

So, whatever it may be, settle your differences today, because Tomorrow cannot be promised to anyone in this world. Think…is there something or someone we want to make peace with in time?

“When we have bitter experiences with someone, we must take away the emotional burden by adopting an attitude of forgiveness.

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